प्रश्न बहुत आसान है. क्या मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में यानी 2019 के बाद मिडिल क्लास पर बहुत ध्यान दिया है? और उत्तर भी बहुत सीधा है- मिडिल क्लास के ज़्यादातर लोग का जवाब एक सेकंड में मिल जाएगा - क़तई नहीं!


प्रश्न बहुत आसान है. क्या मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में यानी 2019 के बाद मिडिल क्लास पर बहुत ध्यान दिया है? और उत्तर भी बहुत सीधा है- मिडिल क्लास के ज़्यादातर लोग का जवाब एक सेकंड में मिल जाएगा - क़तई नहीं! लेकिन क्या ये सवाल जवाब वाक़ई इतना ही सीधा और इतना ही आसान है? अगर ऐसा ही है तो फिर वो सारे सर्वे कहाँ से आ रहे हैं जिनमें प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बढ़ती दिखाई दे रही है? एक इशारे पर ताली थाली बजाने से लेकर दीये जलाने तक के लिए बड़ी संख्या और बड़ा उत्साह कहाँ से आ रहा है?


न्यू टैक्स रिजीम लेकिन दुख दर्द का पिटारा तो है ही. 370 और तीन तलाक़ की विदाई का जश्न मनाने के बाद इंतज़ार था बजट का. लेकिन बजट आया, तो बजट ने दिल तोड़ दिया! सभी को उम्मीद थी कि दो बार सरकार बनवाने का कुछ तो सिला मिलेगा. लेकिन ऐसा सिला! इनकम टैक्स में स्लैब बढ़ने, रेट घटने की उम्मीदें तो धरी रह गई, हाँ हिसाब लगाने में आत्मनिर्भर ज़रूर बना दिया गया. हालाँकि यह नामकरण तब तक हुआ नहीं था. तब तो दो ऑप्शन ही दिए गए थे. न्यू रिजीम यानी सारी छूट छोड़ दो और मिनिमम स्लैब बढ़वा लो, या फिर ओल्ड रिजीम यानी छूट लेनी है तो रेट और स्लैब पुराना ही चलेगा. कितनी बचत होगी इसका हिसाब भी साथ के साथ बताया गया.


नई पीढी का भविष्य जैसे जैसे परतें खुलती गई यह घाव और तकलीफ़ देह होता गया. इस फैसले की सबसे बड़ी मार टैक्स पर या आज कमानेवाले की जेब पर नहीं, बल्कि नई पीढ़ी के भविष्य पर, बचत योजनाओं पर और उनके बुढ़ापे के लिए जमा होनेवाली पूँजी पर पड़नेवाली है. एक ऐसे वक्त में जब प्राइवेट तो छोड़ दें सरकारी नौकरियों में भी पेंशन बंद हो चुकी है, भविष्य के लिए बचत का फ़ैसला एक विकल्प बन जाए तो यह वैसा ही विकल्प है कि छुरा ख़रबूज़े पर गिरेगा या ख़रबूज़ा छुरी पर. दोनों ही हाल में नुकसान उसी का


देश में कच्चा तेल उन्होंने उज्ज्वला से लेकर गाँव और गरीब के लिए लाई गई तमाम योजनाएँ गिनाई और पूछा कि भाई इसमें मिडिल क्लास को क्या मिला. और उसके बाद का सवाल - जब दुनिया भर के बाजारों में कच्चा तेल गोते खा रहा है तो सरकार ने पेट्रोल डीज़ल पर तगड़ा डिस्काउंट देने की क्यों नहीं सोची? तर्क भी है.


जब कोरोना का डर दूर हो रहा हो... सरकार के कामों पर, बजट के फैसलों पर उँगली उठाने का आज कोई अर्थ रह नहीं गया है. क्योंकि साल भर पहले जो कुछ भी सोचकर फैसले किए गए होंगे, योजनाएँ बनी होंगी उनपर तो कोरोना से आया संकट पानी फेर चुका है. यानी अब वो स्लेट साफ़ हो चुकी है जिसपर नई इबारत ही लिखनी पड़ेगी. एक संभावना है. हालाँकि दूर की कौड़ी लगती है कि सरकार ने शायद सोच रखा हो कि मुसीबत ख़त्म होते समय कुछ ऐसा दिया जाए जिससे लोगों का हौसला भी बढ़े और अर्थव्यवस्था में भी जान लौट सके.


मोदी सरकार का फ़ोकस ऐसे में उनसे सरकार के एक साल का हाल पूछना कुछ वैसा ही है जैसे पूरे रमज़ान लॉकडाउन में रोज़े रखने के बाद ईद की खरीदारी भी न कर सके लोगों को ईद मुबारक कहकर पूछना कि भाई इस बार ईद कैसी रही? लेकिन इसके बावजूद आप सवाल पूछ कर देख लीजिए. सीधा जवाब देनेवाले बहुत कम मिलेंगे. जवाब में कोई सवाल होगा, और सवाल राज्य सरकार पर भी हो सकता है, पिछली सरकार पर भी हो सकता है, पिछले सत्तर साल पर भी हो सकता है और कोई न मिला तो सवाल पूछने वाले पर ही हो सकता है. यानी मिडिल क्लास के पैमाने पर इस सरकार के पहले एक साल का रिज़ल्ट बनाना हो तो बिल्कुल साफ़ है. जो नौवीं क्लास तक के छात्रों का हुआ है. बिना परीक्षा के ही पास !


 


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