*मजबूर ‘महाराज’,*
*शक्तिविहीन ‘शिवराज’*
भोपाल, 21
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दूरदर्शी नेता कमलनाथ जी ने बेहद मुखरता से यह सवाल खड़ा किया था कि प्रदेश जब महामारी के भीषणतम संकट में फँसा है तब भी मध्यप्रदेश में न स्वास्थ्य मंत्री है, न गृह मंत्री है, अर्थात केबिनेट का नामोनिशान नहीं है।
कमलनाथ जी की अपेक्षाएं राजनीति से प्रेरित नहीं थीं क्योंकि उनकी मान्यता थी कि इस महामारी के समय जब पूरे स्वास्थ्य विभाग में संक्रमण फैल गया है, तब स्वास्थ्य मंत्री का होना बेहद आवश्यक है । रबी की फसल खड़ी है, किसानों पर संकट है, इसलिए कृषि मंत्री और लॉक डाउन के प्रभावी परिपालन को देखते हुए गृह मंत्री। कम से कम ये तीन मंत्रालय तत्काल बेहद आवश्यक थे।
मगर आज लगभग एक माह बाद भी शिवराज सरकार ने केबिनेट मंत्रियों की अपेक्षा संभागीय मंत्रियों की नियुक्ति की है। मगर इस मंत्रिमंडल गठन से दो बातें साफ हो जाती हैं:-
*1) मजबूर ‘महाराज’:-*
महाराज ने कमलनाथ सरकार गिराने और भाजपा सरकार बनाने की जो शर्त रखी थी, उसमें यह तय किया था कि उनके कम से कम 12 समर्थक विधायकों को इस्तीफे के तुरंत बाद भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा और उन्हें खुद राज्यसभा के माध्यम से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। मगर महाराज ने इस बात का मूल्यांकन नहीं किया था कि वे अपनी सारी राजनैतिक शक्तियाँ समाप्त करने के बाद भाजपा से सौदेबाजी की क्षमता खो देंगे। क्योंकि महाराज समर्थक सारे विधायकों के इस्तीफे स्वीकार होने के बाद उनके पास कोई ताकत नहीं बची और अब कुछ उनके पास बचा है तो खुद के केन्द्रीय मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा। इसी का परिणाम है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के कई चक्कर लगाने के बाद भी उनकी एक भी बात नहीं मानी गई।
*2) शक्तिविहीन ‘शिवराज’:-*
ये सर्वविदित है कि वर्तमान भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से शिवराज जी का अच्छा सामंजस्य नहीं है। मगर अभी 24 उपचुनावों की मजबूरियों के तहत उन्हें अस्थाई रूप से मुख्यमंत्री बनाया गया है क्योंकि अभी भाजपा के पास मध्यप्रदेश के इन उपचुनावों का सामना करने के लिए कोई चेहरा नहीं है।
आज के इस संभागीय मंत्रिमंडल के गठन से ये बात और साफ हो जाती है , क्योंकि शिवराज जी की चाहत के खिलाफ भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पहले पाँच संभागीय मंत्रियों में नरोत्तम मिश्र और कमल पटेल को स्थान दिया। कमल पटेल और शिवराज जी के पूर्व से ही खराब संबंध जगजाहिर हैं। चूँकि नरोत्तम मिश्र खुद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कर रहे थे, इसलिए शिवराज जी और उनके संबंधों में खटास है। अर्थात साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व शिवराज जी को कमजोर करके अस्थाई रूप से मुख्यमंत्री पद पर रखना चाहता है। साफ है कि इस महामारी के संकट से जूझने की अपेक्षा भाजपा अपने आंतरिक राजनैतिक कलह से जूझ रही है।