कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब, वरना हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था*  - दिनेश साहू

*कुदरत का कहर भी जरूरी था साहब, वरना हर कोई खुद को खुदा समझ रहा था*


*जो कहते थे कि मरने तक की फुरसत नहीं है, वे आज मरने के डर से फुरसत में बैठे हैं*


*माटी का संसार है खेल सके तो खेल, बाजी रब के हाथ है पूरा विज्ञान फेल* 


*मशरूफ थे सारे अपनी जिंदगी  की उलझनों में, जरा सी जमीन क्या  खिसकी कि सबको ईश्वर  याद आ गया* 


*ऐसा भी आएगा वक्त पता नहीं था, इंसान डरेगा इंसान से ही पता नहीं था*


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