'तानाजी' फ़िल्म शिवाजी महाराज के क़रीबी रहे तानाजी मालुसरे के जीवन पर आधारित थी.

हाल ही में आई 'तानाजी' फ़िल्म शिवाजी महाराज के क़रीबी रहे तानाजी मालुसरे के जीवन पर आधारित थी. एक सामान्य परिवार के सैनिक की कहानी को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का श्रेय फिल्मनिर्माता को ज़रूर जाता है. लेकिन, इस दौरान सिनेमाई आज़ादी का इस्तेमाल करते हुए ऐतिहासिक तथ्यों से भी छेड़छाड़ की गई है. उन्हें तोड़-मरोड़कर गलत तरीके से दिखाया गया है. फ़िल्म के कई दृश्यों से पता चलता है कि ऐसा जानबूझकर हुआ है. तानाजी फ़िल्म में ऐसे 11 दृश्य हैं, जिनका इतिहास से कोई सबध नही हैं.1. हिदूमसुलमानों की जग सेतुमाधव पगड़ी बताते हैं कि शिवाजी महाराज के राज्य में किसी एक धर्म या जाति के लोग नही रहते थे, ये एक राजनीतिक लड़ाई थी.और अगर ऐसा था तो सभी हिदुओ-को शिवाजी महाराज की तरफ़ और सभी मुसलमानों को मुगलों की तरफ़ चले जाना चाहिए था लेकिन, ऐतिहासिक रूप से ऐसा नही-हुआ. औरंगजेब की तरफ़ से लड़ने वाले उदयभान राजपूत थे और उनके साथ-साथ 500 राजपूत सैनिकों ने उस जग में अपनी जान गवाई थी. समकालीन कृष्णाजी अनत सभासद ने लिखा है, "500 राजपूतों को मारा गया था." जब शिवाजी ने तानाजी के मरने पर कहा - 'मैंने अपना शेर खो दिया' सैफ़ बोले, 'तानाजी' में जो दिखाया गया वो खतरनाक फ़िल्म में उदयभान और उनकी सेना को मुस्लिम कपड़ों में दिखाया गया है, ये दिखाने के लिए कि जैसे वो लड़ाई हिदू और मुसलमानों के बीच हुई थी. ये साफ़तौर पर हिदू और मुसलमानों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश दिखती है. मध्यकाल में किसानों को अन्याय का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका शोषण करने वाला तत्कालीन प्रशासन था. भले ही गाव के स्तरपर केंद्रीय सत्ता निज़ाम, मुगल और आदिल शाह के हाथों में थी फिर भी वतनदार और मिरासदार प्रशासन की ज़िम्मेदारी सभालते थे. लालजी पेंडसे और नरहर कुरुदकर जैसे विचारकों ने इस पर गौर किया है. लेकिन, ये फ़िल्म ख़ास तौर पर दिखाती है कि तानाजी और उदयभान के बीच की जग भगवा बनाम हरे (धार्मिक स्ग) की है. मुझे लगता है कि तानाजी में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के विचार को लागू करने की कोशिश की गई है. 2. 'मर्द' मावला इस फ़िल्म में तानाजी का किरदार लगातार 'मर्द मावला' मुहावरे का इस्तेमाल करता है, जिसका मतलब है ताक़तवर सैनिक. लेकिन, इन शब्दों का कोई ऐतिहासिक सदर्भ नही- दिखता है. इतिहास कहता है कि उन दिनों में 'मावला' शब्द इस्तेमाल किया जाता थाफिर भी पता नही- फ़िल्म में 'मर्द' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ये लैंगिक भेदभाव की मानसिकता को दिखाता है. यह महिला, पुरुष और तीसरे जेंडर के लोगों के बीच भेदभाव करता है. आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि किसी के जेंडर का उसकी गुणवत्ता या उपलब्धियों पर कोई प्रभाव नही- पड़ता. नारीवादियों का कहना है कि पुरुष बहादुर, शक्तिशाली और बुद्धिमान होते हैं, इसी तरह महिलाएऔर तीसरे जेंडर के लोग भी बहादुर, पराक्रमी और बुद्धिमान होते हैं. विशेष रूप से 'मावला' शब्द इद्रायणी घाटी से मावलाई की मातृ परपरा से आया है. महान विद्वान डीडी कोसबी ने अपनी किताब 'मिथ एड़ रियालिटी' (मिथक और वास्तविकता), में इसका जिक्र किया इसलिए 'मावला' शब्द महिलाओ-के सम्मान में इस्तेमाल होता था. इसके साथ 'मर्द' शब्द जोड़ना महिलाओ-और तीसरे जेंडर के लिए अपमान की बात है.3. जीजामाता का पूजा करना इस फ़िल्म में एक दृश्य है जिसमें मुस्लिम कमाइर क़िले के अदर घुसता है और जीजामाता को पूजा करने से रोकता है. कमाडर उन्हें क़िला खाली करने के लिए बोलता है. इस दौरान, जीजामाता शपथ लेती हैं कि तक मराठा कोंधाना को फिर से नही-जीत लेते, वो पैरों में कुछ नहीं- पहनेंगी. इस दृश्य का इतिहास में कोई जिक्र नही-है. 4. 'ओम' का चिन्ह कैसे आया? शिवाजी महाराज का झड़ा भगवा रंग का था लेकिन वो सभी लोगों के कल्याण के लिए काम करते थे. वह धार्मिक द्वेष में शामिल नही- थे. उन्होंने मस्जिदें नही- गिराईं और न ही उन्होंने दूसरे धर्म के लोगों से नफ़रत की.कोई भी ऐसा ऐतिहासिक प्रमाण नही-है जो कहता है कि शिवाजी महाराज के समय पर झड़े में 'ओम' चिन्ह था. साथ ही ऐसा भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही-कि तानाजी की ढाल पर 'ओम' का निशान था. लेकिन, फ़िल्म में दिखाया गया है कि तानाजी की जिस ढाल को उदयभान तोड़ता है उसमें ओम बना होता है. ये दृश्य धार्मिक द्वेष से भरा हुआ है. दीपिका पादुकोण की छपाक से आगे अजय देवगन की तानाजी मोदी को शिवाजी, शाह को तानाजी दिखाने पर बवाल 5. शिवाजी महाराज भगवान और पूजा शिवाजी महाराज तर्कवादी थे. वह कर्म पर भरोसा करते थे. उन्होंने भविष्य जानने के लिए कभी पचाग नही- देखा. कृष्णाजी अनत सभासद के अनुसार जब शिवाजी महाराज का बेटा राजाराम पेट के बल पैदा हुआ था तो उन्होंने कहा था कि 'ये लड़का दिल्ली के शासकों को औधे मुह गिरा देगा.' उन्होंने समुद्री क़िलों का निर्माण किया. उन्होंने समुद्र के रास्ते बेदनुर पर आक्रमण करके सिधु नाकाबद्दी को तोड़ दिया. जीजामाता 'सती' नही- हुईं बल्कि उन्होंने बहादुरी से काम लिया. ये दिखाता है कि जीजामाता और शिवाजी महाराज तर्कवादी थे. वह रुढ़िवादी नही-थे और भगवान की पूजा से बधे नही-थे. उन्हें अपनी परपराओ- पर भरोसा था लेकिन उन्होंने गलत प्रथाओ- को कभी स्वीकार नहीं किया. वह पारपरिक लोक देवताओ-जैसे तुलजा भवानी, महादेव, आदि का सम्मान करते थे लेकिन उनमें ये सच्चाई समझने की परिपक्वता थी कि अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. शिवाजी महाराज के जीवन का अध्ययन करने वाले त्रयम्बक शेजवल्कर कहते हैं, "शिवाजी महाराज रुढ़िवादी नही- बल्कि प्रगतिशील सुधारवादी थे. वह वास्तव में एक आस्तिक थे, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वह चतुर और तर्कशील थे. वह भगवान की पूजा के प्रति आसक्त नही- थे जिसमें लोग कुछ पाने के लिए प्रथाओ- का सहारा लेते हैं. जब तथ्य ये है, तो फिल्म जीजामाता और शिवाजी महाराज को लगातार पूजा करते हुए दिखाकर इतिहास को गलत बताती है." 6. नाक का छल्ला कहा से आया? अगर हम कुछ सिनेमाई आज़ादी देते भी हैं, तो भी कोई तानाजी की पत्नी की नाक में छल्ला कैसे पहना सकता है क्योंकि मध्ययुगीन मराठा महिलाओ- ने कभी भी नाक में छल्ला नही- पहना था. स्कॉलर शरद पाटिल के दार्शनिक दृष्टिकोण से इसे देखें तो, कोई यह कह सकता है कि यह फिल्म ब्राह्मणवादी सिद्धातों पर जोर देती है. उत्तर की ओर से आए राजपूतों को गहरे रंग का और दक्षिण से आए मावलों को गोरे रंग का दिखाया गया है. ये कैसे सभव है? यह मनुष्य-शास्त्र के सिद्धातों का भी पालन नही- करती.'आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी' नाम की किताब पर क्यों है विवाद पाकिस्तान में मौलवी पर बनी फिल्म पर क्यों बरपा है हंगामा 7. तानाजी का बड़ा महल कोंधाना से राजगढ़ की ओर मुह वाली नागिन तोप का कोई ऐतिहासिक सदर्भ नही-है. फ़िल्म में तानाजी का एक बड़ा महल भी दिखाया गया है. मूल रूप से, शिवाजी महाराज ने सामान्य परिवारों से सैनिकों को जुटाकर राज्य (स्वराज्य) का निर्माण किया था. तानाजी भी एक कमाडर थे जो एक विनम्र पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए थे. जैसा कि फ़िल्म में दिखाया गया है लेकिन वो किसी सामती वश से नही-थे. 8. तानाजी शिवाजी महाराज पर बैसाखी फेंकते हैं तानाजी मालुसरे का शिवाजी महाराज और स्वराज्य के प्रति गहरा लगाव था. वह जीजामाता का भी बहुत सम्मान करते थे. वह एक देशभक्त थे. लेकिन, इसका मतलब ये नही है कि वो बैसाखी फेंककर शिवाजी महाराज का अपमान करेंगे. इस घटना का कोई ऐतिहासिक सदर्भ नही-है.9. मालुसरे और पिसल इस बात का भी कोई ऐतिहासिक सदर्भ नही है कि जब तानाजी और उदयभान जग के चरम पर होते हैं तो तानाजी अपना दाया- हाथ खो देते हैं. कृष्णाजी अनत सभासद के मुताबिक ये ज़रूर हुआ था कि तानाजी की ढाल टूट गई थी. भयकर लड़ाई के बाद दोनों गिर जाते हैं, जिसके बाद सूर्याजी मालुसरे बहादुरी से लड़ते हैं. लेकिन, फ़िल्म में ऐसा नही- दिखाया गया है. फ़िल्म में वास्तविकता के बजाय बहुत ज़्यादा कल्पना है. फ़िल्म निर्माता शेलार मामा पर भी कुछ रोशनी डालने के लिए सिनेमाई आज़ादी का इस्तेमाल कर सकते थे. एक मिथक ये भी गढ़ा गया है कि पिसल एक गद्दार था. फ़िल्म में दिखाया गया है कि चद्राजी पिसल ने शिवाजी महाराज को धोखा दिया था और मुगलों की मदद की थी. ये घटना इतिहास से जुड़ी नही है और काल्पनिक है. यह पिसल परिवार को बदनाम करती है. 10. 'एक मराठा लाख मराठा' 'एक मराठा लाख मराठा' यानी एक मराठा, लाखों मराठाओ- के बराबर है, ये नारा सबसे पहले मराठा क्राति की रैलियों में इस्तेमाल किया गया था. दरअसल, ये नारा महज़ चार साल पहले ही ईज़ाद हुआ है. लेकिन, फ़िल्म निर्माता और निर्देशक ने ये नारा 17वी- शताब्दी के तानाजी के डायलॉग में इस्तेमाल किया. इसलिए एक आधुनिक अवधारणा को इतिहास से जोड़ना, इस फ़िल्म की ऐतिहासिक गभीरता को कम करता है. 11. गद्दार नाई छत्रपित शिवाजी महाराज के राज्य निर्माण के संघर्ष में सभी जाति और धर्मों के लोगों ने त्याग किया था. उस समय उन्होंने हसते-हसते मौत को गले लगाया था. पन्हाला दौरान शिवाजी काशीद शिवाजी महाराज का रूप लेकर दुश्मन के इलाके में गए जहा- उन्हें स्वराज्य के लिए अपनी जान देनी पड़ी. जब शिवाजी महाराज अफज़ल खान से मिलने गए, सैयद बदा ने उन पर हमला करने की कोशिश की और तब जिवाजी महाले ने बदा का हाथ हवा में ही काट दिया. शिवाजी महाराज के लिए अपनी जान जोखिम में डालने वाले शिवाजी काशीद और जिवाजी महाले जैसे लोग नाई समुदाय से थे. ये तथ्य है, फिर भी तानाजी फ़िल्म में एक नाई को शिवाजी महाराज को धोखा देकर उदयभान को मदद करते दिखाया गया है. इस किरदार का इतिहास से कोई सबध नही-है. फ़िल्म में शिवाजी महाराज और तानाजी के चरित्र असल ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का सही प्रतिनिधित्व नही- करते क्योंकि वे बहुत सुस्त दिखते हैं. इनके मुक़ाबले उदयभान की भूमिका बेहतर है. शिवाजी महाराज और तानाजी सख़्त, फुर्तीले और मज़बूत थे लेकिन फिल्म में कई बार वो ढीले नज़र आते हैं. कुल मिलाकर इस फ़िल्म में शिवाजी महाराज के इतिहास को दिखाने के लिए सिनेमाई आज़ादी का लापरवाही से इस्तेमाल किया गया है. यह असल में तानाजी मालुसरे की लोगों के कल्याण की लड़ाई से जोड़-तोड़ करना है और उसका राष्ट्रवाद के एजेंडे के लिए इस्तेमाल करना है.


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