कोरोना वायरस: लॉकडाउन में मछुआरों की मदद के लिए BSF ने सभाली कमान


कोरोना वायरस के कारण देश में सबकुछ बद है. लेकिन गुजरात के कच्छ में लखपत और नारायण सरोवर इलाके में रहने वाले मछुआरों के पास खुश होने की वजह है. ये वजह उन्हें स्थानीय प्रशासन और बीएसएफ़ की 79 बटालियन ने दी है. स्थानीय प्रशासन और सीमा सुरक्षा बल की 79 बटालियन यह सुनिश्चित कर रही है कि इन मछुआरों को कोविड 19 के सक्रमण से बचाया जाए. उनके लिए पर्याप्त स्क्रीनिम और मास्क की व्यवस्था की जाए और साथ ही मछली पकड़ने के उनके काम में उन्हें मदद की जाए.


अखिल भारतीय फ़िशरमैन असोसिएशन ऑफ़ इंडिया के वल्जीभाई मसानी ने बीबीसी को बताया, "आमतौर पर मछुआरों द्वारा जो मछली पकड़ी जाती है वो वेरावल के थोक बाज़ार में भेज दी जाती है और बहुत उम्दा किस्म की मछली को निर्यात कर दिया जाता है. कुछ मछलिया-स्थानीय बाज़ारों में भी बिकने के लिए जाती हैं." बीएसएफ ने स्थानीय प्रशासन की मदद से मेडिकल स्क्रीनिम की व्यवस्था की, टेस्ट की व्यवस्था की और इन लोगों को सुरक्षा से जुड़े उपकरण मुहैया कराए. बीएसएफ़ गाधीनगर के डिप्टी इस्पेक्टर जनरल एमएल गर्ग ने बीबीसी को बताया, "सबसे पहली और अहम ज़रूरत थी कि हम उनके लिए मेडिकल स्क्रीनिम की व्यवस्था करें और हमने स्थानीय प्रशासन की मदद से उसकी व्यवस्था की भी." स्थानीय कलेक्टरेट ने स्क्रीनिम की व्यवस्था तब की जब पहला जत्था रवाना हो रहा था और जब वे लौटकर आए उस वक़्त भी उनकी स्क्रीनिम की गई. बीबीसी से बात करते हुए स्थानीय तहसीलदार एएल सोलकी बताते हैं कि लखपत के 18 मछुआरों और कोटेश्वर के 94 मछुआरे 13 अप्रैल को समुद्र में गए थे और 16 अप्रैल को वे वापस लौटे.



सोलकी बताते हैं कि एहतियात बरतते हुए एक नाव में अधिकतम चार लोगों के सवार होने की ही अनुमति है. इससे पहले एक नाव में 6 लोग सवार हआ करते थे. क़रीब 500 जोड़े ग्लव्स, 500 मास्क और सैनेटाइज़र की व्यवस्था इन लोगों के लिए की गई है. यह इलाक़ा कच्छ के दयापार पुलिस स्टेशन के तहत आता है. बीबीसी से बात करते हुए यहा के सब-इस्पेक्टर जेपी सोधा ने कहा कि मछुआरों के समुद्र में जाने से पहले मछुआरों को बर्फ की आवश्यकता होती है, डीज़ल चाहिए होता है और कुछ सूखा खाना भी. हमने ये सब कुछ उपलब्ध कराने में उनकी मदद की और ये भी सुनिश्चित किया कि ये सारा सामान उन्हें सही समय पर मिल जाए. सोधा कहते हैं कि एक बार जब वे मछली पकड़कर लौटे तो पुलिस ने भी सुनिश्चित किया कि उनकी पकड़ी हुई मछली सही समय पर बाज़ार में पहुच जाए


वो कहते हैं, "हम कोशिश कर रहे थे लेकिन हम अपनी नावों को नही-ला पा रहे थे. कोरोना वायरस का डर इसका कारण था. इसके अलावा ज़रूरी सामान भी नही मिल रहा था कि हम नावों को लेकर समुद्र में उतरें." हर नाव को समुद्र में उतरने से पहले क़रीब 10 हज़ार रुपये तक की लागत की ज़रूरत पड़ती है. एक अन्य मछुआरे हसम भदाला हालाकि खुश नही-है. वो इस बात पर खेद जताते हैं कि मछुआरों को बहुत गहराई में अदर तक जाने की अनुमति नही-है. भदाला कहते हैं, "फ़िशरमैन असोसिएशन ने अनुमति मामी तो है लेकिन हम अभी सरकार की ओर से जवाब आने की राह देख रहे हैं. " .


 


 


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