अगर आप भारतीय अर्थव्यवस्था पर करीब से नज़र रखते हैं या इससे किसी न किसी तरह से प्रभावित होते हैं तो सरकार ने आने वाले समय के बारे में दो ख़ास मुद्दों पर स्पष्टीकरण दिया है. भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रोफ़ेसर केवी सुब्रमण्यन ने इस बारे में बातचीत की है. पहला ये कि सरकार विशेष आर्थिक पैकेज लाने की तैयारी कर रही है जिसका मक़सद छोटे और मंझोले उद्योगों में पैसे की तंगी दूर करना है. उन्हें वापस पटरी पर लाना है और अपने पैरों पर खड़ा करना है. लेकिन सरकार फ़िलहाल ये बताने के लिए तैयार नहीं दिखती कि यह पैकेज कब लाया जाएगा. और यही इसका दूसरा पहलू है.
रोज़गार और राहत उनका क्या होगा जिन्हें मौजूदा हालात की वजह से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है या फिर जिनकी नौकरियां छिन गई हैं रहे हैं? प्रोफेसर केवी सुब्रमण्यन बताते हैं, "अमरीका में भी बेरोज़गारी अपने ऐतिहासिक स्तर पर है. ये समस्या केवल भारत में नहीं है. साल 1918 की स्पैनिश फ़्लू महामारी का रिसर्च ये बताता है कि जिंदगियां उन्हीं जगहों पर बचाई जा सकी जहां हालात सामान्य होने पर रोज़गार और समृद्धि वापस लौटी थी. हमें आर्थिक नुकसान होने जा रहा है और इसे टाला नहीं जा सकता. मान लीजिए कि लॉकडाउन
अगर इससे भी बात न बन पाई तो क्या होगा? भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कहते हैं, "हमने 26 मार्च के पहले ही समाज के कमज़ोर तबकों के लिए उठाए गए कदमों की घोषणा कर दी है. इसके अलावा मैं एक और दिलचस्प बात का ज़िक्र करना चाहूंगा जो हमारे सामने आया है. जन धन योजना के तहत खोले गए बैंक खातों में एवरेज बैलेंस बढ़कर 15 हज़ार करोड़ रुपया हो गया है. नक़द सहायता के रूप में सरकार जो पैसा ट्रांसफर कर रही है, लोग उसे लेने के लिए बैंक नहीं आ रहे हैं. यही वजह है कि हमारे राहत पैकेज में कमज़ोर तबकों की बुनियादी ज़रूरतों का ख्याल रखा गया है. हम उन्हें खाद्यान्न और दाल मुहैया करा रहे हैं. अगर लोग बहुत परेशान होते तो उन्होंने अपने खातों से पैसा निकाल लिया होता."
सरकार ज़्यादा खर्च नहीं कर रही है भारत के $5 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने के सपने का अब क्या होगा, मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बताया... सरकार की इस बात को लेकर भी आलोचना हो रही है कि वो अर्थव्यवस्था बचाने के लिए उतना ख़र्च नहीं कर रही है जितना कि उसे करना चाहिए था. इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस (आईएसबी) के शेखर तोमर, सेंटर फॉर एडवांस फ़िनांशियल रिसर्च एंड लर्निंग (सीएएफ़आरएएल, रिज़र्व बैंक द्वारा गठित एक स्वतंत्र निकाय) के अनुग्रह बालाजी और गौतम उडुपा की दलील है कि कोविड-19 के बाद भारत अपनी जीडीपी का 0.8 फ़ीसदी ही खर्च कर रहा है.
पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी ये मज़दूर दिल्ली से इलाहाबाद तक पैदल जाने को तैयार हैं क्योंकि तीन दिन की भूख ने तड़पा दिया है... वीडियो: दिलनवाज़ पाशा क्या भारत साल 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने की उम्मीद अभी भी कर सकता है? इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये भी कहा था कि उनकी सरकार का लक्ष्य किसानों की आमदनी साल 2022 तक दोगुनी करने का है.
कोरोना संकट से पहले की दुविधा कोविड-19 की महामारी का भारत पर असर पड़ने से पहले, एक फ़रवरी, 2020 को नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस ने शुरुआती अनुमान के आंकड़े जारी किए थे, जिसमें बताया गया था कि मार्च, 2020 में ख़त्म होने वाले वित्तीय वर्ष में भारत का विकास पांच फीसदी रहने वाला पिछले 11 सालों में भारत के विकास दर का ये सबसे निचला स्तर है. इससे पहले की तिमाहियों में आर्थिक सुस्ती के लक्षण दिखने लगे थे. हालांकि बाद में जारी किए गए आर्थिक सर्वे में सकल घरेलू उत्पाद में 6 से 6.5 फ़ीसदी के हिसाब से विकास दर में उछाल आने का अनुमान पेश किया था.
आगे क्या रास्ता है? तीन मई को जब लॉकडाउन ख़त्म होने की तारीख़ आएगी, बतौर मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रोफेसर सुब्रमण्यन की क्या सलाह है? वो कहते हैं, "हमें सिलसिलेवार तरीके से एहतियात बरतते हए लॉकडाउन हटाने की ज़रूरत पड़ेगी. कुछ बुनियादी बातों का हमें ख्याल रखना होगा. हॉटस्पॉट वाले इलाकों में लॉकडाउन बढ़ाए जाने की ज़रूरत होगी. वैसे उद्योग या सेक्टर्स जहां लोगों को एक दूसरे से ज़्यादा मिलने-जुलने की ज़रूरत होती है, उन्हें इंतज़ार करना होगा. सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों पर हमें कड़ाई से अमल करना होगा. और किसी इंडस्ट्री या सेक्टर को छूट देने का फैसला इस आधार पर होना चाहिए कि अर्थव्यवस्था में उसका कितना योगदान है."