लॉक डॉउन के दौरान जब मजदुर पैसे कि कमी के कारण पलायन कर रहे थे, तब सोसल मिडिया पर बीजेपी के कुछ नेता मजदुरों का उपहास उड़ा रहे थे इसी लॉकडाउन के दौरान एटलस साईकिल के फेक्ट्री पे ताला लग गया अब क्या कहेंगे जनाब ? दिनेश साहू - प्रवक्ता म.प्र. कांग्रेस कमेटी


भोपाल - विश्वमहामारी कोरोना के चलते जब 24 मार्च से संपूर्ण देश में लॉकडॉउन लगा दिया गया था तब पैसे की कमी के कारण देश के बड़े शहरों से मजदुर वर्ग बड़ी मात्रा में अपने घरों की तरफ हजारों किलोमिटर की यात्रा पर पैदल ही अपने परिवार सहित निकल गये थे, और इस दौरान रास्ते में इन मजदुरों के साथ जो भी कुछ हुआ वो किसी से छुपा नहीं हैसवाल इस बात का नहीं था कि मजदुर हजारों किलोमिटर की पैदल यात्रा कर अपने घरों कि तरफ जा रहे थे सवाल इस बात का था कि मजदुर आखिर पलायन कर क्यों रहे थे ? उन्हें न तो दुरी कि चिन्ता थी और ना ही जान का परवाह वो सिर्फ इतना कहते थे कि इस तरह यहाँ भूखों मरने से तो अच्छा है कि हम अपने परिवार वालों के बीच पहुंचकर मरें इसका स्पष्ट कारण जो हमें दिखता है वो ये था कि लॉकडाउन के दौरान जब काम बंद हो गये थे तब उनके समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो गया जब तक उनके पास जमा पैसा था तब तक तो इन मजदुरों ने बर्दाश्त किया लेकिन जब पैसा और अनाज खत्म हो गया तब इनके अन्दर घबराहत पैदा होने लगी इसके साथ ही जो मजदुर किराये से रहते थे उनके मकान मालिक किराया मांगने लगे, जब इन सब पेरशानियों का सामना करते हुये मजदुरों का धैर्य टुट गया तब ही वे मजबुर होकर अपने घर के लिये निकले इन मजदुरों का अपने घरों के लिये हजारों किलोमिटर ही पैदल चलकर निकलना सरकार के लिये चुनौति बन गया था क्योंकि ये लोग पैदल तो निकल गये लेकिन कई किलोमिटर भुखे प्यासे अप्रैल महिने कि भीषण गर्मी के कारण रास्ते में उन्हें बहुत बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा कई मजदुर तो रास्ते में ही मर भी गये और मजदुरों की इस समस्या पर केंद्र एवं राज्य सरकार असहाय नजर आई सरकार के काफी प्रयासों के बावजुद भी मजदुरों को कष्ट से निजात नहीं दिला पाई। ऐसे ही समय में बीजेपी के कुछ नेता प्रधानमंत्री के बचाव के लिये सोसल मिडिया पर अचानक प्रकट हुये अपनी नेतागिरी चमकाने और प्रधानमंत्री के बचाव में उन्होंने बिना ही सोचे विचारे उल्टा ही मजदुरों से सवाल करना प्रारम्भ कर दिया कि तुम लोग ने जीवन भर कमाया और तीन महिने का राशन भी इक्ट्ठा नहीं कर पाये ? तुम्हारी जिन्दगी किस काम की ?


अभी मै कुछ दिनों से न्युज चैनल में देख रहा था और समाचार पत्रों में भी पढ़ रहा था कि लॉकडाउन के दौरान पैसे की कमी के वजह से एक समय विश्व की नंबर वन रही एटलस साईकिल की फेक्ट्री बंद होने के कगार पड़ आ गई है और आज मुझे ज्ञात हुआ कि एटलस साईकिल के फेक्ट्री पे ताला डल गया। आज मेरे मन में विचार आया कि आज मै उन नेताओं से जो मजदुरों कि मजबुरी के समय उनका उपहास कर रहे थे उनसे कम से कम इतना तो पुछ सकता हूँ कि आप लोग इन मजदुरों पर उंगली उठा रहे थे कि जीवन भर कमाने के बाद तीन महिने का राशन भी नहीं जमा कर पाये आप लोग इतना बता दिजिये कि यह साईकिल कंपनी लगभी 70 साल से भी ज्यादा पुरानी होगी और एक जमाने में विश्व की नंबर एक साईकिल कंपनी थी जो कि लॉकडाउन के तीन माह नहीं झेल पायी और धाराशायी हो गई तो फिर आप लोग असहाय मजदुरों से इस तरह का सवाल कर उन्हें अपमानित कर रहे थे जब एटलस साईकिल का कई वर्षों पुराना बनाया साम्राज्य इस लॉकडाउन के दौरान धाराशायी हो गया तो फिर मजदुर से इस तरह के सवाल करना कितना जायज है ? वो भी सिर्फ इसलिये कि कि आप बीजेपी के नेता हो और केंद्र में आपकी पार्टी की सरकान है, मै आप लोगों को बताउं अगर इसी लॉकडाउन के दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती ना तो आप के पार्टी के नेता वो तांडव करते ऐसा प्रतीत होता की भारत में प्रलय आ गया और देश का एक भी वक्ति अब जीवित नहीं बचेगा।


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