अब 9/11 के स्मारक पर नए फूल बिल्कुल नहीं दिख रहे हैं. अमरीका में ये एक ऐसी जगह थी, जो आपको हमेशा गुलाब और गुलनार के ताजे फूलों से सजी दिखती थी. जहां पर पोस्टकार्ड के आकार के अमरीकी झंडे, प्लास्टिक की एक अस्थाई दीवार के पार सुनसान जगह पर रखे रहते थे. अमरीका के न्यूयॉर्क शहर का चमक-दमक से मशहूर इलाक़ा, ब्रॉडवे, जो गोरी नस्ल की महानता की मिसाल कहा जाता था और जहां हमेशा चहल-पहल रहा करती थी. वहां अब स्याह सन्नाटा पसरा है. उसका मशहूर उपनगरीय ट्रेन स्टेशन भुतहा मालूम होता है. हालांकि, न्यूयॉर्क के दुनिया भर में विख्यात मैनहट्टन इलाके से बाशिंदों को स्टेटेन आइलैंड ले जाने वाली नौकाएं, स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के पास से होते हुए, अब भी न्यूयॉर्क की खाड़ी से गुज़रती दिखाई दे जाती हैं. मगर, आप करीब से देखें तो उनमें बमुश्किल ही कोई मुसाफ़िर बैठा दिखाई देता है. कभी लोगों से ठसा-ठस भरा रहने वाला टाइम्स स्क्वॉयर, अब यूं दिखता है, मानो दुनिया में इंसानों का अकाल पड़ गया हो.
डोनाल्ड ट्रंप से यही उम्मीद थी? तो, आज जब अमरीका एक राष्ट्रव्यापी ही नहीं, वैश्विक क़यामत का सामना कर रहा है, तो ऐसे में हमें अमरीका के किरदार के बारे में कौन सी बात पता चल रही है? क्या, अमेरिकी सत्ता के केंद्र, कैपिटॉल हिल में बैठे सांसद इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं? याद रहे कि ये वो अमेरिकी सांसद हैं, जो बरसों से विधायी दांव-पेंच की तालाबंदी में कैद हैं. ये अमरीकी संसदीय व्यवस्था को अपनी ज़द में लेने वाला ऐसा सियासी लकवा है, जो दोनों पार्टियों की आपसी दुश्मनी की देन है.
मखौल उड़ाने वाला नेता फिर, ट्रंप की इस लापरवाही पर सवाल उठाने वाले मीडिया को वो 'फेक न्यूज़ मीडिया' कहकर हमेशा की तरह एक बार फिर खारिज करने लगे. इसमें खासतौर से एक पत्रकार पर उनके ज़हरीले हमले का ज़िक्र करना ज़रूरी है. जब व्हाइट हाउस के एक संवादाददाता ने ट्रंप से पूछा कि डरे हुए अमरीकियों के लिए उनका क्या संदेश है? तो, राष्ट्रपति ने कहा था-मैं उन्हें बता रहा हूं कि तुम बेहद घटिया संवाददाता हो.' ट्रंप का ओछापन और चिड़चिड़ापन उस वक़्त एक बार फिर उजागर हो गया, जब उन्होंने सीनेटर मिट रोमनी का खुद से आइसोलेशन में जाने को लेकर मज़ाक उड़ाया. मिट रोमनी, इकलौते रिपब्लिकन सीनेटर थे, जिन्होंने ट्रंप के खिलाफ़ महाभियोग में उन्हें पद से हटाने के लिए वोट किया था.
अपनी तारीफ़ के क़सीदे लोगों से हमदर्दी तो ट्रंप को दूर से भी छूकर नहीं गुज़री है. जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया है, उनके लिए हमदर्दी के दो बोल बोलने के बजाय, उनका हौसला बढ़ाने की बातें करने के बजाय, और इस संकट का सामना कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों की तारीफ़ करने के बजाय, ट्रंप व्हाइट हाउस में जब भी प्रेस से मुखातिब होते हैं, तो शुरुआत अपनी तारीफ़ से करते हैं. लेकिन, ट्रंप को समझना होगा कि ऐसे मामलों में एक जादूगर जैसे नुस्खे या फिर किसी प्रचारवादी के मार्केटिंग के हुनर यहां काम नहीं आएंगे. ये एक राष्ट्रीय आपातकाल है. जैसा कि अन्य कई विशेषज्ञ कह चुके हैं. और इसे केवल ट्वीट करके हल नहीं किया जा सकता. जिससे सिर्फ प्रचार के बूते नहीं पार पाया जा सकता. जिसका केवल लोक-लुभावन नामकरण करने से कुछ नहीं होगा. आंकड़ों की हक़ीक़त से मुंह नहीं फेरा जा सकता...और वो आंकड़े हैं, अमरीकी नागरिकों की मौत की लगातार बढ़ रही संख्या.
इस संकट से अमरीका के बारे में क्या जाना? और, हमने इस संकट से अमरीका के बारे में क्या जाना है? सबसे पहले तो, हमने ये जाना है कि ये एक बहुत अच्छा देश है. और इसका ये मिज़ाज, अचानक नहीं बना. अमरीका हमेशा से ही ऐसा रहा है. 9/11 के आतंकवादी हमलों की ही तरह, हम एक बार फिर से किसी संकट का सामना करने वाले पहले मोर्चे के योद्धाओं के निस्वार्थ भाव और बहादुरी का दीदार कर रहे हैं.
कुछ अमरीकियों की ग़लत चीजें भी देखी गईं और, हमने कुछ अलग तरह के अमरीकी बर्ताव के अपवाद के भी दीदार किए हैं. जिससे हमारा सिर शर्म से भी झुका है. जिस तरह बंदूकों की दुकानों के आगे लंबी कतारें लगी दिखीं. हथियारों की ऑनलाइन बिक्री में जिस तरह इज़ाफ़ा हुआ-ammo.com की बिक्री 70 फ़ीसद बढ़ गई है.
दो ध्रुवों में बंटा अमरीकी समाज एक बार फिर से हमारे सामने वही दो ध्रुवों में बंटा हुआ अमरीकी समाज है. इस संकट को लेकर भी हमें अमरीका में वही क़बीलाई सोच वाली प्रतिक्रियाएं दिख रही हैं, जिनसे हम पहले भी वाबस्ता रहे हैं. आज भी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक यही मानते हैं कि कोरोना वायरस के संकट को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.
कहां पर है ट्रंप की लोकप्रियता आज कोरोना वायरस के इस संकट के सामने अमरीका किस कदर बंटा हआ है, इसकी मिसाल है, हालिया गैलप पोल. इसके अनुसार, रिपब्लिकन पार्टी के 94 फीसद समर्थक, इस संकट से निपटने के ट्रंप प्रशासन के तौर-तरीकों से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वहीं, केवल 27 प्रतिशत डेमोक्रेट समर्थकों को ही ट्रंप के कोरोना वायरस से निपटने के तरीकों पर भरोसा है. लेकिन, कुल मिलाकर हर दस में से छह नागरिक इस मामले पर ट्रंप के साथ खड़े हैं. जिससे आज भी ट्रंप की लोकप्रियता की रेटिंग 49 प्रतिशत है. जो उनके शासन काल के उच्चतम स्तर के ही बराबर है.
एक मसीहा का उदय इस संकट के समय अमरीकी उदारवादियों के लिए, डॉक्टर एंथनी फ़ॉची एक ऐसे मसीहा के तौर पर उभरे हैं, जो ट्रंप प्रशासन की सत्ता को को चुनौती दे रहे हैं. डॉक्टर फ़ॉची नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी ऐंड इन्फ़्केशस डिज़ीज़ेज़ के निदेशक हैं. पोस्ट दुथ के दौर के ट्रंप शासनकाल में डॉक्टर फ़ॉची, इसका टीका मुहैया कराने वाले विशेषज्ञ के तौर पर मशहूर हो रहे हैं. जिन्होंने वायरस के प्रकोप को लेकर ट्रंप के ढुलमुल रवैये को बार-बार खारिज किया है और इसकी भयंकरता के बारे में अमरीकी जनता को आगाह किया है. आज डॉक्टर एंथनी फाँची, आम अमरीकियों के बीच ठीक उसी तरह लोकप्रिय होते जा रहे हैं, जैसी शोहरत एक ज़माने में सुप्रीम कोर्ट की उदारवादी जज रूथ बैडेर गिंसबर्ग की थी. लेकिन, कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने में कैपिटॉल हिल या अमरीकी संसद ने जैसा रवैया अपनाया है, वो हौसला बढ़ाने वाला तो क़तई नहीं दिखता. और अगर पार्टियों के दायरे से आगे बढ़कर आपसी सहयोग होता है, जो आखिर में जाकर होना ही है, तो ये किसी देशभक्ति से भरपूर आपसी सहमति का नतीजा नहीं होगा. बल्कि, खीझ पैदा करने वाले राजनीतिक विभाजन का नतीजा होगा. ठीक वैसा वैसा ही, जैसे कि आम लोग संकट के समय हड़बड़ी में ज़रूरत से ज़्यादा सामान खरीद डालते हैं. 2018 में किसी महामारी के वक़्त ज़िम्मेदारी उठाने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की विशेष टीम को भंग कर दिया गया था. ऐसे में, महामारी की रोकथाम के लिए सबसे जरूरी क़दम यानी, पर्याप्त मात्रा में टेस्ट कर पाने में नाकामी का सीधा संबंध स्वास्थ्य एवं मानवीय मानवीय सेवाओं के विभाग को फंड की कमी से है. जंग से बेहाल सीरिया के 10 लाख लोग अपने घर बार से दूर कैंपों में रह रहे हैं.
अमरीका कई बार जांच चुका था अपनी ताक़त जैसा कि 11 सितंबर 2001 के आतंकवादी हमले से पहले हुआ था, इस बार भी सरकार ने कोरोना वायरस के प्रकोप को लेकर बार-बार दी गई चेतावनियों को अनदेखा किया. हाल के वर्षों में, किसी महामारी से लड़ने की अमरीका की तैयारी कितनी अच्छी है, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए कई बार टेस्ट किए गए हैं.
वायरस अमरीका का इतिहास बदल देगा राजनीतिक रूप से देखें, तो वायरस संकट के कई नतीजे देखने को मिलेंगे. उदाहरण के लिए जब जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने सरकारी रुढ़िवाद को बढ़ावा देना शुरू किया. या फिर बराक ओबामा, अश्वेतों के बजाय गोरों के हितों को तरजीह देते दिखे, तो उनके खिलाफ़, टी पार्टी के रूप में एक नया सियासी अभियान सामने आया था. टी पार्टी का आधिकारिक इतिहास कहता है कि ये आंदोलन 3 अक्टूबर 2008 को तब शुरू हुआ था, जब राष्ट्रपति बुश ने ट्रबल्ड एसेट रिलीफ़ प्रोग्राम के कानून पर दस्तखत किए थे. और इसके ज़रिए नाकाम हो चुके बैंकों को बचाने का काम अमरीकी सरकार ने किया था. टी पार्टी की नज़र में सरकार का ये कदम, सार्वजनिक जीवन में दखलंदाजी की ऐसी मिसाल थी, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था. महान मंदी या द ग्रेट डिप्रेशन के चलते, अमरीकी जन-जीवन में सरकार के व्यापक दखल की समर्थक, डेमोक्रेटिक पार्टी बेहद शक्तिशाली होकर उभरी थी. वर्ष 1932 के बाद से डेमोक्रेटिक पार्टी ने लगातार पांच राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल की थी. दूसरे विश्व युद्ध के कारण आए अन्य सामाजिक बदलावों के साथ-साथ अश्वेतों की समानता के आंदोलन को तेज़ी मिली थी. क्योंकि अफ्रीकी मूल के अमरीकी सैनिकों ने फासीवाद के खिलाफ़ उसी तरह खून बहाया था, जिस तरह गोरों सैनिकों ने. फिर जब ये अश्वेत सैनिक अपने वतन लौटे तो उन्होंने अपने लिए बराबरी के नागरिक अधिकारों की मांग उठाई.
हर रोज़ जब मैं काम के लिए अपने घर से निकलता था, तो मैं उस स्मारक से होकर गुजरता था, जहां पर कभी न्यूयॉर्क के वो ट्विन टावर बुलंदी से खड़े थे, जो 9/11 के आतंकी हमले में ध्वस्त हो गए थे. वहां से गुजरते हुए मैं बहुत से लोगों को स्मारक पर फूल चढ़ाते और खामोशी से दुआएं मांगने देखता आया था. कई बार मेरे जहन में खयाल आता था कि क्या मैं कभी, दुनिया को बदल डालने वाली इससे भी बड़ी घटना की कवरेज करूंगा. और आज जब मैं अपनी खिड़की से बाहर सन्नाटे भरे शहर की भयावाह तस्वीर देखता हूं, तो मुझे लगता है कि ये न्यूयॉर्क नहीं कोई भुतहा शहर है. और ऐसे डरावने मंज़र को देखते हुए मुझे ये एहसास होता है कि शायद हम दुनिया को बदल डालने वाले 9/11 से भी बड़ी घटना के गवाह बन रहे हैं.