कोरोना संकट: लॉकडाउन के दौरान लोगों की तरफ़ बढ़ते मदद के ये हाथ . बेंगलुरु की मार्केटिंग प्रोफेशनल महिता नागराज ने भारत में 19 मार्च को इसकी शुरुआत की है.

वह एक वॉलंटियर ग्रुप केयरमॉन्गर्स का हिस्सा हैं. बेंगलुरु की मार्केटिंग प्रोफ़ेशनल महिता नागराज ने भारत में 19 मार्च को इसकी शुरुआत की है. अब इसमें 300 वॉलंटियर हैं. उन्होंने कर्नाटक सरकार से मांग की है कि उन्हें घर में कैद लोगों को ज़रूरी सामान मुहैया कराने की इजाज़त दी जाए.


"मैं साफ़-सुथरी रहती हूँ. बराबर अपने हाथ धोती रहती हूँ और मास्क पहनकर साइकिल से कहीं भी आया-जाया करती हूँ." इन डिसक्लेमर्स के साथ ऐश्वर्या सुब्रमण्यम ने 20 मार्च को ट्विटर पर पोस्ट डाली कि वह दूसरों की मदद करना चाहती है. उन्होंने लिखा कि अगर किसी के बुजुर्ग माता-पिता बेंगलुरु में रह रहे हैं तो वह उनका हालचाल लेने जा सकती हैं. यह पोस्ट वायरल हो गई और उनके पास इस तरह के अनुरोधों की बाढ़ सी आ गई. किसी ने उन्हें केयरमॉन्गर्स के बारे में बताया. यह उनके ही शहर की एक महिला की पहल थी. एक दिन बाद ऐश्वर्या ने चार रोटियां और दही-चने की सब्जी बनाई. उन्होंने इस खाने को पैक किया, मास्क पहना और चार किलोमीटर दूर अस्पताल जा पहुंची.उनके पास हर तरह की कॉल्स आती हैं. नागराज कहती हैं कि हैदराबाद के बाहरी इलाके में एक बेहद वृद्ध महिला ने इस ग्रुप से संपर्क किया क्योंकि उन्हें दवाओं की ज़रूरत थी. अब वह दिन में पांच दफ़ा फ़ोन करके हैलो बोलती हैं और दोस्ताना आवाज़ सुनती हैं. नागराज एक ट्रेंड साइकोलॉजिस्ट हैं और जानती हैं कि इस महामारी में मेंटल हेल्थ को होने वाला नुक़सान बेहद बड़ा होगा. अब वॉलंटियर्स अकेले रह रहे लोगों से बात करते हैं और उन्हें काउंसलिंग देते हैं.



लेकिन, उनके पास अजीबोगरीब कॉल्स भी आती हैं. कोई स्विगी से ऑर्डर भिजवाने की मांग करता है तो कोई घर पर पित्ज़ा भिजवाने के लिए कहता है. सुब्रमण्यम जैसे बहुत से लोग हैं जो कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट की घड़ी में बाहर निकल रहे हैं और गरीब, बीमार, बुजुर्ग और दूसरे ज़रूरतमंदों की मदद करने की कोशिश में लगे हुए हैं. बुधवार को दिल्ली के रहने वाले किसी शख्स ने चावल, आटा, नमक और दूसरी चीजों के साथ तस्वीर डाल कर पोस्ट की है और एक छोटी लड़की यह कहती दिख रही है कि महीने भर का राशन पाने वाला पहला परिवार. जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़की थी तब कई लोगों की जान गई थीं और कई बेघर हो गए थे. उस वक्त भी उन्होंने इस तरह से ही ही सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल कर लोगों तक मदद पहुंचाई थी. उस वक्त लोगों ने जिस उत्साह के साथ उनके इस कदम को सराहा था, उसी ने उन्हें दोबारा इस तरह की पहल का हौसला दिया है. पहले दिन उन्हें सिर्फ 6,000 रुपए इकट्ठा करने में कामयाबी मिली लेकिन अचानक से रातोरात उन्हें अप्रत्याशित रूप से मदद मिलनी शुरू हो गई. किससे मदद मांगनी है." वत्स इस बात को लेकर अचरज में हैं कि कैसे फेसबुक पोस्ट शेयर करने के बाद लोग उन तक पहुँच रहे हैं. उनके दोस्त उनकी पोस्ट फेसबुक पर शेयर कर रहे हैं. वो कहते हैं कि वो अपना फेसबुक अकाउंट सिर्फ लोगों को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने के लिए इस्तेमाल करते थे. गुरुग्राम की सेक्टर 5 की रहने वाली मोना के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि लॉकडाउन की वजह से ठप पड़ गए काम के बाद अब अपने नौ लोगों के परिवार का पेट वो कैसे भरेंगी. वो और उनके पति दोनों मिलकर कपड़े पर आयरन करने का काम करते हैं और महीने का 12000 रुपए कमा पाती है, जिससे उनका घर चलता है. "मैंने अपने परिवार के लिए चावल-दाल बनाया है. हमारे देवर का परिवार भी हमारे यहाँ ही रह रहा है. कोरोना वायरस के डर से काम धंधा चौपट होने के बाद इस मदद से बहुत राहत मिली है." कोरोना वायरस ऐसे वक्त में आया है जबकि इतिहास में पहली बार इतने ज्यादा लोगों को अकेले रहना पड़ रहा है. इस महामारी ने लोगों को सामाजिक दूरी बनाने के लिए मजबूर कर दिया है. इस मुहिम के तहत क्वारंटीन में रह रहे या उम्रदराज़ लोगों को 500 रुपए और 1,000 रुपए की ग्रोसरी घर पर ही मुहैया कराना भी शामिल है. पूरे शहर में 150 से ज़्यादा वॉलंटियर्स के साथ प्रोजेक्ट मुंबई की कोशिश गरीबों तक पहुंचने की भी है. साथ ही एनजीओ फंड जुटाना चाहता है ताकि इस तबके की मदद की जा सके. बिहार के नालंदा में रहने वाले सौरभ राज सोशल सेक्टर में काम करते हैं. उनके कामकाज का दायरा लोकतांत्रिक और राजनीतिक रिफ़ॉर्स के इर्दगिर्द है. सौरभ बिहार में डॉक्टरों को पीपीई किट्स मुहैया कराने के लिए फंड्स जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. वह बताते हैं, "बिहार में हेल्थ प्रोफेशनल्स के पास पीपीई, बेसिक सेफ्टी इक्विमेंट्स और दूसरी चीजें नहीं हैं. हमने फैसला किया है कि हम इन जिंदगियां बचाने वालों की मदद करेंगे. हमने पीएमसीएच के लिए एक ऑनलाइन क्राउड फंडिंग कैंपेन शुरू किया है." इसमें 5 लोगों की एक टीम है. इस टीम में सुदिशी और अंकित राज (पीएमसीएच छात्र), शादान आरफी, चंद्र भूषण और सौरभ राज (गांधी फेलो) शामिल हैं. राज पिछले 13 दिन होम आइसोलेशन में रहे और उन्होंने बिहार में डॉक्टरों के लिए मूलभूत सुविधाओं की कमी के बारे में पढ़ा. सोशल मीडिया पर आप लोगों के जरूरतमंदों की मदद करने वाली कई कहानियां सुनते होंगे. आपने सुना होगा कि कोरोना के चलते किस तरह बड़े शहरों में रह रहे प्रवासी मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए पैदल ही चल पड़े. कई लोग इन मज़दूरों को खाना-पानी मुहैया करा रहे हैं. मदद करने वाले धैर्य के साथ चेक पॉइंट्स पर खड़े रहते हैं. लोग ग्रोसरी स्टोर्स पर लंबे इंतज़ार के बाद सामान खरीदते हैं ताकि इससे ज़रूरतमंदों को दिया जा सके.


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