गोल्ड लोन- एक उम्मीद की किरण कोरोना के दौर में गोल्ड लोन लोगों को भा रहा है

 


जब दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाएँ महामारी की वजह से अनिश्चितताएँ झेल रही हैं. भारत की जीडीपी के संकुचन की आशंका जताई जा रही है. ऐसे समय में गोल्ड सिर्फ़ एक ऐसी धातु है जिसका बाज़ार भाव बढ़ रहा है और ये अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई नहीं है.



भारत में क़र्ज़ हासिल करने के लिए गोल्ड लोन हमेशा से एक पसंदीदा विकल्प रहा है. ज़्यादातर भारतीय सोने से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं और उसे बेचना नहीं चाहते हैं.



लेकिन मुश्किल समय में वे उसका इस्तेमाल करते हैं. क़र्ज़ देने वालों के लिए भी ये एक बेहतर संपत्ति होती है जिसको गिरवी के रूप में रखकर वे कुछ पैसा उधार दे सकते हैं. चूंकि इस समय में जब बैंक संभलकर क़दम उठा रहे हैं, तब नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियाँ जैसे मणप्पुरम फाइनेंस लिमिटेड आदि इस अवसर का फायदा उठाकर ज़्यादा क़र्ज़ दे रही हैं और ब्याज़ कमा रही हैं. पूरे भारत में कई छोटे व्यवसायी, किसान और व्यवसायी गोल्ड लोन की मदद से लॉकडाउन की वजह से पैदा हुई आर्थिक मुश्किलें हल कर रहे हैं. दक्षिणी मुंबई में अमिता प्रशांत तावडे वर्ली क्षेत्र में एक ब्यूटी पार्लर चलाती हैं. उन्होंने अपनी चार चूड़ियों और दो गले की चेन के बदले में तीन लाख रुपए का लोन हासिल किया है.


छोटे कारोबारियों के लिए मौक़ा वहीं, पुणे की एक व्यापारी दिशा दिनेश परब की हालत भी कुछ ऐसी ही है. दिशा कहती हैं. "मैं टिफिन बनाने के काम में 10 सालों से हूँ. पहले मैं प्रति दिन 80 रुपए की दर से 40 से 50 टिफिन तैयार किया करती थी. लेकिन अब मेरे टिफिन की कीमत 60 रुपए हो गई है और हर रोज़ बस 10-15 टिफिन बना पाती हूँ. मेरी सामान्य कमाई की तुलना में ये ना के बराबर है." "मैं पहले कंस्ट्रक्शन मज़दूरों के लिए भी टिफिन बनाती थी. लेकिन अब वे सब चले गए हैं. अब मेरे टिफिन की कोई मांग नहीं रह दिशा के दो बच्चे हैं, जो अभी पढ़ रहे हैं और दिशा के पति कंस्ट्रक्शन बिज़नेस में हैं. लॉकडाउन की वजह से उनके पति की नौकरी चली गई है. दिशा के परिवार के पास सड़क किनारे एक दुकान भी है, जिसे वे प्रतिमाह 15 हज़ार रुपए पर चढ़ाया करती थीं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब ये कमाई भी बंद हो गई है क्योंकि कोई उनकी दुकान लेने के लिए तैयार नहीं है. लेकिन जब कमाई के सभी रास्ते बंद हो गए तो दिशा ने एक स्थानीय सहकारी बैंक से गोल्ड लोन लेने का फैसला किया. उन्होंने अपनी चार चूड़ियां, एक नाक की बाली और मांग टीके को गिरवी रखकर ढाई लाख रुपए हासिल किए हैं. बैंक लोन लेना मुश्किल अर्थव्यवस्था में मंदी और महामारी की वजह से बैंक काफ़ी संभलकर क़र्ज़ दे रहे हैं. डोमेस्टिक रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा है कि बैंक जिस गति से लोन देते हैं, वह साल 2020-21 में सिर्फ 1 फ़ीसदी रह जाएगी जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यही दर 6.14 फ़ीसदी थी. मणप्पुरम फाइनेंस लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ वीपी नंद कुमार कहते हैं, "हम मानते हैं कि गोल्ड लोन इस साल भी हालिया ट्रेंड को बरकरार रखते हुए 10 से 15 फ़ीसदी की दर से बढ़ेंगे. हमें ये लगता है कि जब लोगों को ये पता चलेगा कि सोने की ऊंची कीमतें बरकरार रहने वाली हैं तो वे सोने को पूरी तरह बेचकर अच्छी रकम हासिल करने का विचार त्यागकर गोल्ड लोन लेने के बारे में सोचेंगे."


गोल्ड लोन- एक उम्मीद की किरण जब दुनिया भर की कई अर्थव्यवस्थाएँ महामारी की वजह से अनिश्चितताएँ झेल रही हैं. भारत की जीडीपी के संकुचन की आशंका जताई जा रही है. ऐसे समय में गोल्ड सिर्फ एक ऐसी धातु है जिसका बाज़ार भाव बढ़ रहा है और ये अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई नहीं बैंक पर्सनल, बिज़नेस और होम लोन देने में सावधानी बरत रहे हैं क्योंकि वे पहले से लौटाए नहीं गए क़ों के तले दबे हुए हैं. एनबीएफसी कंपनियों की स्थिति बेहतर है क्योंकि उनकी गोल्ड लोन में विशेषज्ञता है और उनके सामने एक बैंक जैसी चुनौतियाँ नहीं हैं. सोने की कीमतें कर्जदाताओं को भी राहत दे रही हैं क्योंकि ये गिरवी रखे हुए सोने के लिए बहुत अच्छी बात है. क्योंकि अगर कोई अपना लोन वापस नहीं करता है तो उनके पास गिरवी रखे हुए सोने की कीमत इतनी है कि वे अपना क़र्ज़ वसूल सकते हैं. ऐतिहासिक रूप से भी ये देखा गया है कि गोल्ड लोन के मामले में काफ़ी कम बार ऐसा होता है कि लोग क़र्ज़ वापस न करें क्योंकि सोने के साथ लोगों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं. और वे सच में अपने सोने को वापस पाना चाहते हैं. क़र्ज़दाता भी गोल्ड लोन देना चाहते हैं क्योंकि गिरवी रखे हुए सोने की कीमत क़र्ज़ दी गई रक़म से हमेशा ज़्यादा होती है. ऐसे में महामारी के इस दौर में गोल्ड लोन क़र्ज़दाताओं और क़र्ज़ लेने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए एक राहत देने वाला विकल्प है.


 


 


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