जो व्यक्ति जीवन की 'भौतिकता' से परिचित हो जाते हैं, वे जानते हैं कि भौतिक शरीर अज्ञानता, लालसा, व भ्रामक क्रियाओं द्वारा निर्मित है

(राकेश शौण्डिक-राँची/झारखंड)


जय श्री कृष्ण जो व्यक्ति जीवन की 'भौतिकता' से परिचित हो जाते हैं, वे जानते हैं कि भौतिक शरीर अज्ञानता, लालसा, व भ्रामक क्रियाओं द्वारा निर्मित है। वे शरीर के द्वारा न तो व्यसनी ही बनाए जाते हैं न बन्धक। आत्मा 'एक' है, पवित्र है, स्वत: प्रकाशित व अलौकिक है। यह शुचिता का स्त्रोत है, सर्व-व्यापि है व बिना किसी भौतिक आवरण के हैं। यह सम्पूर्ण क्रियाओं का साक्षी, समस्त बद्ध आत्माओं से पूर्णतया भिन्न व उनसे उत्कृष्ट है। जिस व्यक्ति को आत्मा व परमात्मा का पूर्ण ज्ञान है, वह प्रकृति की अध्यक्षता में कार्य करते हुए भी प्रकृति के गुणों से प्रभावित नहीं होता क्योंकि वह श्री कृष्ण की दिव्य-सेवा में स्थिति प्राप्त किये हुए होता है।


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