राम नाम और नाम राम एवं रामनाम जाप व रामनाम के लिखित जाप, यह सब वैसे तो अभेद है।

|| नाम राम कथा राम नाम और नाम राम एवं रामनाम जाप व रामनाम के लिखित जाप, यह सब वैसे तो अभेद है। सब एक ही बात हैं परंतु मानसिक, व्यवहारिक, एवं अनुभव में आने व न आने की भिन्नावस्थाओं से रामनामाकंन कर्ताओं की अनुभूति मार्ग में भिन्नता अनुभव में आती जाती हैं। यदा कदा दो साधक,दो भक्त, दो रामनामाकंन कर्ता मिलने पर चर्चा करने बैठ जायें तो सुनने वाले को भी समझ आजायेगा कि, इनकी मार्गमयी अनुभूति में विलक्षण असमानता प्रतीत हो रही है। उसका कारण मात्र इतना हैं कि, रामनामाकंन योग यात्रा किसने कहां से आरम्भ की हैं, । उदाहरणार्थ:-यदि कोई अपनी यात्रा जयपुर से आरम्भ कर अजमेर की और बढ़ रहा है।, दुसरा कोई भीलवाडा से अजमेर, की और, व तीसरा नागौर से अजमेर की और ,व चौथा टोंक से अजमेर की और, व एक अन्य ब्यावर से अजमेर की और यात्रा कर रहा है। तो इन सबको मार्ग में आने वाले दृश्य, मार्ग में आने वाले पडाव, मार्ग में आने वाली सुगम,दुर्गम पगडंडियों के स्वरूप और प्रभाव ,व गर्मी सर्दी ,की अनुभूति कदापि समान नहीं होसकती। भले सब के सब आ अजमेर ही रहे हैं। परंतु जब तक सब के सब श्री राम नाम धन संग्रह बैंक अजमेर आकर महान प्रतापी, रामनाममहाराज के संग्रह कक्ष अर्थात "रामनामालय" में आकर एक साथ बैठ कर वहाँ की दर्शनानुभुति नहीं करते तब तक सबके अनुभव में गुजरने वाले मत भीन्न भिन्न होंगे ही। अच्छा सब अपने अपने अनुभव की बात बडे़ गर्व से बडे़ दावे के साथ, बडे़ प्रमाणों के साथ कहेगें, पर एक दुसरे के मन मष्तिष्क में स्थान नहीं बना सकेगी, क्योंकि जयपुर से चार किलोमीटर चलने वाले का जहां पडाव हुआ, वो स्थान, अन्य चारों के चार किलोमिटर चलने वालों के पडाव स्थान से सर्वथा भिन्न ही नहीं बल्कि बिलकुल भिन्न हैं, जिनका वर्णन कादापि एक नहीं हो सकता, और कहीं अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने पर भी कोई दो मार्ग कहीं एक हो जायें तो भी उनको अनुभूति समान नहीं हो सकती, है। पर हां तब कुछ कुछ चींजों का कथन,मिलान एकसा मिलता जुलता सा होगा पर एक ही नहीं होगा। परंतु सब जब अपने गंतव्य स्थल, परम स्थान ||रामनामालय|| अर्थात श्री रामनाम धन संग्रह बैंक पहुंच गये तो अब उनके वर्णन ,अनुभूति और कथन में समरसता होगी, कोई विवाद नहीं होगा, कोई नहीं कहेगा कि, जो मैने कहा वो ही सही हैं, क्योंकि अब सबका कहा सही होगा, अब सबका वर्णन एकसा होगा, अब परमावस्था में है, वहाँ || रामरूप दुसर नहीं देखा। || वहाँ सबने एक ही स्वरूप देखा और अनुभव किया तो अब कोई भिन्नता न कथन में होगी, न अनुभव में होगी, और न ही कभी किसी भी प्रकार की भिन्नानुभति होना संभव हो पायेगा। तो हम लोग जितने भी साधक रामनाममहाराज की शरणागति में हो कर रामनामाकंन कर रहे है।, किसी अन्य के अनुभव को अपने अनुभव से तुलनात्मक अध्ययन नहीं करें। कारण राम. नाम के तीन बीजाक्षर हैं, और तीनो बिजाक्षरों का सामुहिक योग तो एक ही अनुभूति करायेगा, परंतु मार्गानुभूति सर्वथा भिन्न ही रहने वाली हैं। कोई साधक रामनामाकंन करने में "र" कार पर विशेष जोर दे रहा हैं, कोई "अ" कार पर तो कोई " म" कार पर, कोई कोई तो तीनो बिजाक्षरों को ऎसे अंकित करते हैं मानो उनके दर्शन कर कोई भी समझ नहीं पाता की यह रामनाम विग्रह बनाया कैसे गया। पर उसमें भी उतनी ही अलौकिकता के दर्शन होते हैं। पर यह दर्शन कर्ता के रामनामाकंन से उत्पन्न प्रेम पर आधारित है। महर्षि जी ने समझाया कि, देखो कहीं कहीं गावों में या नगरों में हनुमानजी महाराज ,अर्थात बालाजी के मंदिर में जाते है, तो वहां एक बडी़ सी शिला को खडी़ देखते हैं और उस पर सिंदूर मालीपन्ना लगा कर पूजा आरती करते हैं। और सब ग्राम वासी मानते हैं कि, यह श्री हनुमानजी का मंदिर है। और उसकी पूजा आराधना करके भक्त अपने मंतव्य को प्राप्त कर लेते हैं।, पर जो किसी अन्य स्थान से आया व्यक्ति ,जिसने हनुमानजी की मूर्ति के ही दर्शन किये हों वो उस शिलास्वरूप हनुमानजी को समझ ही नहीं पाता कि, यह किनका मंदिर हैं, ग्राम के बाहर एक लंबी सी शिला सिंदूर से औतप्रोत खडी़ है। तो यह ऎसे मार्ग के अनुभव भिन्न भिन्न होते हैं परंतु किसी भी रामनामाकंन योगी को रामनामाकंन से जो भी जैसी भी अनुभूति होरही हैं, वो उसके लिए पुर्ण सत्य है। उसको कभी भी किसी दुसरे की अनुभवता को सुन कर अपने मार्ग पर सशंकित नहीं होना चाहिए, क्योंकि वो ही जानता हैं कि उसकी यात्रा कहा से आरम्भ हुई हैं, और उसके मार्ग में आने वाले पडाव,स्थान और बातावरण और मार्ग के मिलने जुलने वाले लोग और उनका स्वभाव कैसा था, कितने बाग बगीचे, बाजार, और अन्य स्थान कैसे हैं, अतः अपनी अनुभूति पर पुर्ण विश्वास रखते हुए राम नामाकंन करते रहना चाहिए। हां कोई कोई इन तीन बीजाक्षरों के भिन्न भिन्न अनुभव अनुभूत करते हैं। उसका कारण कि उनका प्रारब्ध कौनसा भारी हैं, उसमें किसके अग्नि तत्व, किसके जल तत्व, किसके प्रकास तत्व की प्रधानता हैं, उसी अनुसार उसके द्वारा अंकित राम नामाकन में र कार. अ कार. या म कार की बनावट भिन्न भिन्न होगी। परम पूज्य गुरुदेव किसीके भी द्वारा अंकित रामनाम को देख कर रामनामाकंन योगी की अवस्था का वर्णन यदा कदा कर देते हैं। पर कैसा भी रामनाम अंकित किया गया हों उस रामनाम का अनादर कभी नहीं करने देते। राम नाम के तीन बीजाक्षरों में र कार. अग्नि अ कार. सुर्य म कार. चन्द्र के बीज हैं, तीनो महान तत्व हैं, इनके बिना सृष्टि तो असंभव हैं ही बल्कि इन के बिना सृष्टि की कल्पना भी असंभव , अभी मात्र चोबीस घन्टों के लिए सुर्यदेव को सौर मण्डल से बाद करदिया जाये, तो पृथ्वी जीवन मुक्त हो जायेगी, । बस मात्र आक्सिजन रहित बर्फ रह जायेगा,जिसमें कोई जीव नहीं रह सकता, तो ऎसे ही तीनो अपने आप में प्रधान है। आरंभ में किसी के अंकन में र कार टेडा मेडा हैं तो कोई बात नहीं और किसी के म कार पूरा नहीं तो कोई बात नहीं, जैसा भी अंकन वो कर रहा हैं उसकी यात्रा का उदगम स्थल भिन्न होने से हैमन, उसके पूर्व संग्रहित प्रारब्धानुसार हैं, और उन प्रारब्धों को उसका रमानामाकंन के प्रति समर्पण भाव ही परिवर्तन कर सकता हैं, न कि कोई दिशा निर्देश । हां कितने ही कथा वाचक या रामनामाकंन जिसने कभी किसी जन्म में किया नहीं पर कथा वाचन में पारंगत हो गये तो उनके उदगार बडे़ बिलक्षण होते हैं। कह देते हैं ,आज कल के वामपंथी की तरह कि, :- क्या होता हैं राम राम लिखने से। ऎसे हतोत्साहित करने वाले भी अनेक मिल जाते हैं। पर हमारे कृपाकारी बताते हैं कि, रामनामाकंन एक सर्वांगीण योग हैं। इसमें मात्र योग करते रहना हैं यह कोई योगाभ्यास नहीं हैं, बस जैसा भी रामनामाकंन होता हैं करें, जितना हों करें परंतु करें बडे़ प्रेम से। तो जीवन में सब कुछ अनुभूत हो जायेगा। और यह सब भितरी स्फुरणाओं से, स्वतः जाग्रत ज्ञान से होगा। बाहरी शास्त्र या वचन आदि से नहीं बल्कि स्वप्रेरित ज्ञान से कि, :- हमारे बन्धन का कारण क्या है। आसक्ति ही बन्धन हैं। कर्म फल क्या है। आत्मा का अनुभव :- आत्मा का स्वरूप :- आदि और कोई रामनामाकंन करते करते जीवन मुक्ति को उपलब्ध हो गया तो। जीवन मुक्ति क्या है। जीवन मुक्त के लक्षण क्या है। आत्मा अनुभव गम्य हैं। अविद्या नाश होते ही मुक्ति हैं। जीवन मुक्त महात्मा जो इस जन्म में रामनामाकंन करके जिवन मुक्त हुए हैं। या जो जीवन मुक्त होकर भी पुन्ः धरा पर विचरण करने आये है। ऐसे जीवन मुक्त महात्माओं के बाहरी गुण कैसे होते हैं। आदि आदि। पर यह सब समयानुसार रामनामाकंन योगी को यथा समय यथा संभव स्वयं अनुभव में आता जायेगा। अतः सप्रेम ससमर्पण अपना रामनामाकंन करते रहें। एक बात अवश्य याद रखना चाहिए कि, ईश्वर सर्व भूत मंह रहहीं। रामनामाकंन कर्ता को किसी भी अवस्था में किसी का भी अपमान करने से बचना चाहिए क्योंकि वो जाने अनजाने में अपने लक्ष्य अपने साध्य का ही अपमान कर बैठ रहा हैं उससे उसकी अनुभूति में महान विलबं संभव हैं । अतः सप्रेम रामनामाकंन । ससमर्पण भाव से रामनामाकंन । अपनी सुविधा एवं अपने समयानुसार रामनामाकंन का नियम बनायें। एक भी राम नाम को बेमन या कम मन से अंकन नहीं करें, जितना भी करें पुर्ण समर्पण से करें, तो रामनाममहाराज अपनी कृपा कब बरसा दें इसका बेसब्री से इंतजार मन में रखें, उससे प्रत्येक रामनामाकंन के साथ साथ हमारा आंतरिक प्रेम जाग्रत होता रहेगा। जय सियाराम। जय जय रामनामाकनम्। रामनामाकंन करने से पूर्व जो रामनाम के अधिष्ठाता हैं, जिन्होंने रामनाम जप कर अजरता अमरता प्राप्त की, हैं, ऎसे ऋषिमुनि देवता और संत जिनके बारे में आपको अनुभव होमन जानकारी हों उनको प्रणाम कर आशिर्वाद अवश्य ग्रहण करें यह मात्र एक मिनट का कार्य है। या आप रामनाम अंकन करते करते भी उनके प्रति आभार व्यक्त जर सकते हैं। जैसे शिव पार्वती, हनुमानजी, सप्तर्षि, नारद गणेश जी, या अन्य संत महात्मा, जि भी आपके अंतर से आदरणीय हों। जय जय सियाराम । रामनामाकंन विजयते्। 9414002930 bk 8619299909


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