बैदिक उपदेश मंत्र (49) देवी नौका --- " जैसे धूप से संतप्त पुरुष छाया के आश्रय को प्राप्त करने पर ही सुखी होता हैं, इसी प्रकार आध्यात्मिक ,आधिदैविक, आधिभौतिक इन त्रिविध तापों से संतप्त जीव उसी जगन्माता के आश्रय मे जाने पर ही परम शान्ति लाभ करते हैं । " अदिति " उसे इसलिये कहते है कि, उसका विनाश नहीं होता, वह अविनाशी हैं, बल्कि शक्ति तत्व ही सबको खण्डित करता है । असुर गणों ने आसुरी अज्ञान रूप वाली शक्तियों को प्राप्त कर अनेक बार जगत मे हलचल पैदा की हैं, उस समय जगन्माता ने उनका विनाश किया हैं, श्रुति, स्मृति, पुराणों में विस्तार पूर्वक कहा गया है जिसे सभी विद्वान लोग जानते है । जगन्माता ने ही गीता में श्री कृष्ण रूप में कहा है --- " परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे --युगे ।। ". ऐसा ही दुर्गा पाठ मे कहा गया है
जैसे धूप से संतप्त पुरुष छाया के आश्रय को प्राप्त करने पर ही सुखी होता हैं