कोरोना संकट: सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले राज्य ही मुसीबत में, भारत का आर्थिक पुनर्जीवन कितनी मुश्किल और चुनौती भरा रहेगा?


कोविड-19 ने भारत की आर्थिक सेहत पर भी बहुत बुरा असर डाला है. इस बात से भारत सरकार भी इनकार नहीं करती और कहती है कि वो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है. लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था जिन मज़बूत खंभों यानी राज्यों पर टिकी है, उनकी नींव कोरोना ने हिलाकर रख दी है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि भारत का आर्थिक पुनर्जीवन कितनी मुश्किल और चुनौती भरा रहेगा?


महाराष्ट्र - तमिलनाडु देश में सबसे ज़्यादा फैक्ट्रियां तमिलनाडु में हैं. तमिलनाडु का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर काफ़ी विविध है. यहां ऑटोमोबाइल, फ़ार्मा, टेक्सटाइल, चमड़े के उत्पाद, केमिकल समेत कई चीज़ों की बड़ी इंडस्ट्री हैं. तमिलनाडु के पास बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर है. इस राज्य का रोड और रेल नेटवर्क काफ़ी अच्छा माना जाता है. साथ ही यहां सात हवाई अड्डे हैं. तमिलनाडु के पास 1,076 किलोमीटर यानी देश का दूसरा सबसे लंबा समुद्र तट है. जहां 4 मेजर और 22 नॉन-मेजर पोर्ट हैं. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता है. यहां बड़े कॉरपोरेट और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के मुख्यालय हैं. व्यूवरशिप के मामले में दुनिया की सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री - बॉलीवुड मुंबई में है. महाराष्ट्र देश में कॉटन, गन्ने और केले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक भी है.


2017-18 में भारत से हुए कुल ऑटो निर्यात का 45 प्रतिशत तमिलनाडु से हुआ था. पैसेंजर वाहनों के मामले में भी तमिलनाडु एक्सपोर्ट हब है, पैसेंजर वाहनों में भारत के कुल निर्यात का 70 प्रतिशत तमिनलाडु करता है. तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई भारत की ऑटोमोबाइल कैपिटल है. तमिलनाडु देश में सबसे ज़्यादा टायर बनाता है. लेकिन कोरोना ने तमिलनाडु को काफी प्रभावित किया है. 


गुजरात गुजरात कच्चे तेल (तटवर्ती) और प्राकृतिक गैस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. यहां जामनगर में दुनिया का सबसे बड़ा पेट्रोलियम रिफाइनिंग हब है. इसके अलावा गुजरात प्रोसेस्ड डायमंड में ग्लोबल लीडर है. वहीं दुनिया में डेनिम का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. गुजरात सरकार की माने तो राज्य में 30 हज़ार से ज़्यादा फूड प्रोसेसिंग यूनिट है. 560 कोल्ड स्टोरेज और फिश प्रोसेसिंग यूनिट है.



दिल्ली प्रति व्यक्ति आय के मामले में दूसरे नंबर पर रहने वाला दिल्ली देश के सबसे तेजी से आगे बढ़ रहे क्षेत्रों में से एक है. 2018-19 में इसका ग्रोथ रेट 12.82 प्रतिशत रहा था. देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर्यटकों के बीच ख़ासी लोकप्रिय है. साल भर यहां ट्रेड फेयर और कन्वेंशन भी होते रहते हैं. यहां आकर्षित रियर स्टेट मार्केट भी है और एग्रोकेमिकल-बेस्ड प्रोडक्ट को लेकर बड़ी संभावनाएं भी. दिल्ली और आसपास के नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) को पशुधन और डायरी प्रोडक्ट के लिए जाना जाता है. यहां की डायरी में हर दिन तीन मीलियन लीटर दूध की क्षमता है.


राज्यों पर कोरोना की मार सबसे ज़्यादा कोरोना मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए जा रहे हैं. उसके बाद दिल्ली, तमिनलाडु, गुजरात जैसे राज्य हैं. ज़्यादा मामले होने की वजह से यहां के ज़्यादातर इलाक़े रेड जोन में रहे हैं. जहां पर लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियां ना के बराबर रहीं है. जिसकी वजह से काफ़ी आर्थिक नुकसान हुआ है.


सबसे ज़्यादा नुक़सान रेड जोन में सबसे ज़्यादा नुक़सान (50 प्रतिशत) रेड जोन यानी जहां सबसे ज़्यादा मामले हैं, वहां हुआ. आप जानते ही हैं कि देश के लगभग सभी बड़े ज़िले रेड जोन में हैं. ऑरेंज और रेड जोन को मिलाकर जितना नुकसान हुआ वो कुल नुक़सान का 90 प्रतिशत है. ग्रीन ज़ोन में सबसे कम नुक़सान हुआ. क्योंकि इस ज़ोन की 80 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, जहां लगभग सभी गतिविधियां खुली हुई थीं.


नुकसान में किस राज्य की कितनी हिस्सेदारी बीबीसी हिंदी ने एसबीआई ग्रुप के चीफ़ इकोनॉमिक एडवाइज़र सौम्य कांती घोष से संपर्क किया, जिनकी रिपोर्ट के मुताबिक़ राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि कुल जीडीपी में जो नुकसान हुआ है, उसका 75 प्रतिशत 10 राज्यों की वजह से हुआ.


सेक्टर वार नुक़सान अगर सेक्टर के हिसाब से देखें तो सिर्फ कृषि में सुधार हुआ है. जबकि दूसरे बड़े सेक्टरों में अधिकतर में स्थिति बहुत बुरी रही है. मौजूदा वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के आंकड़ों पर नज़र डाले तों अधिकतर सेक्टरों की नेट सेल नकारात्मक रही है - ऑटोमोबाइल सेक्टर में नेट सेल -15 रही है बिजली के उपकरणों की नेट सेल -17 रही है सिमेंट की नेट सेल -10 रही है एफएमसीजी की नेट सेल -4 रही है टेक्सटाइन की नेट सेल -30 रही


आगे की राह एसबीआई ग्रुप के चीफ़ इकोनॉमिक एडवाइज़र सौम्य कांती घोष के अनुसार लॉकडाउन से बहुत ही समझदारी से बाहर निकलना होगा. उनकी रिपोर्ट कहती है, कोविड-19 महामारी के बाद भी कंसम्पशन पैटर्न में कुछ बदलाव आने की संभावना है. " नील्सन रिपोर्ट के मुताबिक़, दो तरह के ग्राहक कंसम्पशन डायनेमिक को तय करेंगे. एक मिडिल इनकम ग्रुप, जिनकी आय लॉकडाउन में ज़्यादा प्रभावित नहीं हुई और दूसरे वो, जिनकी नौकरी चली गई और जिनपर सबसे ज़्यादा बुरा असर पड़ा. बल्कि पहले वाला भी बहुत सोच समझकर ख़र्च करेगा, क्योंकि वो सोचेगा कि अब मेरी बारी हो सकती है. साथ ही वो सस्ती चीजें खरीदेंगे. प्रतिबंधों में लि के बावजूद ज़्यादातर लोग घर का खाना खाएंगे. हालांकि हेल्थ, सेफ्टी और क्वालिटी पर लोग खर्च करेंगे." अगर ऐसा होता है तो ज़ाहिर है कि आने वाले वक़्त में भी जीडीपी के आंकड़ों में भी काफ़ी उतार चढ़ाव देखने को मिल सकता है.


 


 


 


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