रमजान इबादत और आत्म शुद्धि का महीना--विजय सोनी
जोबट--भारत में अनेकों धर्म एवं संप्रदाय के लोग निवास करते हैं जो भारत की गौरवशाली परंपरा को अक्षुण्ण बनाए हुए हैं l इन्हीं में से एक धर्म है इस्लाम इस्लाम में रमजान का बड़ा महत्व है, जिसमें समाज के लोग ईश्वर के प्रति अपनी आस्था सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय की कामना के साथ अपनी इबादत कर देश में अमन और चैन बने रहने की दुआकरते हैं l इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है जो अरबी भाषा के शब्द “सलाम” और “सिल्म” से मिलकर बना है। जिसमें सलाम का अर्थ होता है -शांति और सिल्म का अर्थ होता है “एक ईश्वर /अल्लाह/ परम शक्ति के सामने बिना किसी शर्त के नतमस्तक हो जाना, झुक जाना …l
वर्तमान में कोरोना के कारण इस त्यौहार की चमक फीकी पड़ रही है l पहले इस समय इफ्तार पार्टियों की धूम और बाजार में खरीदी के कारण रौनक बनी रहती थी l पहली बार रमजान मैं उसके तौर-तरीकों से अभ्यास करने का अवसर मिला है l सकारात्मक रूप से रोजे रखकर अपने अल्लाह के प्रति अपने भाव को जागृत करने का पूर्ण प्रयास करें, साथ ही पूरी मानव जाति के लिए इबादत की जाए l कुरान शरीफ में उल्लेख है कि, अल्लाह ने जैसे मुस्लिम समाज के लोगों के लिए रोजे अनिवार्य किए हैं वैसे ही अनेक सभ्यताओं एवं धर्मों में भी अलग-अलग समय पर उपवास का प्रावधान धर्म ग्रंथों में किया गया है l आज दुनिया में आस्था पर विश्वास रखने वाले अलग अलग तरीके से उपवास करते हैं l जिन के तरीके प्रक्रिया एवं पूजा पद्धति दुनिया में आज भी अलग अलग तरीके से की जाती है, जिसके माध्यम से मानव जाति में उपवास की परंपरा बनी हुई है l रमजान माह में उपवास के लिए अरबी भाषा का प्रयोग हुआ है जिसे शाम कहा जाता है इसका अर्थ है ÷सही है ,जो रोजे के मूल भाव को बताता है इसमें व्यक्ति सूर्योदय से सूर्यास्त तक अपने शरीर की जरूरतों को रोकता है और सांसारिक मोह माया से अपने आप को बचाने की कोशिश करता है l सैयद हजरत मोहम्मद साहब के अनुसार अगर व्यक्ति हर तरह के बुरे काम से परहेज करे दो करें तो उसे रोजा करने की जरूरत नहीं है l जिससे स्पष्ट होता है कि, खान-पान छोड़ने अथवा इबादत करने का नाम रोजा नहीं होकर यह व्यक्तित्व विकास का दूसरा पहलू है l पूजा इस्लाम की सबसे उत्कृष्ट इबादत मानी जाती है l शरीर और मन के बीच संतुलन बनाए रखने का दूसरा नाम पूजा/ इबादत है जिसका पालन हर मुसलमान को करना अनिवार्य होता है l क्योंकि इससे यह एहसास होता है कि , हमारा जीवन खुदा की देन है हम अपने शरीर की पूर्ति के लिए भोजन करते हैं , जिससे हमारा जीवन चलता है , और इससे समाज और प्रगति के साथ हमें उस परम शक्ति का भी आभार व्यक्त करना चाहिए जिसकी बदौलत यह दुनिया चल रही हे l रोजा करना सिर्फ एक तरीका नहीं है जिसमें 30 दिनों तक भूखे रहकर अपने शरीर को कष्ट देकर इबादत द्वारा उस परम शक्ति की प्राप्ति करना है l वास्तव में यह आध्यात्मिक अनुभव करने का और व्यक्ति को समग्र दृष्टिकोण हासिल कर अपने व्यक्तित्व का विकास करने का अवसर है l भौतिकवाद के इस युग में व्यक्ति के लिए मोह मायाजाल और सुख सुविधा से दूर होना असंभव सा हो चुका है l व्यक्ति स्वस्थ्य होकर अपने और अपने परिवार के लिए जीता है कुछ लोग ऐसे हैं l इस्लाम द्वारा रमजान के माह में हर मुसलमान पर जकात देने की अनिवार्यता तय की गई है जो उसे उसके मापदंडों के अनुसार पूरा करना होता है l समाज में ऐसा वर्ग भी होता है जो आर्थिक तौर पर कमजोर होता है l इस कारण से ऐसे समाज के आर्थिक ,सामाजिक राजनीतिक विकास में योगदान देने के लिए मदद की बात की गई है l अपने से नीचे तबके के लोगों को मदद कर उनके जीवन में खुशहाली लाने का एक बेहतर तरीका है-जकात l जो अपने आर्थिक स्थिति और विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर किया जाता है l बरसों से चली आ रही इस परंपरा का संदेश दूसरों की मदद कर उनके जीवन में खुशहाली लाना है और सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करना है l पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब का कथन था कि, आप दूसरों की मदद करते रहो एक दिन आप बड़े आदमी बन जाओगे l खुदा ने व्यक्ति को अपने जीवन की महत्ता समझने के लिए रमजान का बेहतर अवसर दिया है, जिससे वह अपने जीवन को सकारात्मक विचारों के माध्यम से सार्थक कर सकता है l रमजान महीने के अंतिम 10 दिनों में रोजे में एक खास बात होती है जिसे इफ्तकाफ कहा जाता है, जिसमें रोजा करने वाला खुद को घरवालों और दुनिया से अलग कर पूरा समय मस्जिद में रहकर अल्लाह की इबादत में लगाता है, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाता है मन ,वचन एवं काया से पवित्रता बनी रहे l रमजान मन ,शरीर और आत्मा की पवित्रता के साथ विश्व कल्याण की भावना से की जाने वाली यज्ञ की आहुति का हिस्सा है और यह परंपराएं समाज की व्यवस्था को बनाए रखने एवं सर्वस्व संभव हेतु उपयोगी है l कोरोना जेसी महामारी के इस दौर मैं जहां इंसानों के बीच शक की दीवारें खड़ी हो रही है l अंनचाही मौत का डर बना हुआ है l ऐसे समय में सामूहिक प्रार्थना/ इबादत कर उस परम शक्ति /अल्लाह से महामारी के निवारण हेतु एवं विश्व कल्याण की भावना के साथ विनंती करने का अच्छा अवसर है , क्योंकि उस सर्वशक्तिमान सत्ता द्वारा वह सब कुछ संभव है जो मानव जाति के हाथ में नहीं है l अल्लाह सभी की इबादत को स्वीकार कर अपनी रहमत हम सब पर बनाए रखें l आमीन , आमीन, आमीन.....
रमजान इबादत और आत्म शुद्धि का महीना--विजय सोनी