घुटने टेकना' पहले सजा थी, अब 'घुटने टेके' तो सजा मिल गयी

  चैतन्य भट्ट


हम लोग जब प्रायमरी में पढ़ते थे तब कुछ 'मासाब' बड़े ही दुष्ट किसम के हुआ करते थेl जिस दिन सबक कर के न जाओ मैदान में 'घुटने टेकने' की सजा दे देते थे, घुटनों में कंकड़ गड़ते थे पर उफ़ नहीं कर पाते थेl उन दिनों दो तरह की सजा ऊधम करने वाले बच्चो को मिलती थी, या तो 'घुटने टेक' लो या फिर 'मुर्गा' बन जाओ अपन तो हमेशा 'घुटने टेक' की सजा स्वीकार कर लेते थे, अपना सोचना रहता था कि चौरासी हजार योनियों के बाद मनुष्य योनि में जन्म मिला है तो मुर्गा बनकर क्यों पक्षी योनि में जाए, पर घुटने टेकना भी बड़ा कष्टप्रद होता थाl हम ताजिंदगी यही समझते आये थे कि 'घुटने टेकना' एक तरह की सजा होती है पर अपने एमपी में तो दो अफसरों ने घुटने क्या टेक दिए उल्टा उन्हें सजा मिल गयीl हुआ यूंकि एक कांग्रेसी नेताजी इंदौर में अनशन पर बैठे गए, उनका अनशन तुड़वाने के आदेश हुए तो एक 'सीएसपी साहेब' और एक 'एसडीएम साहेब' अनशन स्थल पर जा पंहुचे, पहले तो दोनों ने काफी 'मान मनोव्वल' की कि हुजूर उठ जाओ धरने से, ख़तम कर दो अपना अनशन, पर नेता जी कंहा मानने वाले थे, सो दोनों अफसर उनके सामने घुटने के बल बैठ गए और हाथ जोड़कर उनसे निवेदन करने लगे कि अब तो मान जाओ, बस फिर क्या था ये फोटो अख़बारों में छप गयी और सरकार नाराज हो गयी कि हमारे रहते ये अफसर कांग्रेसियों के सामने 'घुटने टेक' कैसे हो गएl कलेक्टर नाराज, बीजेपी के सांसद नाराज, और देखते ही देखते तत्काल दोनों का तबादला कर उन्हें भोपाल में अटैच कर दियाl अपने को तो लगता है कि उन्होंने 'घुटना टेकने' की प्रेरणा इसी प्रदेश के एक 'सीनियर आईएएस अफसर' से ली होगी जो अपने कार्यकाल में जब कलेक्टर सीहोर थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने घुटनो के बल बैठे हुए थे और उसके बदले उन्हें भरपूर इनाम भी मिला था, वे सरकार के सबसे शक्तिशाली अफसरों में गिने जाने लगे थे, लेकिन इन अफसरों से एक गलती हो गए कि उन्होंने सत्ता पक्ष की बजाय विरोधी पक्ष के नेता के सामने 'घुटने टेक' दिए, यदि ये ही घुटने वे किसी बीजेपी नेता के सामने टेकते तो हो सकता है और भी मलाईदार पोस्टिंग मिल जाती, लेकिन अपने को इस बात का रंज है कि सरकार को कम से कम उनका पक्ष तो जानना चाहिए था कि आखिर उन्होंने घुटने क्यों टेकेl हो सकता है उन दोनों अफसरों को अपना बचपन याद आ गया हो जब वे 'घुटपुटइयाँ' यानि 'घुटनो के बल चला करते थे', या ये भी हो सकता है है कि 'यूट्यूब' में किसी 'नीम हकीम डाक्टर' ने वीडिओ डाल दिया हो कि घुटने के बल बैठने से 'घुटनों की बीमारी' नहीं होती, या ये भी संभव है कि 'बाबा राममदेव' का कोई योग हो जो वे कर रहे हों, सोचा होगा कि अनशन भी ख़त्म करवा देंगे और 'योग का योग' हो जाएगाl ये भी हो सकता है कि घुटनों में कभी चोट लगी हो और 'फिसिओथेरेपी' वाले ने घुटने की यही 'एक्ससाइज' बतलाई हो, ये भी हो सकता है अनशन स्थल पर स्कूल के जमाने के कोई मासाब दिख गए हो और उनको देखते ही दोनों अफसर 'घुटने टेक' हो गए होंl सरकार को कम से कम उनसे ये तो पूछना कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया, लेकिन ऐसा हो नहीं सका और दोनों अफसर खिसका दिए गए, लेकिन एक बात उन दोनों अफसरों को हम समझाए देते है कि चिंता मत करो 'खुदानाखास्ता' यदि प्रदेश में फिर से कांग्रेस की सरकार आ गई तो आप दोनों के 'बल्ले बल्ले' हो जाएंगे इसलिए रंज मत करो और अपनी इस प्रेक्टिस को बदस्तूर जारी रखोl


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