अंतरराष्ट्रीय स्तर के नामी-गिरामी विचारकों का कहना है कि कोरोना के बाद दुनिया का नेतृत्व अब अमरीका नहीं, चीन करेगा. कुछ का कहना है कि चीन का नेतृत्व कमज़ोर होगा. कई लोग कह रहे हैं कि इस महामारी से वैश्वीकरण का अंत हो जाएगा.


अंतरराष्ट्रीय स्तर के नामी-गिरामी विचारकों का कहना है कि कोरोना के बाद दुनिया का नेतृत्व अब अमरीका नहीं, चीन करेगा. कुछ का कहना है कि चीन का नेतृत्व कमज़ोर होगा. कई लोग कह रहे हैं कि इस महामारी से वैश्वीकरण का अंत हो जाएगा.कोरोना के बाद की दुनिया के बारे में जानिए क्या सोचते हैं अग्रणी विचारक, अर्थशास्त्री और दार्शनिक. संकलन-- रजनीश कुमार


संकलन-- रजनीश कुमार श्लोमो बेन-एमी इसराइल के पूर्व विदेश मंत्री और टोलेडो इंटरनेशनल सेंटर फॉर पीस के उपाध्यक्ष श्लोमो बेन-एमी ने 'स्कार्स ऑफ वार और 'वूड ऑफ पीस: द इसराइल-अरब ट्रैजिडी नाम की दो किताबें भी लिखी हैं. इसराइल के पूर्व विदेश मंत्री याद दिलाते हैं कि कोरोना वायरस से जो अभी आर्थिक संकट खड़ा हुआ है वो पहले की महामारियों में भी था. दूसरी सदी में आए एंतोनाइन प्लेग ने रोमन साम्राज्य के इतिहास में सबसे


भयावह आर्थिक संकट खड़ा कर दिया था. 541-542 ईस्वी में आया जस्टिनियन प्लेग रुक-रुक कर दो सदियों तक आतंक फैलाता रहा और इसने भी बेज़नटाइन साम्राज्य को आर्थिक रूप से तबाह कर दिया. श्लोमो बेन-एमी आगाह करते हैं, "दो विश्व युद्धों से ये बात साबित हो गई थी कि संकीर्ण राष्ट्रवाद के साथ दुनिया में शांति और स्थिरता नहीं रह सकती. इस महामारी ने संकेत दे दिए हैं कि नेशन-स्टेट और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बीच तत्काल एक नए संतुलन की ज़रूरत है. इसके बिना कोराना वायरस की महामारी महामारी और भी भयावह रूप लेगी" युवाल नोआ हरारी, इतिहासकार और दर्शनशास्त्री 'सेपियंस जैसी नामी किताब के लेखक हरारी आशंका जाहिर करते हैं कि कोरोना की वजह से सर्विलेंस राज की शुरूआत होगी. उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स में एक चर्चित लेख में लिखा, "सरकारें और बड़ी कंपनियां लोगों को ट्रैक, मॉनिटर और मैनिप्युलेट करने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती रही हैं. लेकिन अगर हम सचेत नहीं हुए तो यह महामारी सरकारी निगरानी के मामले में एक मील का पत्थर साबित होगी. उन देशों में ऐसी व्यापक निगरानी व्यवस्था को लागू करना आसान हो जाएगा जो अब तक इससे इनकार करते रहे हैं. यही नहीं, यह 'ओवर द स्किन निगरानी की जगह 'अंडर द स्किन निगरानी में बदल जाएगा". भब सरकार आपकी ऊँगली का तापमान और चमड़ी के नीचे का ब्लड प्रेशर भी जानने लगेगी". हरारी कहते हैं, "कोरोना वायरस का फैलाव नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का बड़ा इम्तहान है. अगर हमने सही फैसले नहीं किए तो हम अपनी सबसे कीमती आज़ादियाँ खो देंगे, हम ये मान लेंगे कि सरकारी निगरानी सेहत की रक्षा करने के लिए सही फैसला है".


अमर्त्य सेन अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने फाइनेंशियल टाइम्स में लिखा है, "कोरोना वायरस के पहले से ही दुनिया में कम समस्या नहीं थी. दुनिया भर में विषमता चरम पर है. यह विषमता दुनिया के अलगअलग देशों में भी है और देशों के भीतर भी है. विश्व के सबसे अमीर देश अमरीका में लाखों लोग मेडिकल सुविधा से वंचित हैं. लोकतंत्र विरोधी राजनीति ब्राज़ील से बोलिविया तक और पोलैंड से हंगरी तक में मज़बूत हुआ है". पर देखा जा सकता है. लोगों ने इस बात को महसूस किया था कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना शांतिप्रिय और स्थिर दुनिया नहीं हो सकती है". सेन कहते हैं, "भारत एक और समस्या से जूझ रहा है. लोकतंत्र के मायनों पर हमला किया जा रहा है और मीडिया की स्वतंत्रता पर शिकंजा कसता जा रहा है".


स्टीफ़न एम वॉल्ट हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफ़ेसर वॉल्ट कहते हैं कि इस महामारी से सरकारें और मज़बूत होंगी और पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलेगा. सरकारें इससे निपटने के लिए आपातकाल के नियमों को को लागू करेंगी और महामारी ख़त्म होने के बाद भी इन क़ानूनों का इस्तेमाल अपने फ़ायदे में जारी रखेंगी. वॉल्ट एक और भविष्यवाणी करते हैं कि कोविड-19 के बाद दुनिया में बड़ी तब्दीली यह आएगी कि "पश्चिम की की ताक़त पूरब शिफ़्ट करेगी. दक्षिण कोरिया और सिंगापुर ने इस महामारी का सामना बेहतरीन तरीके से किया है. चीन ने भी शुरुआती ग़लतियों के बाद खुद को संभाल लिया. दूसरी तरफ़ यूरोप और अमरीका इस महमारी के सामने लाचार दिख रहे हैं. ऐसे में महामारी के बाद दुनिया का नेतृत्व पश्चिम से पूरब की तरफ़ जाएगा". रिचर्ड एन हास काउंसिल ऑन फ़ॉरन रिलेशन के प्रमुख रिचर्ड एन हास ने फॉरन पॉलिसी मैगज़ीन में लिखा है कि कोविड -19 से पहले ही अमरीकी मॉडल फेल चुका था. उनका कहना है कि अमरीकी मॉडल की नाकामी 2008 की मंदी में भी दिखी थी और इस महामारी भी साफ़ दिख रही है. वे कहती हैं, "दूसरी बात यह कि हमारे पड़ोसी की हालत कैसी है यह आपके भविष्य से संबंधित है. अगर हमारा पड़ोसी मुश्किल में है तो यह हमारी मुश्किल भी है. आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है इसलिए किसी और की मुश्किल उसी तक सीमित नहीं रहेगी. सच तो यह है कि एकजुटता ही आज का नया स्वार्थ है. तीसरी बात यह कि वैश्विक समन्वय बहुत ही ज़रूरी है. हमें अंतरराष्ट्रीय संगठनों में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है. हम चम्मच से समंदर ख़ाली नहीं कर सकते, सबको साथ आना होगा."


कोरी शेक्स अमरीकी सरकार ने खुद को अपने हितों तक सीमित कर लिया है. जब पूरी दुनिया मुश्किल में है तो अमरीका खुद को भी नहीं संभाल पा रहा है. अब वैश्वीकरण अमरीका केंद्रित नहीं बल्कि चीन केंद्रित होगा. इसकी शुरुआत ट्रंप के आने के बाद हो गई थी जो अब और तेज़ होगी. अमरीकी आबादी का वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय व्यापार से भरोसा उठ गया है.


 


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