तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी। इस बार जून के महीने में मां, मैं मायके नहीं आ पाऊंगी ( श्रीमती कामिनी परिहार - धार / मध्यप्रदेश)


तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराऊंगी।


इस बार जून के महीने में मां, मैं मायके नहीं आ पाऊंगी।


बचपन की वो सारी यादें, दिल में मेरे समायी हैं।


बड़े लाड़ से पाला, कहके कि तू पराई है।


संस्कार मुझको दिए वो सारे, हर दर्द सिखाया सहना।


जिसके आंचल में बड़े हुए, आ गया उसके बिन रहना।


इंतजार में बीत जाते हैं, यूं ही महीने ग्यारहा।


जून के महीने में जाके, देखती हूं चेहरा तुम्हारा।


कितने भी पकवान बना लूं, कुछ भी नहीं अब भाता है।


तेरे हाथ का बना खाना, मां! बहुत याद है आता ।


शरीर जरूर बूढ़ा होता है, पर मां-बाप नहीं होते हैं।


जब बिटिया ससुराल से आती है, तो खुशी के आंसू रोते ।


तेरे साये में आ के मां, मुझ को मिलती है जन्नत।


खुद मशीन सी चलती है, मुझको देती है राहत।


मां कहती है- क्या बनाऊं, बता तुझे क्या है खाना ?


पापा कहते - बाहर से क्या है लाना ?


जो ग्यारह महीने भाग-दौड़ कर, हर फर्ज अपना निभाती है। जून का महीना आते ही फिर बच्ची बन जाती है।


ग्यारह महीने ख्वाहिशें, मन के गर्भ में रहती हैं।


तेरे पास आते ही मां, जन्म सभी ले लेती हैं।


देश पे है विपदा आयी, मैं भी फर्ज निभाऊंगी।


इस बार जून के महीने में, मैं मायके नहीं आ पाऊंगी।


तुम भी अपना ख्याल रखना, मैं भी मुस्कुराउंगी।


इस बार जून के महीने में मां, मैं मायके नहीं आ पाऊंगी।


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