तुझे क्या कहूं* *बीमारी कहूं कि बहार कहूं* - श्रीमती मोनिका उपाध्याय ( सह सम्पादक) June 13, 2020 • Mr. Dinesh Sahu *तुझे क्या कहूं* *बीमारी कहूं कि बहार कहूं* *पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं* *संतुलन कहूं कि संहार कहूं* *कहो तुझे क्या कहूं* . *मानव जो उदंड था* *पाप का प्रचंड था* *सामर्थ्य का घमंड था* *मानवता खंड-खंड था* . *नदियां सारी त्रस्त थी* *सड़के सारी व्यस्त थी* *जंगलों में आग थी* *हवाओं में राख थी* *कोलाहल का स्वर था* *खतरे में जीवो का घर था* *चांद पर पहले थे* *वसुधा के दर्द बड़े गहरे थे* *फिर अचानक तू आई* *मृत्यु का खौफ लाई* *मानवों को डराई* *विज्ञान भी घबराई* . *लोग यूं मरने लगे* *खुद को घरों में भरने लगे* *इच्छाओं को सीमित करने लगे* *प्रकृति से डरने लगे* . *अब लोग सारे बंद है* *नदिया स्वच्छंद है* *हवाओं में सुगंध है* *वनों में आनंद है* . *जीव सारे मस्त हैं* *वातावरण भी स्वस्थ है* *पक्षी स्वरों में गा रहे* *तितलियां इतरा रही* . *अब तुम ही कहो तुझे क्या कहूं* *बीमारी कहूं कि बहार कहूं* . *पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं* *संतुलन कहूं कि संहार कहूं* *कहो तुझे क्या कहूं* *