टीवी डिबेट के दरम्यान ही राजीव त्यागी पर दिल का दौरा पड़ गया था
एक टीवी चैनल के डिबेट के बाद दिल का दौरा पड़ने से कांग्रेस के प्रखर प्रवक्ता राजीव त्यागी की मौत के बाद टीवी पत्रकारिता के तहजीब और एंकरों के तौर-तरीके फिर सवालों के घेरे में हैंटीवी बहस खत्म होने के बाद चंद मिनटों के भीतर उन्हें दिल का दौरा पड़ा थाडॉक्टरों का कहना है कि टीवी डिबेट के दरम्यान ही राजीव त्यागी पर दिल का दौरा पड़ गया था। बंगलुरू की सांप्रदायिक हिंसा पर 'आज तक' पर होने वाली इस बहस में वो भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के मुकाबिल बहस कर रहे थे'दंगल' नामक इस कार्यक्रम के एंकर रोहित सरदाना थे।
यह कहना मुनासिब नही हैं कि त्यागी डिबेट के दरम्यान क्रिएट तल्खियों और तनाव के कारण हार्ट अटैक का शिकार हुए, लेकिन यह जग जाहिर है कि टीआरपी बढ़ाने के लिए टीवी चैनल संयम और संतुलन की समस्त मर्यादाओं को कुर्बान करने में भी नहीं झिझकते हैं। टीआरपी बटोरने वाली ज्वलनशील सामग्री में इन दिनों राष्ट्रवाद, धर्म और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दे चैनलों के हाथ आ गए हैं। ये मुद्दे केन्द्र सरकार की राजनीतिक प्राथमिकताओ में काफी ऊपर हैं। यह महज संयोग या दुर्योग है कि जहां इन मुद्दों के सुलगने से चैनलों की व्यवसायिक हित सध जाते हैं, वही सरकार की राजनीतिक मंशाएं भी पूरी होती हैं। टीवी के बाजार की राजनीतिक मंशाएं भी पूरी होती हैं। टीवी के बाजार में राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता सबसे ज्यादा बिकाऊ मुद्दे माने जाते है। एंकर अपनी चतुराई से ऐसे मुद्दों पर बहस को तैश, तनाव और तल्खियों के सबसे ऊंची पायदान पर पहुंचाने की कोशिश करते हैं। शब्दों में तेजाब और चिंगारियों के समन्वय से एंकर स्टुडियो को युद्ध या दंगों की जमीन में तब्दील कर देते हैं। एंकरों की यही भूमिका लोकतंत्र और समाज के लिए प्राणघातक सिद्ध हो रही हैं। सिर्फ एंकर ही नहीं, राजनेता भी टीवी के मंच पर आग उगलने में पीछे नहीं रहते हैं।
प्राइम टाइम की समूची बहस की रणनीति ही पक्षविपक्ष को मर्म को भेदने वाली होती है। सामाजिकता और सार्वजनिक शिष्टाचार के मानदंडो को ताक में रख कर तराजू पर यह परखा जाता है कि किस प्रवक्ता ने अपने शब्दों में कितना तेजाब घोला है? राजीव त्यागी से संबंधित दुखद एपीसोड में संबित पात्रा के शब्दों की बानगी इसकी पुष्टि करती है। बहस में संबित पात्रा यह कहते नजर आ रहे हैं- "हमारे घर के जयचंदों ने हमारे घरों को लूटा है। अरे नाम लेने मे शर्म कर रहे हैं। वो घर जला रहे हैं और यहां जयचंद नाम तक नहीं ले पा रहे हैं। एक टीका लगाने से कोई सच्चा हिंद नहीं बन जाता है। टीका लगाना है तो दिल में टीका लगाओ और कहो कि किसने घर जलाया है"। त्यागी बीच में कहते रहे कि "मैं जवाब देना चाहता हूं”...लेकिन उनकी अपेक्षाएं दरगुजर कर दी गईं।
न्यूज चैनलों पर चीख-चिल्लाहट भरी एंकरिंग ने संवाद और शास्त्रार्थ की सारी परम्पराओं को ताक पर रख दिया है। राष्ट्रवाद, धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर टीवी चैनलों के स्टुडियो में एक किस्म का 'एंकर जेहाद' जारी है। यह जेहाद जहां विपक्ष को जलील कर रहा है, वहीं समाज के हर तबके पर जहर छिड़क रहा है। इन कृत्यों से संविधान, लोकतंत्र ,राजनीति, संस्कृति सहित समाज की बौद्धिकता प्रदूषित हो रही है। दिलचस्प यह है कि बौद्धिकता के नाजुक तकाजों, तर्कों और तकरीरों को स्वाहा करने के लिए एंकरों का यह जेहाद इंसानी तसव्वुर के आसमान में बिजली की तरह कड़कता और झपटता है, बहस के निष्कर्षों को मन-माफिक मोड़ देने के लिए बेमतलब चीखता-चिल्लाता है, धमकाता है, डराता हैचौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि एंकर के पसंदीदा हैचौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि एंकर के पसंदीदा राजनीतिक प्रवक्ता, सैन्य अधिकारी, पत्रकार, विशेषज्ञ और विषय अधिकारी इस खेल में महती सहयोग दे रहे हैं।
त्यागी को अपनी श्रद्धांजलि में दूसरे कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक मुद्दों पर प्रायोजित टीवी डिबेट की रणनीति का खुलासा किया है। गौरव वल्लभ कहते हैं- "त्यागी एक सच्चे देशभक्त थेकांग्रेस प्रवक्ता के नाते मैं महसूस कर सकता हूं कि कल वो डिबेट के दौरान किस तनाव मे होंगे ? यह दबाव हमारे धैर्य, सहनशीलता और आचरण की परीक्षा देने के समान होता हैडिबेट का टायटल या तो समाज को बांटने वाला होता है अथवा ऐसा होता है कि सत्ताधारी दल को बगैर डिबेट ही विजयी घोषित किया जा सके।
सत्ताधारी दल के प्रवक्ताओं को हम पर, हमारे परिवार, धर्म, पहनावे, शीर्ष नेतृत्व और सिर पर लगे तिलक पर ओछी टिप्पणी करने की छूट होती है, ऐसा करने पर उन्हे कोई नहीं रोकता है...। आरोपों के जवाब के लिए हमें पर्याप्त समय नहीं दिया जाता और अगर समय दे दिया जाता है तो आवाज धीमी कर दी जाती है, तकनीकी कारणों से संपर्क तोड़ दिया जाता है, हमारे जवाब देते वक्त ही ब्रेक आ जाता है...क्या हमारे पूर्वजों ने इसी लोकतंत्र के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी थी और संविधान दिया था? एक कांग्रेस प्रवक्ता के सामने भाजपा, आरएसएस और स्वतंत्र विशेषज्ञ के नाम पर भाजपा का समर्थन करने वाले तीन-चार घोषितअघोषित प्रवक्ता होते है। पिछले पंद्रह दिनो में प्राइम टाइम में क्या एक भी डिबेट शिक्षा नीति या पर्यावरण जैसे मुद्दो पर पर आपने देखी या सुनी... सोचिए जरूर कि ऐसा कब तक चलेगा” ...?
गौरव वल्लभ व्दारा प्रस्तुत सच्चाई को महज इसलिए अनसुना नहीं करना चाहिए कि वो कांग्रेस के प्रवक्ता हैं। उनके अपने अनुभव इसके पीछे हैं। टीवी के तटस्थ दर्शक भी इस क्रूर सच्चाई को महसूस करते हैंएनडीटीवी के रवीश कुमार जैसे अपवादों को छोडकर ज्यादातर एंकर सत्ता से सवाल करना भूल गए हैं। चौंकाने वाली बात तो यह है कि एंकर सरकार से सवाल पूछने के बजाय विपक्ष से जवाबदेही करते हैं और सरकार की ओर से खुद जवाब देते हैं