ना Sunday बीतने की चिंता,        ना Monday आने का डर - प्रगति वाघेला

ना Sunday बीतने की चिंता,


       ना Monday आने का डर


      ना पैसे कमाने का मोह


       ना खर्च करणे की ख्वाइश्


    ना होटल मे खाणे की इच्छा


    ना घुमने जाणे की खुशी


   ना सोना-चांदी का मोह


   ना पैसे का मोह


ना नए कपड़े पहनने की एक्साइटमेन्ट
ना अच्छे से तैयार होने की चिंता


क्या हम मोक्ष के द्वार पर पहुंच गए है



लगता है कलयुग समाप्त हो गया और सतयुग आ गया है।


दुर्गा पूजा,व्रत उपवास,हवन,रामायण, महाभारत।


प्रदूषण रहित वातावरण।


भाग -दौड़ भरी जिंदगी समाप्त।


सादगी भरा सबका जीवन - सब दाल-रोटी खा रहे हैं।


समानता आ गयी है, कोई नौकर नहीं,घर में सब मिल जुलकर काम कर लेते हैं।


न कोई महँगे कपड़े पहन रहा है न कोई आभूषण धारण कर रहा है।


सब 24 घण्टे ईश्वर को ही याद कर रहे हैं।


लोग अपार दान धर्म कर रहे हैं।


सबका अहंकार शान्त हो गया है।


लोग परस्पर सहयोग कर रहे हैं।
 
सब बच्चे बाहर से आकर माँ बाप के पास रहने लगे हैं।


घर घर भजन कीर्तन हो रहे हैं।


ये सतयुग नहीं तो और क्या है ?


 


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