लद्दाख में कथित चीनी घुसपैठ की ख़बरों पर अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ामोश क्यों हैं? ये सवाल न केवल विपक्ष के नेता कर रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया पर भी आम नागरिकों की ज़बान पर भी यही सवाल है. दोनों देशों के बीच ताज़ा सीमा विवाद पाँच और छह मई को पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में एक झड़प के बाद शुरू हआ. इस मामले पर प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री समेत पूरी सरकार ख़ामोश है जबकि दूसरी ओर चीन की तरफ़ से लगातार बयान जारी किए जा रहे हैं. भारत के अख़बारों और समाचार चैनलों पर लगातार ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि सीमा पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा है या चीनी हेलिकॉप्टर सीमावर्ती इलाकों में उड़ते देखे गए हैं. चीनी सैनिकों की मौजूदगी से भी भारत ने आधिकारिक और स्पष्ट रूप से इनकार नहीं किया है. भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि "चीन पर सरकार की चुप्पी सामरिक है और ये देश के हित में है". पूर्व सेना अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा ने इस लंबी ख़ामोशी की वजह बताते हुए कहा कि ये सवाल तो सरकार से ही करना चाहिए लेकिन उनका ये भी कहना था कि "सीमा पर घुसपैठ दोनों तरफ़ से होती है लेकिन जब मामला तूल पकड़ने लगता है तब ही मीडिया में ये ख़बर आती है." भारतीय विदेश मंत्रलय ने भी सात जून के बाद से कोई बयान जारी नहीं किया है. इस बयान में छह जून को चुशुल-मोल्दो क्षेत्र में भारतीय और चीनी कमांडरों के बीच एक बैठक के बारे में जानकारी दी गई थी और कहा गया था कि ये मीटिंग एक "सकारात्मक माहौल भारतीय विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि था कि "दोनों पक्ष स्थिति को हल करने और सीमा क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करने के लिए सैन्य और राजनयिक संवाद जारी रखेंगे." प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल के उद्योगपतियों को गुरुवार को संबोधित किया और
उनका कहना था कि ये घुसपैठ लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) में आम बात है जो दोनों तरफ़ के सैन्य अधिकारी बातचीत से हल कर लेते हैं. उन्होंने इस बात को भी गलत बताया कि ये भारत की इंटेलिजेंस की नाकामी थी. उनके अनुसार गलवान घाटी के दो जगहों से चीनी अपने तंबू उखाड़ रहे हैं और जल्द वो क़ब्ज़ा किये हुए एरिया को खाली कर देंगें लेकिन इन फ़ोर फिंगर कहा जाने वाले कुछ इलाकों में चीनी सेना डटी हुई है." उनका मानना था कि इस पर दोनों देशों के नेताओं के बीच बातचीत से ही कोई हल निकल सकेगा. चेलानी का कहना है कि ताज़ा घटनाओं के बाद भारत को चीन के प्रति अपनी नीति में बदलाव करना चाहिए, अपनी ग़लतियों से सीखना चाहिए. आत्मनिर्भरता पर एक बार फिर से बल दिया लेकिन भारत-चीन सरहद पर क्या चल रहा है इसकी कोई जानकारी नहीं दी. प्रधानमंत्री के समर्थकों में भी मायूसी है लेकिन ये उनकी चुप्पी से अधिक चीन पर उनकी पॉलिसी को लेकर है. उनके कई समर्थक सोशल मीडिया पर ये सवाल कर रहे हैं कि भारत आक्रमण का जवाब आक्रमण से क्यों नहीं दे रहा है. कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कारवाई पर जिस तरह से मोदी सरकार खुलकर बोलती है उसी तरह चीन के आक्रमण पर कोई आवाज़ क्यों नहीं उठायी जा रही है. सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी के अनुसार मोदी ने सालों तक चीन को खुश करने की कोशिश की जिसके नतीजे में "मोदी को भारतीय क्षेत्र में एक और चीनी अतिक्रमण मिला है". जाने-माने स्तंभकार और विश्लेषक चेलानी ने हाल में एक लेख में लिखा है, "प्रधानमंत्री को उम्मीद थी कि चीन को खुश करके वो अपने विपक्षीय संबंध को फिर से कायम कर लेंगे और पाकिस्तान के साथ चीन के संबंधों को कमज़ोर कर कर देंगे, लेकिन यह उम्मीद अनुभवहीनता का नतीजा थी." सरकार की चुप्पी की वजह से मीडिया में अटकलों का बाज़ार गर्म है. मीडिया में ये कहा जा रहा है कि चीन ने तिब्बत और लद्दाख के निकट अपने टैंक खड़े कर दिए हैं. लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा कहते हैं, ये आम बात है. "चीन ये टैंक के साथ सैनिक मश्क हर साल करता है. हमारी फ़ौज भी हर साल करती है. ये कोई नई बात नहीं है."