दुनिया भर में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 30 हजार के पार पहुंच चुकी है लेकिन अभी तक स्पष्ट तौर पर कोई विशेषज्ञ या वैज्ञानिक ये नहीं बता सके हैं कि कोरोना वायरस आया कहां से.उस वक़्त तक चमगादड़ को कोरोना वायरस का मूल स्रोत माना जा रहा था. दलील दी जा रही थी कि चीन के वुहान शहर में जानवरों की मंडी' से ये वायरस कुछ इंसानों में पहुंचा और उसके बाद पूरी दुनिया में फैल गया. इसके बाद एक शोध में कहा गया कि इंसानों में यह वायरस पैंगोलिन से आया है. इसे लेकर एक शोध भी हुआ. वैज्ञानिक इस कहानी को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस जानवरों से फैला. जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन के प्रोफेसर एंड्रयू कनिंगम कहते हैं कि घटनाओं की कड़ी जोड़ी जा रही है. लेकिन सवाल यह है कि हमलोग इसके संक्रमण या फैलने के बारे में कितना जानते हैं? जब वैज्ञानिक नए वायरस को मरीज़ के शरीर में समझ पाएंगे तो चीन के चमगादड़ों या पैंगोलिन को लेकर स्थिति साफ़ हो पाएगी.
लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि जानवर किसी इंसान को बीमार कैसे कर सकते हैं? अगर बीते 50 सालों के आंकड़े देखें तो जानवरों से इंसानों में संक्रमण के मामले बढ़े हैं. साल 1980 के समय में बड़े वनमानुषों से आया एचआईवी/एड्स संकट, साल 2004-07 में पक्षियों से होना वाला बर्ड फ़्लू और उसके बाद साल 2009 में सूअरों से होने वाला स्वाइन फ्लू. जानवरों से आए इन सभी संक्रमणों ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया.
लेकिन एक प्रजाति की बीमारी किसी दूसरी प्रजाति में कैसे पहुंच जाती है? अधिकांश जानवरों में रोगाणुओं की एक कड़ी होती है. उनके शरीर में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया बीमारियों के कारण बनते हैं. इन रोगाणुओं का क्रमिक विकास और जीवित रहने की क्षमता उनके नए होस्ट (जानवरों से ये जिस भी जीवधारी में जाते हैं) पर निर्भर करता है. एक होस्ट से दूसरे होस्ट में जाना इस क्रमिक विकास का ही एक तरीक़ा है.इंसानों के रहने के तरीके में भी बहुत बदलाव हुआ है. दुनिया की क़रीब 55 फ़ीसदी आबादी शहरों में रहती है. जो कि बीते 50 साल में 35 फ़ीसदी बढ़ी है.
कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें ये वन्य जीव जंगलों की तुलना में शहरों में ज़्यादा सफल जीवन जीने में कामयाब रहे हैं. इसका एक बड़ा कारण ये है कि शहरों में इन्हें आसानी से खाना मिल जाता है. लेकिन ये ही वो कारक भी हैं जो बीमारियों को जन्म देने का काम करते हैं.
लेकिन सबसे अधिक ख़तरा किसे है? जब कोई रोगाणु किसी नए होस्ट के शरीर में प्रवेश करता है तो वो ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो सकता है और यही वजह है कि जब कोई बीमारी शुरुआती चरण में होती है तो वो ज़्यादा घातक होती है. दुनिया के कई हिस्सों में लोग अर्बन-वाइल्ड लाइफ़ का इस्तेमाल खाने के लिए भी करते हैं. वो शहरों में ही पल रहे जीवों का या तो शिकार करते है या फिर आसपास के इलाक़ों से पकड़कर लाए गए और सूखाकर फ्रीज़ किए गए जानवरों को खाते हैं. कोरोना के दौर में कैसे हुई ऑनलाइन शादी?
बीमारियां हमारे व्यवहार को कैसे बदल रही हैं? अगर बात कोरोना वायरस की करें तो इसकी वजह से ज़्यादातर देशों ने अपनी सीमाओं को बंद कर दिया है. हवाई यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. लोग एक-दूसरे से बात करने, संपर्क में आने से बच रहे हैं क्योंकि डर है कि संक्रमित ना हो जाएं.
हम क्या कर सकते हैं? समाज और देशों की सरकारें प्रत्येक नए संक्रामक रोग का इलाज एक स्वतंत्र संकट के रूप में करती हैं, बजाय इसके कि वो यह पहचानें कि दुनिया कैसे बदल रही है. जितना अधिक हम अपने पर्यावरण को बदलेंगे उतना ही अधिक हम धरती के पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाएंगे. जिससे बीमारियों की आशंका भी बढ़ेगी. सफ़ाई की आदतों को बढ़ाकर, कचरे का सही निवारण और पेस्ट कंट्रोल की मदद से इन महामारियों को नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है कि हम अपने वातावरण को बदल रहे हैं और इंसान अपनी ज़रूरतों को बढ़ाता जा रहा है.
भविष्य में भी होगी महामारी जिस तरह से साल दर साल नए रोग सामने आ रहे हैं और महामारी का रूप ले रहे हैं, ये हमें आने वाले समय के लिए मज़बूत भी बना रहे हैं. और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महामारी आगे आने वाले सालों में भी देखने को मिलेगी. हालांकि, जोखिम उस समय और विनाशकारी होता है जब वैसा ही कुछ दोबारा होने वाला हो जो पहले हो चुका हो. ये दुनिया को पलट कर रख देने वाला होता है.