कोरोना लॉकडाउन: रेलवे के 85 फ़ीसदी किराया माफ़ करने के दावे का पूरा सच दरअसल इस पूरे विवाद के पीछे हैं दो सर्कुलर.


मज़दूर, किराया और ट्रेन. सोमवार सुबह से ही शराब की दुकानों में लगी भीड़ के अलावा कोई और चर्चा कहीं थी, तो इन्ही तीन शब्दों की थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सुबह से ही एलान किया कि प्रदेश कांग्रेस कमेटियां अप्रवासी मठ दूरों का किराया देंगी, सबको लगा कि कांग्रेस ने रा8 नीतिक तौर पर इस मुद्दे पर अच्छा कदम उठाया है. दरअसल रेलवे की तरफ से स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई दी और कहा, “केंद्र या रेलवे ने कभी भी किसी वर्कर से चाई करने की बात नहीं की है. उन्होंने बताया कि किराए का 85 फीसदी हिस्सा रेलवे पहले से दे रही है और 15 प्रतिशत राज्य को देना होता है." मंगलवार को गृह मंत्रालय की अधिकारी ने बताया, "भारतीय रेल ने प्रवासी श्रमिकों के लिए अभी तक 62 स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं. और लगभग 70 हज़ार यात्री इस सुविधा का उपयोग कर रहे हैं. आ8 13 और ऐसी ट्रेने चलाए 81ने की उम्मीद है."


दरअसल इस पूरे विवाद के पीछे हैं दो सर्कुलर. गृह मंत्रालय का एक सर्कुलर बीछेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट किया. उसमें लिखा था कि किसी स्टेशन पर टिकट नहीं बेची एगी.' ये लाइन अप्रवासी म8दूरों के अलावा किसी और तरह के यात्री टिकट की बिक्री के लिए लिखी गई थी. हमने रेलवे के कई नकारों से बात की. उनके मुताबिक, रेल किराए में सब्सिडी तो पहले से दी 8ती रही है. सरकार का हमेशा से दावा रहा है कि यात्रियों को टिकट पर सब्सिडी वैसे भी दी 8ती है. दूसरा, आम तौर पर आप कभी टैक्सी बुक करते हैं और ऐसी 8 गह 8आते हैं 8 हां से वापसी में उन्हें कोई और सवारी ना मिले, तो टैक्सी वाला आपसे आने और 81ने दोनों का किराया वसूलता है. ठीक उसी तरह रेलवे 8 ब किसी राज्य सरकार या किसी पार्टी विशेष की अपील पर विशेष ट्रेन चलाती है तो 8 हां से 8 हां तक ट्रेन खाली 8ती है तो उसका किराया भी अमूमन वसूला 8ता है. लेकिन कोरोना संकट में रेलवे ने अपना ये किराया छोड़ दिया है.



तीसरी बात ये है कि सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए इन ट्रेनों में क्षमता के हिसाब से यात्री नहीं बैठाए 87 रहे हैं. 1 मई को सबसे पहले तेलंगाना से 8ो ट्रेन चली थी. वो 24 डिब्बे की ट्रेन थी. ठिससे 1200 मजदूर अपने गृह राज्य पहुंचे थे. यानी हर डिब्बे में करीब 50 मज़दूर बैठे थे, 8 बकि इन डिब्बों में करीब 72 लोग बैठ सकते हैं. इसका मतलब इन श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में रेलवे ने ये नुकसान भी खुद उठाया. पूरी खबर 8 ब गर्म हुई तो बिहार की बीछेपी सर्मथक नीतीश सरकार ने ये ऐलान किया कि वो बिहार लौट रहे मज़दूरों के रेल किराए का पैसा लौटाएंगे. लेकिन उन्होंने ये कहा कि वो मज़दूरों के बिहार पहुंचने के 21 दिन बाद पैसा देंगे, 8ब वो अपना क्वारंटाइन पूरा कर चुके होंगे. सोमवार को ही केरल से 2,310 प्रवासी मजदूरों को लेकर दो ट्रेनें बिहार पहुंची. इन मजदूरों ने अपना रेल किराया खुद दिया. स्थानीय मीडिया में आ रही रिपोर्ट्स के अनुसार इन्होंने 910 रुपये में टिकट खरीदी. 8 ब बाहर से आए म8 दूर एवं अन्य लोग 21 दिन बाद क्वारंटाइन सेंटर से निकलेंगे तो उनको यात्रा में लगे किराया खर्च के अलावा 500 रु० एवं न्यूनतम कुल राशि 1000 रु० राज्य सरकार द्वारा दिया 8एगा बीछेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराठ सिंह चौहान ने भी राठ नीति बढ़ते देख सोमवार को ट्वीट कर कहा कि श्रमिकों का किराया प्रदेश सरकार वहन करेगी. 8 बकि प्रवासी मज़दूरों से भरी ट्रेनें इससे पहले ही राज्य में आने लगी थी. शनिवार दो मई को महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के भोपाल में विशेष ट्रेन पहुंची थी. वहीं कांग्रेस की गठबंधन सरकार वाले झारखंड में भी प्रवासी मजदूरों से किराया वसूला गया और केरल से झारखंड आने वाले मजदूरों ने बताया कि उन्हें 875 रुपये का भुगतान करना पड़ा. विशेष ट्रेन के ज़रिए केरल के तिरुवनंतपुरम से झारखंड के 8 सीडीह पहुंचे सभी मजदूरों ने भी कहा है कि उन्होंने टिकट के पैसे दिए. बीबीसी के सहयोगी पत्रकार रवि प्रकाश ने बताया कि 4 मई को ऐसी तीन ट्रेनें झारखंड पहुंची, छिनमें यात्रियों को पैसे देने पड़े. वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामासेशन कहती हैं कि बीछेपी सरकार सोमवार को साफ तौर पर रा8 नीतिक दबाव में आई और चीज़ों को कवरकवर-अप करने की कोशिश करती भी दिखी. उनका मानना है कि छिस कांग्रेस के लिए कहा 8ता रहा है कि वो मुद्दों पर स्टैंड नहीं लेती है, उसने इस मुद्दों को काफी बड़े स्तर पर उठाया. वहीं राठ नीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह मानते हैं कि ये राठ नीतिक दबाव से ज़्यादा कंफ्यूठन का मामला लगता है. सरकारी अधिकारियों ने शुरू में इस कदम का ये कहते हुए बचाव भी किया था कि ये ज़रूरी भी है ताकि असल में फंसे हुए लोग ही रेल सेवा का इस्तेमाल करें. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी के यादव ने एक स्थानीय अखबार से कहा था कि टिकट निशुल्क कर दी तो लोगों की स्क्रीनिंग में मुश्किल हो सकती है और ये सेवा सिर्फ प्रवासी मजदूरों और फंसे हुए छात्रों के लिए शुरू की गई है.


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