नई भाजपा का गांधी समाजवादी नहीं रहा वह सिर्फ बनिया हैं...

उमेश त्रिवेदी (लेखक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है )


साभार  दैनिक समाचार पत्र सुबह सवेरे


भाजपा में राजनीतिक अवगुणों की यह चमकार सबक, श्कांग्रेस जमा ह,ने के लिए उत्प्रेरित करती हफ त्रासद हफ कि ल,ग यह मानने और रियायत देने लगे हैं कि केन्द्र में राज करने के लिए किसी के लिए भी कांग्रेस जशा ह,ना बुरा नहीं ह$ इस रियायत का फायदा सबसे ज्यादा भाजपा उठा रही ह% श्कांग्रेस सत्ता संस्कृति का पर्याय है 



भाजपा के राजनीतिक आख्यानों में सौ-सवा सौ दिन पहले ज्य,तिरादित्य सिंधिया का उदय एक पहेली की तरह कई सवालों के उत्तर तलाश रहा ह$ जनसंघ और भाजपा के संयुक्त इतिहास के सत्तर सालों में पार्टी के राजनीतिक बहाव में पहली बार व्यक्तिपरक विचलन अथवा खलल पड़ा ह,ने के आसार नजर आ रहे हैं। पार्टी के भीतर-बाहर पनप रहे ये अंदेशे भाजपा का सहज स्वभाव नहीं हफ आयाराम-गयाराम की राजनीतिक संस्कृति क, क,सने वाली भाजपा के सभासद सत्ता की सौदेबाजी के नए हथकंडों से खुद हवान हैं। भाजपा के वनवास में निष्ठाए सिद्धांत और संगठन के चटक रंगों में घुल रहा फीकापन उस थीसिस क, पुख्ता कर रहा हरू ज, श्कांग्रेस के निष्कासन का सबब बने राजनीतिक अवगुणों में चमक पक्षा करते हैं। भाजपा में राजनीतिक अवगुणों की यह चमकार सबक, श्कांग्रेस जशा ह,ने के लिए उत्प्रेरित करती ह$ त्रासद ह$कि ल,ग यह मानने और रियायत देने लगे हैं कि केन्द्र में राज करने के लिए किसी के लिए भी कांग्रेस जशा ह,ना बुरा नहीं ह$ इस रियायत का फायदा सबसे ज्यादा भाजपा उठा रही ह$ श्कांग्रेस सत्ता संस्कृति का पर्याय ह$ इस मत के समर्थक मानते हैं कि केन्द्र सरकार में श्कांग्रेस जमा ह,ना या दिखना हमारी राजनीतिक विरासत का हिस्सा हक इसलिए यदि भाजपा वक्षा करती या दिखती ह$त, विलाप नही ह,ना चाहिएसवाल भी नहीं पूछे जाने चाहिए। यह सवाल भी राष्ट्रद्र,ही ह$कि फिर कांग्रेस क, बदलने की जरूरत ही क्या ह बहलहालए भाजपा जझी भाजपा और श्कांग्रेस जझी भाजपा के बीच एक अघ,षित अंतर्दद जारी ह$ इस श्पॉलिटिकल थ्रिलर में ज्य,तिरादित्य सिंधिया की भूमिका में भविष्य की राजनीति के दिग्दर्शन होंगेयह देखना दिलचस्प ह,गा कि सिंधिया श्भाजपा जशी भाजपा में नायक बनकर उभरेंगे या श्कांग्रेस जझी भाजपा के महानायक होंगेपारसी थिएटर की कहानियों में श्नायकर त, कई ह, सकते हैंए लेकिन महानायकर एक ह,ता हरू जिसके पीछे कहानी चलती ह$ यहां सवाल मौजूं ह, सकता ह$कि नायक-महानायक की महागाथाओं के बीच भाजपा को आगे बढ़ेगी बहरहालए सवालों की पूंछ ज्यादा लंबी नहीं ह,ना चाहिए। श्बुलंद भारत के नए कायदों पर सवाल राष्ट्रवाद क, आहत कर सकता ह$ असुरक्षा और अस्थिरता राजनीति का स्थायी भाव ह$ यह आशंकाओं क, मजबूत करता ह$ वझे भी शंका-कुशंकाओं के सिर-पड़ नही ह,ते हैं। आशंकाओं से उदभूत सवाल राजनीति क, उद्वेलित करते हैं। आशंकाओं के घटाट,प में सवाल जुगनू की तरह जल-बुझ रहे हैं कि भविष्य में मप्र के मार्च-पास्ट क, कौन लीड करेगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र म,दी और गृहमंत्री अमित शाह के श्नए इंडिया में भाजपा के मिजाज अलग हैं। 1980 में जब जनसंघ का भाजपा के रूप में पुनर्जन्म हुआ थाए तब उसकी नाभि में गांधीवादी समाजवाद की नाल बंधी थीगांधी किसी वाद के म,हताज नहीं हरू लेकिन समाज के अंतिम छ,र पर बड़ा सबसे गरीब व्यक्ति हमेशा उनके विचारों के केन्द्र में रहता थागरीब व्यक्ति की इस हिमायत क, किसी भी वाद ढाल सकते हैं6 अप्रन 1980 क, मुंबई के पहले राष्ट्रीय महाधिवेशन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने श्गांधीवादी-समाजवाद क, पार्टी की राष्ट्रीय अवधारणा के रूप में स्वीकार किया था। गांधीवादी-समाजवाद गांधी के सिध्दांतों की राष्ट्रवादी व्याख्या ह$ इसकी वनारिक बुनियाद गांधी की किताब हिंद स्वराज? हक मूल्यपरक राजनीतिक और आर्थिक शक्ति का विकास इसका मूलाधार हैं। भाजपा की विचार-यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। 1980 में अटलजी ने श्गांधीवाद-समाजवाद से भाजपा का मस्तकाभिषेक करके जिन महात्मा गांधी की वनारिकता क, समाजवादी जामा पहनाया थाए द, साल पहले गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें श्चतुर गुजराती बनिया निरूपित करते हुए कटाक्ष किया था। राजनीति में सौदेबाजी की तरकीबों क, गांधीवाद का मुलम्मा पहनाने का जतन भाजपा के मौजूदा चरित्र क, उजागर करता ह$ अटलजी के समाजवादी गांधी और अमित शाह के बनिया गांधी का वणिक विचार ही भाजपा के चिंतन का काला-सफेद रूपांकन करने के लिए पर्याप्त हफ श्बनियार शब्द अपने आप में शरारती ह$ इसकी तासीर में बिजनेस अथवा लाभ कमाने की खनक महसूस ह,ती ह$ बनिया क,ई भी ह, सकता ह$ यह एक प्रवृत्ति हर जिसमें लाभ कमाने के लिए चापलूसीए चालाकी और चालबाजी के त३


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