बाहर निकल भ्रमण जिन कीन्हां। खाकी-गण दारुन दु:ख दीन्हां।। (डॉ आर एन दिव्वेदी

*मैं*
बाहर निकल भ्रमण जिन कीन्हां।
खाकी-गण दारुन दु:ख दीन्हां।।
लम्ब लठ्ठ से होत ठुकाई।
करहु नियंत्रण मन पर भाई।।
डाउन लॉक रहहु गृह माहीं।
भ्रमण फिज़ूल करहु तुम नाहीं।।
 
*तुम*



सत्य सखा तव सुंदर वचना
भेदि न जाइ पुलिस की रचना
खाकीधारी अति बलशाली
मारहि लाठि देहिं बहु गाली
पृष्ठ भाग खलु करहिं प्रहारा
चहूं ओर मचै हाहाकारा
जदपि सखा इच्छा मन माहीं
तदपि कदापि न टहलन जाहीं।


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