भारत-चीन सीमा विवाद - सीमा पर 20 जवानों की मौत के बाद यहां के लोगों में अनिश्चितता की भावना है.

सोनम आगे कहते हैं, “ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने अपने 20 जवान खो दिए, मैं इससे बहुत दुखी हूं. मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि भारत दबाव बनाए, नहीं तो चीन ऐसी घुसपैठ करता रहेगा.”



लद्दाख के लेह शहर में एक अजीब सा सन्नाटा है. सीमा पर 20 जवानों की मौत के बाद यहां के लोगों में अनिश्चितता की भावना है. आमतौर पर दुनियाभर के सैलानियों से भरी रहने वाली सड़कें आजकल खाली पड़ी हैं. कोरोना माहामारी का असर यहां साफ़ देखा जा सकता है. लेह एक कम आबादी वाला शहर है. सड़कें बंद और टेलीफ़ोन लाइन बंद गलवान घाटी और पैंगोंग इलाके की ओर जाने वाली सड़कें बाहरी लोगों के लिए बंद कर दी गई हैं. मीडिया को भी वहां जाने की इजाजत नहीं है. अधिकारियों का कहना है कि प्रतिबंध कोरोना को ध्यान में रखकर लगाए गए हैं. बीजेपी की लेह इकाई के अध्यक्ष डॉर्जी क ने बीबीसी को बताया कि मीडिया को आगे जाने से रोका जा रहा है ताकि किसी तरह की अटकलों से बचा जा सके. पीएम के भाषण के बाद भ्रम की स्थिति नामग्याल डुरबोक गलवाल घाटी के डुरबोक इलाके में काउंसलर रह चुके हैं. वो 15 दिनों पहले ही अपने गांव से लेह लौटे थे. वो कहते हैं, “अगर वो (चीनी) हमारे इलाके में नहीं घुसे हैं, तो इतनी तादाद में सेना की तैनाती क्यों की जा रही है?" वो आगे कहते हैं, “पीएम मोदी ने कहा कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है, लेकिन हम सब गांव वालों को पता है कि घुसपैठ हुई थी. अगर गलवान घाटी को देखें, तो एक ज़मीन है जहां हमारे घोड़े चरने जाते थे लेकिन अब चीनी उस जगह को कंट्रोल कर रहे हैं, इसका क्या मतलब है?”



रिटायर्ट कर्नल सोनम वांगचुक, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में हिस्सा लिया था, बताते हैं, "हमने अपने 20 सैनिक खो दिए, कोई तो विवाद की वजह होगी. इसके अलावा क्या कारण हो सकता है प्रधानमंत्री के बयान पर जब विवाद हुआ तो पीएमओ ने सफाई देते हुए बयान जारी किया जिसमें लिखा था, सर्वदलीय बैठक में जानकारी दी गई कि इस बार काफ़ी अधिक संख्या में चीनी सुरक्षाबल लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के नज़दीक पहुंचे हैं और हमारी सेना इसका अनुरूप जवाब दे रही है. लोगों को रोजगार की चिंता एलएसी के पास रहने वाले ज़्यादातर लोग मवेशियों पर निर्भर रहते हैं, चीनी घुसपैठ के कारण उन्हें उन जमीनों को खोने का डर है जहां जानवर चरने जाते हैं. नामग्याल इरबोक कहते हैं, “चीन कई सालों से हमारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर रहा है. हम चैंगबैंग के बनजारे हमेशा से अधिकारियों के सामने ये मुद्दा उठाते रहे हैं लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता, हम लोग भुगत रहे हैं.” चिट्ठी में जनप्रतिनिधियों ने लिखा, “बीएसएनएल की सेवाएं पिछले 20 दिनों से बंद हैं जिसके कारण 17 ज़िलों में कम्यूनीकेशन ब्लैकआउट हो गया है." चिट्ठी में इसके कारण कोविड -19 के दौरान बच्चों की ऑनलाइन पढाई पर पड़ने वाले असर के बारे में जानकारी दी गई थी. संचार सुविधाएं अभी भी बंद हुए. एलिहड जॉर्ज 1962 में चीन के ख़िलाफ़ युद्ध कर चुके है. उनका सबसे छोटा बेटा भी सेना में है और अभी पैंगोंग इलाके में तैनात है. वो बताते हैं, “जैसे ही विवाद शुरू हुआ, मेरे बेटे को वहां भेज दिया गया. मैं उससे बात नहीं कर पा रहा क्योंकि संचार का कोई साधन नहीं है. इलाके के व्यापारी सेरिंग नामग्याल ने बताया कि उनकी मलाकात गलवान घाटी और पैंगोंग इलाके के कुछ लोगों से हुई जो राशन लेने लेह आए थे. उन्होंने मुताबिक, “वो लोग अपने गांव से कुछ सामान लेने यहां आए थे. उन्होंने बताया कि श्योक और डुरबोक इलाके में सेना की भारी मौजूदगी है, कई हथियार भी देखे गए हैं.” नाम्बयाल डुरबोक कहते हैं, “हमनें लद्दाख में कई जंग जैसी परिस्थितियां देखी हैं, हम हमेशा सेना के साथ खड़े रहे हैं.


अगर आप गलवान घाटी की बात करें तो अभी भी 400 से 500 सामान ढोने वाले लोग और मज़दूर सेना के साथ काम कर रहे है." एलएसी नदियों, पहाड़ों और बर्फीले इलाकों से होकर गुज़रता है. ये ज़्यादातर ऊंचाई वाले इलाके हैं, कई जगहों पर ऊंचाई समुद्रतल से 14,000 फ़ीट तक है. इन इलाकों में लड़ने के लिए ख़ास तरह की ट्रेनिंग की ज़रुरत होती है. यहां तैनाती से पहले मौसम के अनुरूप ख़ुद को ढालना होता है. इसके लिए तीन चरणों की ट्रेनिंग से गुज़रना होता है. मौसम के अनुरूप ढलने के बाद जवानों को एक और महीने तक ट्रेनिंग दी जाती है, उसके बाद ही यहां तैनाती हो सकती है. कर्नल सोनम के मुताबिक, “ऊंचाई पर लड़ने के दौरान आपकी एनर्जी जल्दी ख़त्म होने लगती है और हथियार उतने कारगर साबित नहीं होते. हेलिकॉप्टर के भार उठाने की क्षमता भी कम हो जाती है. इसलिए पहाड़ों पर लड़ने के लिए आपको ख़ास तरह के हथियार चाहिए. हम 1962 का युद्ध हार गए थे क्योंकि हम इसके लिए तैयार नहीं थे. हमारे पास हथियार और सैनिकों की कमी थी.” सोनम आगे कहते हैं, “ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने अपने 20 जवान खो दिए, मैं इससे बहुत दुखी हूं. मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि भारत दबाव बनाए, नहीं तो चीन ऐसी घुसपैठ करता रहेगा."


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