अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आप्रवासियों के अमरीका में बसने पर फ़िलहाल रोक लगाने की बात कही है ट्रंप के आप्रवासियों पर फैसले का भारत पर क्या होगा असर?


अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आप्रवासियों के अमरीका में बसने पर फ़िलहाल रोक लगाने की बात कही है. उन्होंने ट्वीट किया है कि वो लोगों के अमरीका आकर बसने पर फ़ौरी तौर पर पाबंदी लगाने के फैसले पर हस्ताक्षर करेंगे. ट्रंप ने ये फ़ैसला कोरोना वायरस संकट को देखते हुए किया है. जानकारों का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप का ये क़दम राजनीतिक ज़्यादा लगता है, क्योंकि कोरोना संकट को देखते हुए अमरीका ने पहले से कई कदम उठाए हैं.


कोरोना को लेकर ट्रंप सरकार पर सवाल उठते रहे हैं, कि वो इस महामारी को देश में वक्त रहते संभाल नहीं पाए और अमरीका इसका केंद्र बन गया. अमरीका के सामने बड़ा आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया है. वहां एक तबका लॉकडाउन हटाने की भी मांग कर रहा है और कई जगह इसके लिए प्रदर्शन भी हो रहे हैं.


चुनाव के मद्देनज़र फ़ैसला? अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष पंत कहते हैं कि अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव सर पर हैं और ट्रंप वोटर्स को संदेश देना चाहते हैं कि वो इमिग्रेट्स को टारगेट करने की अपनी नीति पर बने हुए हैं और पिछले चुनावों में किया अपना वादा निभा रहे हैं. इसलिए ये चुनाव आने से पहले की ज़मीन तैयार करने का तरीक़ा लगता है. हालांकि ट्रंप कह रहे हैं कि ये अस्थायी रोक होगी, लेकिन ये कितनी अस्थायी होगी और ये रोक कब हटेगी ये कहना मुश्किल है.


वैध आप्रवासन को कम करने के लिए उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में कई प्रशासनिक क़दम भी उठाए हैं. हर्ष पंत मानते हैं कि इसकी वजह से अमरीका में वैध आप्रवासन भी काफ़ी कम हुआ है. भारत पर क्या असर आँकड़ों पर गौर करें तो ग्रीन कार्ड लेकर अमरीका जाने वाले भारतीयों में पहले ही कमी आई थी. हर्ष पंत के मुताबिक, पिछले साल तक इसमें सात से आठ प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी. उन्होंने बताया, "ट्रंप कार्यकाल के दौरान इमिग्रेट्स में भारतीयों का शेयर पहले ही कम हुआ है. क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने शुरू से ही अपनी आप्रवासी नीति को टाइट करने की कोशिश की है." अमरीका के लिए स्पाउस वीज़ा और डिपेंडेंट वीज़ा अब बहुत मुश्किल से मिलता है. अगर कोई अपने परिवार को लेकर जाना चाहता है तो वो बहुत मुश्किल हो गया है.


भारतीय छात्रों और एचाबी वीज़ा चाहने वालों पर असर हर्ष पंत कहते हैं, "ट्रंप प्रशासन की ये बड़ी नीति रही है. उन्होंने पहले एच1बी वीज़ा को टारगेट किया. कहा गया कि टेक्निकल कंपनियां लोगों को नौकरी पर नहीं रखेंगी. इसमें उनका विरोध हुआ. भारत ने भी अपनी पक्ष रखा. जिसके बाद इस मामले में लिमिट को बढ़ाया भी गया. बदलाव किए गए." लेकिन ट्रंप प्रशासन का व्यापक ट्रेंड यही है कि इमिग्रेशन अमरीका के हित में नहीं है. वो गैर कानूनी आप्रवासन के पक्ष में तो बिल्कुल नहीं हैं. लेकिन वैध आप्रवासन में भी कटौती करने की वो तमाम कोशिशें करते रहे हैं, जिसके चलते इसमें कमी आई भी है.



आप्रवासियों की संख्या अमरीका हर साल सबसे ज़्यादा वैध आप्रवासियों को अपने यहां प्रवेश देता है. अमरीकी गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2019 में 10 लाख से ज़्यादा गैर-अमरीकी लोगों को अमरीका में क़ानूनी रूस से और स्थायी रूप से रहने की इजाज़त मिली. इनमें से ज़्यादातर लोग मैक्सिको, चीन, भारत, फ़िलीपींस और क्यूबा के थे. हालांकि जानकारों की माने तो इनमें भारतीयों की संख्या 10-12 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होती है. इस 10 लाख में आधे से ज़्यादा लोग पहले से ही अमरीका में रह रहे थे और 4,59,000 लोग विदेशों से आए थे. भारतीयों की संख्या इसमें बहुत ज़्यादा नहीं है, क्योंकि भारतीय वहां हाई-एंड टेक्नोलॉजी सेक्टर में ही ज़्यादा जाते हैं. भारतीय ज़्यादातर एच1बी वीज़ा वाले होते हैं, या उनपर आश्रित- पति या पत्नी या फिर मां-बाप होते हैं. हालांकि ट्रंप की नई घोषणा के बारे में अभी विस्तृत जानकारी नहीं आई है और इसके बिना उनकी इस घोषणा की वैधता और गंभीरता के बारे में बहुत कुछ नहीं समझा जा सकता. यही बात ट्रंप के ट्वीट की भाषा से भी साफ़ होती है. ट्रंप ने लिखा है कि उन्होंने यह फैसला न सिर्फ अमरीका के लोगों की सेहत को ध्यान में रखकर बल्कि ‘महान अमरीकी नागरिकों की नौकरियां बचाने के लिए भी किया है. अब देखना है कि जब इसका कार्यकारी आदेश जारी होता है, तो उसमें क्या क्या जानकारी सामने आती है.


 


 


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