उत्तर प्रदेश: सिखों को बंटवारे के बाद मिली ज़मीन पर विवाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आश्वासन मिला बावजूद इसके नोटिस मिलना जारी है


भारत विभाजन के बाद ही पाकिस्तान के अलग-अलग जगहों से लाकर कई सिख परिवारों को उत्तर प्रदेश में बसाया गया था. ये परिवार लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, रामपुर, सीतापुर और बिजनौर जिलों में बसे हुए हैं.



उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले की निघासन तहसील के सिसैया गांव के रहने वाले अंग्रेज़ सिंह काफ़ी परेशान हैं क्योंकि जिस ज़मीन को उनके पुरखों ने पिछले छह दशक में तैयार किया और बनाए रखा, उस ज़मीन से हटाने के लिए उन्हें वन विभाग ने नोटिस दे दिया है. नोटिस पाने वाले अपने गांव में अकेले अंग्रेज़ सिंह ही नहीं हैं बल्कि कई लोग हैं. इसी तहसील के रणनगर गांव के भी कई लोगों को वन विभाग ने ज़मीन खाली करने का नोटिस दिया है. यह नोटिस पिछले कुछ दिनों में न सिर्फ लखीमपुर में बल्कि उत्तर प्रदेश के तराई इलाकों में बसे तमाम सिख परिवारों को मिल चुका है. इन लोगों ने अपनी आवाज़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाई जिसके बाद इन्हें आश्वासन मिला कि किसी को बेदखल नहीं किया जाएगा. बावजूद इसके नोटिस मिलना जारी है और कुछ लोगों के खिलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई है.


कौन हैं ये सिख? भारत विभाजन के बाद ही पाकिस्तान के अलग-अलग जगहों से लाकर कई सिख परिवारों को उत्तर प्रदेश में बसाया गया था. ये परिवार लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, रामपुर, सीतापुर और बिजनौर ज़िलों में बसे हुए हैं. लखीमपुर खीरी जिले के रणपुर गांव में ऐसे क़रीब 400 सिख परिवार हैं और गांव की आबादी लगभग 1500 है. पूरा गांव ही इन्हीं सिखों का है जो विभाजन के वक़्त यानी 1948 के आस-पास यहां आकर बसे हैं.


वन विभाग का क्या है कहना? जसवीर सिंह बताते हैं कि सिर्फ़ लखीमपुर में ही नहीं बल्कि भारत विभाजन के बाद पंजाब से आकर उत्तर प्रदेश में बसे करीब चार हज़ार सिख परिवार इस समय अनिश्चितता और आशंका से घिरे हुए हैं. वो कहते हैं कि सात दशक से ज़मीन पर काबिज़ होने और मालिकाना हक़ होने के बावजूद इन पर बेदखली का ख़तरा मँडरा रहा है. हालांकि वन विभाग का कहना है कि सिर्फ उन्हीं लोगों को नोटिस भेजा गया है जिन्होंने वन विभाग की ज़मीन पर अतिक्रमण किया है.


अनिल कुमार पटेल कहते हैं कि कोरोना संकट की वजह से वन विभाग ने किसी तरह का दबाव भी नहीं बनाया है लेकिन कुछ लोग जानबूझकर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वो कहते हैं, "अतिक्रमण हमने पहले भी हटाया है कई जगहों से और अब भी हटाने की कोशिश कर रहे हैं. जिनकी ज़मीनें वैध होंगी, वो कागज़ दिखाएं, उन्हें कुछ नहीं कहा जाएगा." . बिजली गिरना कैसे हो जाता है जानलेवा, कैसे बच सकती है जान


बिजनौर और रामपुर में भी दिए गए नोटिस हाल ही में बिजनौर में पीएसी को ज़मीन देने के लिए भी क़रीब 650 परिवारों को प्रशासन ने नोटिस दिया है जिसमें अधिकतर परिवार सिखों के हैं. रामपुर ज़िले की स्वार तहसील में भी वन विभाग कई गांवों में बसे परिवारों को नोटिस दिया है. पीलीभीत ज़िले में भी कुछ परिवारों को नोटिस दिए गए हैं.


`फिर किसने किया कब्ज़ा? स्थानीय पत्रकार मोहित शुक्ल बताते हैं कि दरअसल इस इलाके में कई बड़े काश्तकार हैं जिन्होंने वन विभाग की हज़ारों एकड़ ज़मीन कब्ज़ा कर रखा है. उनके मुताबिक, "जहां घने जंगल हैं वहां लोग आगे नहीं बढ़ पाए लेकिन जहां वन विभाग की ज़मीन पर केवल झाड़-झंखाड़ है, उसे साफ़ करके ये लोग आगे बढ़ते गए हैं. इसमें वन विभाग के लोगों की भी लापरवाही रही है कि कभी किसी से कुछ कहा नहीं गया. बड़े काश्तकार छोटे किसानों को बटई पर ज़मीन देते हैं और ये किसान यहां खेती करते हैं. हालांकि इनके पास अपनी भी ज़मीनें इस बीच, इस मामले में शिरोमणि अकाली दल के अलावा आम आदमी पार्टी और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने भी सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. सिख परिवारों का आरोप है कि मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद उन्हें परेशान किया जा रहा है जबकि प्रशासन का कहना है कि अवैध तरीके से सरकारी जमीनों पर काबिज़ लोग जानबूझकर इसका राजनीतिकरण कर रहे हैं.


 


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