हर दिन माँ को समर्पित
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कठिन रास्तो पर भी आसान सफर लगता है, यह मुझे मेरी माँ की दुआओ का असर लगता है. . .
एक मुद्दत से मेरी माँ ठीक से नहीं सोयी, जब मैंने एक बार माँ से कहा था कि माँ मुझे डर लगता है. . .!!
यह पंक्तियां माँ के स्वरूप एवं उसकी ममता को समझने हेतु पर्याप्त है। यद्यपि माँ एक ऐसा विषय है जिसका अनंत तक वर्णन किया जाए तो भी कम है। माँ हम सबके जीवन और सृष्टि का आधार है ,जो कि हमे एक प्राणी से इंसान बनाती है। माँ ही वो माध्यम है जिसके आधार पर संसार बनता एवं चलता है। ईश्वर ने माँ को हम सब को दुनिया मे लाने एवं इस दुनिया के लायक हमे बनाने का कार्य दिया है, जो कि माँ दुनिया की शुरआत से लेकर आज तक कर रही हैं। माँ का अर्थ जो हमे जन्मदात्री हो अकेले वो ही नहीं, बल्कि हर एक वो ममतामयी आँचल जिसकी छाह में एक अबोध शिशु बोधवान मानव में परिवर्तित होता है, वह सभी माँ है ।
आज दिनांक तक के अध्ययन काल मे मुझे सबसे ज़्यदा प्रभावित जिस रचना ने किया है, मै उसका सारांश आपसे साँझा कर रहा हूं। अगस्त 1933 में धनपत राय जिनको साहित्य संसार मे हम सभी मुंशी प्रेमचंद जी के नाम से जानते हैं, उनकी एक मार्मिक रचना ईदगाह के मर्म ने मेरे चिंतन को एक नई दिशा ममता के संदर्भ में प्रदान की है। हामिद एक 4 साल का बालक जो कि अपनी दादी अमीना के साथ गरीब परिस्थितियों में जीवन यापन करता है एवं ईद पर ईदगाह मेले जाने की ज़िद करता है। दादी अमीना बमुश्किल बचे हुए मात्र तीन पैसे उसे देती है मेले में खिलोनो के लिए एवं हामिद उस तीन पैसो से ही मेले में खिलोने लेने निकल पड़ता है। मेले में उस नन्हे बालक का सुंदर खिलोने और पकवान देखकर खूब मन डोलता है, परंतु वो दादी का रोटी सेकने में रोज़ हाथ ना जले इसलिए खिलोने के बदले चिमटा लेकर घर आ जाता है। दादी खिलोने के बदले चिमटा लाये हामिद को देखकर तो पहले नाराज होती है ,पर जब हामिद बताता है कि तुम्हारी उंगली नहीं जले तो मैंने यह चिमटा ले लिया। नन्हे बालक हामिद की बात सुनकर वहां के परिदृश्य में पात्रो एवं भाव की अदला बदली होती है, बुजुर्ग अमीना बालिका अमीना की तरह अब रोते हुए हामिद को दुआएं देती है औऱ अबोध हामिद दादी के डांट के बाद रोने के व्यवहार से आश्चर्य में देखता जाता हैं।
हर माँ के अंदर जब हम झाकेंगे तो हमे अमीना की तरह दिखेगी जो अपनी सुविधा को त्यागकर अपने बेटे या बेटी की खुशी के लिए एक सुंदर संसार गढ़ने में सतत प्रयासरत रहती है। एक स्त्री का माँ हो पाना ही संसार मे सबसे बड़ा ओहदा है जो एक स्त्री को पूजनीय बनाता है। पिता का योगदान भी कम नहीं है मगर माँ की ममता के आगे इस संसार मे सारे त्याग फीके है। हर स्त्री अनेक कष्ट सहकर मॉ के रूप को शिशु के जन्म से खुद की मृत्यु पर्यन्त तक अपना कर्तव्य पालन करती है। मनुष्य के बुरे दौर में पत्नी, भाई , दोस्त और सभी अपने दूर हो जाते हैं एक माँ ही हमेशा हौसला और सहारा देती है, भले संतान कितनी भी निष्ठुर एवं कर्तव्यहीन हो अपनी माँ के प्रति। माँ हमेशा अपने सपनों, आकांक्षाओं और प्राथमिकताओं का त्याग करती है, तब जाकर एक अबोध शिशु बोधवान मनुष्य में ढल पाता हैं।
आज समाज मे समय के साथ अधिक विकृत मानसिकता पनप गई है, उन लोगो के रूप में जो अपनी माँ का आदर एवं अपना माँ के प्रति कर्तव्यों का सही निर्वाहन नहीं करते। ईश्वर का दंड अटल है ,जो माँ को सुख नहीं देते, ईश्वर उन्हें सुख नहीं देता। यह वृद्धाश्रम ऐसे ही निकृष्ट मनुष्य के कर्त्तव्य हीनता के वजह से अस्तित्व में है तथा ममता देने वाली कई माँ कर्तव्यहीन संतानों के कारण असहाय है।
हमे जब तक किसी की कद्र नहीं होती, जब तक कोई पास होता है। भाग्य की विडंबना देखे कुछ लोगों के पास बहुत से रोटियां होती है, मगर रोटी देने वाली माँ नहीं होती। उस काल मे ममता के आंचल के ना होने पर मन मे कभी ना मिटने वाली टीस उठती है। जो भाग्यशाली हैं मां के सानिध्य में वो माँ के पास जाते ही माँ के आँचल में खुद को चिंता से मुक्त तथा भाग्यशाली महसूस कर पाते हैं।
इस दुनिया मे सबसे बड़ा योद्धा माँ होती है।
मेरी कलम की यह रचना सभी माँ को समर्पित, सभी माँ को प्रणाम,
माँ अनंत हैं, माँ है तो सब कुछ है।
मातृ दिवस की शुभकामनाएं।
सादर अभिवादन
अंकित दुबे