मध्यप्रदेश मे पत्रकारिता करने वाले सभी पत्रकार औद्योगिक घराने नहीं है इस बात को सरकार को समझना चाहिए,, यह सत्य है की पचास की उम्र पार कर चुके मध्यप्रदेश के 53जिलों से मासिक पत्रिका, साप्ताहिक समाचार पत्र एवं लघु समाचार पत्र छापने वाले लगभग तीस पर्सेंट पत्रकार वर्तमान मै विगत पंद्रह सोलह महीने आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे है,, और जैसे ही सरकार बदली तो इन पत्रकारों के मन मै एक विश्वास जागा की कमलनाथ की तरह शिवराज सरकार उनके हक़ नहीं मारेगी,, पर दुर्भाग्य वश कोरोना ने मरो को मार दिया जिन्होंने दो साल आधा पेट खाना खाया उनके अलावा सरकार को सबकी चिंता है,,, किसी शासकीय वरिष्ठ अधिकारी ने नहीं सोचा की जिनका जीवन पत्रकारिता पर निर्भर है ऐसे पत्रकार बेचारे कोरोना के लॉक डाउन मै कहा से अपने बच्चों के लिए रोटी की व्यवस्था करेंगे,, जनसंपर्क विभाग के अकाउंट अफसर क्रांतिदीप अलोने के हिसाब से 1दिसम्बर 2019 से जनसम्पर्क विभाग मै कंगाली का दौर शुरू हो गया था, जिन्हे इनको भुगतान नहीं करना होता उनके लिए विभाग मै कभी बजट नहीं होता,,, इस विभाग के सहायक संचालक प्रलय श्रीवास्तव ने विगत पंद्रह महीने जनसम्पर्क नीति 2014का पालन करते हुए किन किन को विज्ञापन जारी किया इसकी भी जाँच होनी चाहिए,,,, मित्रो कोरोना लॉक डाउन के बाद पंद्रह अप्रैल को आप हम माननीय लोकायुक्त महोदयऔर आर्थिक अपराध अन्वेक्षण विभाग से समय लेकर एक शिकायत पर सभी सो दो सो पत्रकार जनसंपर्क अधिकारियो के कार्यकाल की जाँच की मांग करेंगे तो तैयार रहे,,,,, मनोज शर्मा कौशल
मध्यप्रदेश मे पत्रकारिता करने वाले सभी पत्रकार औद्योगिक घराने नहीं है इस बात को सरकार को समझना चाहिए,,- मनोज शर्मा कौशल