26 मार्च को केंद्र सरकार ने एक ऐसे वित्तीय पैके का एलान किया,) 21 दिनों लंबे लॉकडाउन के दौरान बिगड़ने वाली आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार साबित हो. इस देशव्यापी लॉकडाउन का एलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले ही किया था. लेकिन, सरकार द्वारा घोषित ये वित्तीय मदद, हालात को देखते हुए, उम्मीद से बहुत ही कम और अपर्याप्त है. ये उन लोगों की मदद करने में बहुत ही कम कारगर होने वाला है, जिन्हें आने वाले महीनों में आर्थिक मदद की सख्त जरूरत पड़ने वाली है. सरकार ने इस पैके की घोषणा में बड़ी कंसी से काम लिया है. अगर कोई सरकार इन लोगों का भला सोच कर काम कर रही होती, तो उसे कोरोना वायरस का प्रकोप रोकने के लिए, लॉकडाउन के एलान से पहले, देश के इस सबसे कमज़ोर तबके की मदद के लिए आर्थिक पैके और उसे लागू करने के संसाधनों का गाड़ कर लेना चाहिए था. लेकिन, केंद्र की बी पी सरकार ने ऐसा करने में घोर लापरवाही बरती. लॉकडाउन के कारण मजदूरों और गरीबों में बेचैनी और उनके अपने अपने ठिकाने छोड़ कर पलायन करने के संकेत, बिना यो ना के लागू हुए लॉकडाउन के 48 घंटों के भीतर ही सामने आ गए. कुछ ही दिनों के भीतर परिस्थिति इतनी बिगड़ सकती है कि लोग पैसों के अभाव और भुखमरी के शिकार हो सकते हैं. सरकार ने दावा किया कि उसने 1.7 लाख करोड़ के राहत पैके का एलान किया है. ये रक़म, 2019-20 के वित्तीय वर्ष में भारत के संशोधित डीपी का केवल 0.83 प्रतिशत है. अन्य देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं के आकार के अनुपात में कहीं बड़े आर्थिक पैके का एलान, कोरोना वायरस से उत्पन्न आर्थिक संकट के लिए किया है. ऐसे में ये मदद अगर सच भी है, तो बहुत कम है. लेकिन, ये मदद भी हक़ीक़त से परे है. से । डी वित्तीय - नकारियां नदारद हो गई. घोषणा नंबर-1- मनरेगा के तहत रोज़ेदारी करने वालों की मजदूरी प्रतिदिन 20 रुपए के हिसाब से बढ़ाई - एगी. पैके में इसका बट है-5600 करोड़ रुपए. सरकार ने कुछ दिनों पहले ही मनरेगा की मजदूरी में प्रभावी अधिक वृद्धि की अधिसूचना |री कर दी थी. ऐसा हर साल किया ता है. लेकिन, ये बढ़ी हुई मज़दूरी उन गरीबों के लिए बेकार है, लॉकडाउन के शिकार हुए हैं. क्योंकि उन्हें तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है. मनरेगा, एक काम के एव में फ़ायदा देने वाली यो ना है. कोई काम न होने का मतलब है, कोई मज़दूरी न मिलना. अकेले मार्च महीने में ही हमने देखा है कि पिछले साल इसी महीने के मुकाबले मनरेगा के काम का में 6 से 8 करोड़ दिनों के काम की कमी आई है. (इसके अंतिम आंकड़े मार्च का महीना ख़त्म होने के बाद सामने आएंगे). संकेत ऐसे हैं कि हालात और बिगड़ने वाले हैं.
घोषणा नंबर-2: 80 करोड़ लोगों को तीन महीने का अतिरिक्त राशन दिया -एगा. हर परिवार को हर महीने एक किलो दाल दी एगी. पैके में ब.ट-40 हज़ार करोड़ ये तो साफ़ तौर पर बेहद मामूली राहत है. - ब थोक बाज़ारों में तालाबंदी है और खुदरा क़ीमतें लगातार बढ़ती AT रही हैं. ऐसे में गरीबों को बुनियादी चीजें, 'से कि नमक, तेल और चीनी ख़रीदने के लिए भी मदद की दरकार होगी. गेहूं और चावल का अतिरिक्त राशन, ऐसे मुश्किल वक़्त में गरीबों को क्या ही राहत देगा और उन तक न ने कैसे पहुंचेगा. - ब इन सामानों की सप्लाई चेन टूट चुकी है. और सरकारी राशन की दुकानों तक पहुंच मुश्किल हो चुकी है. खास तौर से बाहर से आकर मजदूरी करने वालों के लिए. ऐसे में इन अप्रवासी मज़दूरों के परिवार अधर में हैं. घोषणा नंबर-3: स्वयं सहायता समूहों के लिए क़र्ज़ की रक़म 10 लाख से बढ़ा कर बीस लाख करना सबसे अहम बात ये है कि ये नक़द भुगतान नहीं है. सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि इस यो ना के तहत इस साल स्वयं सहायता समहों को अब तक 1500 करोड रुपये मिल चके हैं. इनमें से केवल तीन लाख रुपए तक के लोन पर ब्या में रियायत मिलती है. बाक़ी रक़म पर क़र्ज़ लेने वाले समूहों को बैंक की सामान्य दर के अनुसार ब्या देना पड़ता है. नि परिवारों की आमदनी ख़त्म होने से अचानक ही पैसे की कमी हो गई है, उन्हें घर चलाने के लिए पैसों की तुरंत ज़रूरत है. - ब क़र्ज़ लिए आते हैं, तो इस दौरान स्वयं सहायता समूहों को बिचौलियों और बैंक से निपटना पड़ता है. और लोन की अर्जी देने और इसके मिलने के बीच लंबा फ़ासला होता है.
घोषणा नंबर-4: 20.40 करोड़ महिलाओं के न-धन खातों में तीन महीने में 1500 रुपए का योगदान. ब. ट30,000 करोड़ सरकार चाहती तो इससे अधिक रक़म, केवल महिलाओं के ही नहीं, बल्कि सभी - न-धन खातों में डाली सकती थी. पांच रुपये महीने तो इतना कम पैसा है, कि इससे अधिक रक़म तो कुशल मज़दूर एक दिन में कमा लेता है. और, कोई अकुशल मजदूर इतना पैसा दो दिनों में कमा लेता है. ज़रूरी सामानों के दाम पहले ही कई गुना बढ़ चुके हैं. और देश के कई भागों में आगे भी इनके दाम ऐसे ही रहने वाले हैं. इससे बहुत से इलाक़ों में रहन-सहन का ख़र्च और भी बढ़ने वाला है, - ब नौकरियां नहीं होंगी तो.
इलाक़ों में रहन-सहन का ख़र्च और भी बढ़ने वाला है, - ब नौकरियां नहीं होंगी तो. घोषणा नंबर-5: 8.7 करोड़ किसानों को अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत दो हज़ा रुपए दिए - एंगे. ब. ट-16 हज़ार करोड़ ये रक़म, जमीन का मालिकाना हक़ रखने वाले किसानों को पहले ही अप्रैल में दी - नी तय थी. ये कोई अलग से दी ने वाली मदद नहीं है. ) किसान भूमिहीन हैं या खेतों में मजदूरी करते हैं और ये मदद के तलबगार हैं, उनमें से अधिकतर को इस यो ना से कोई लाभ नहीं मिलेगा.
घोषणा नंबर-6: साठ साल से ज्यादा उम्र के लोगों और विधवाओं को तीन महीने तक एक हज़ार रुपये की मदद मिलेगी. बट-तीन हज़ार करोड़ रुपए क़ानून के अंतर्गत, सरकार पहले ही विधवा और बुजुर्गों को पेंशन देने के लिए राज्यों को दो सौ से पांच सौ रुपए तक की मदद देती है. बहुत से मामलों में राज्य इस रक़म में अपनी ओर से कुछ और पैसा मिलाकर इस मामूली रक़म को और बढ़ाते हैं. इसमें 333 रुपए प्रति महीने अगर केंद्र इस मामूली रक़म में और मिलाएगा, तो इससे कोई बहुत अधिक फायदा नहीं होने AT रहा है.
घोषणा नंबर-7: 8 करोड़ परिवारों को उज वला यो ना के तहत 3 महीने तक मुफ़्त गैस सिलेंडर. ब. ट-13 हज़ार करोड़ 2019-20 के दाम पर सरकार अगर मुफ्त सिलेंडर बांटती है, तो प्रति सिलेंडर उसका ख़र्च लगभग 681 रुपये आएगा. - ब ग्राहकों को ये सिलेंडर 500 रुपए में मिल रहे थे. तब भी कोई परिवार एक साल में चार से ज़्यादा सिलेंडर इस्तेमाल नहीं करता था. तब भी वो ज़्यादा सिलेंडर नहीं ले पा रहे थे. ज़्यादा आमदनी वाले ग्राहक, एक साल में औसतन सात सिलेंडर का उपयोग करता था. ऐसे में अब । बकि सरकार ये सिलेंडर गरीबों के लिए मुफ़्त होंगे. तो बस यही उम्मीद की सकती है कि हर परिवार दो सिलेंडर और ले लेगा. इस अधिकतम इस्तेमाल की स्थिति में भी सरकार पर दस हजार करोड़ रुपए से कम का ही बोझ पड़ेगा.
अधिकतम इस्तेमाल की स्थिति में भी सरकार पर दस हजार करोड़ रुपए से कम का ही बोझ पड़ेगा. घोषणा नंबर-8: सरकार, 100 से कम कर्मचारियों वाली कंपनी के उन कर्मचारियों और कंपनी के हिस्से का ईपीएफ़ योगदान भरेगी, निके 90 प्रतिशत कर्मचारी 15 हज़ार या इससे कम तनख़्वाह पाते हैं इस मुद्दे पर वित्त मंत्री के एलान और सरकार द्वारा प्रेस को - Tरी बयान में भ्रम है. प्रेस को - री बयान में लिखा है कि हर वो कंपनी इसका फायदा पा सकेगी, जिसमें 100 से कम कर्मचारी काम करते हैं और 7 15 हज़ार रुपए प्रति माह से कम तनख़्वाह पाते हैं. लेकिनस, 'सा कि बिज़नेस स्टैंडर्ड के सोमेश झा ने लिखा कि अगर हम सरकार की इस दयानतदारी पर भी यक़ीन कर लें, तो इसका मतलब हैसरकार के सामने खड़ी चुनौती एकदम स्पष्ट है. सरकार को और बड़े और बेहतर पैके की यो ना बना कर लोगों तक इसका लाभ पहुंचाना होगा. इसके लिए सरकार को लोगों तक पहुंच बनाने के तौर-तरीके खो ने और निकालने होंगे. ताकि तमाम सरकारी यो नाओं का लाभ उन नागरिकों को मिल सके, जिन्हें इसकी सख़्त ज़रूरत है. ये पैके। तभी पर्याप्त होंगे, - ब सरकार नए वित्तीय वर्ष के लिए बट आवंटन का निर्धारण नए सिरे से करेगी. और इस आधार पर करेगी अर्थव्यवस्था के सामने एक नई तरह की लड़ाई है. ये पैके असरदार हो, इसके लिए ज़रूरी होगा कि ज़रूरी सामान की आपूर्ति करने वाले संसाधन इससे भी अधिक लंबे लॉकडाउन के दौरान सही तरीके से लोगों तक ज़रूरत का सामान पहुंचा सकें. कोराना वायरस का प्रकोप बढ़ने से रोकने के लिए किया गया ये लॉकडाउन शायद सरकार के लिए इसलिए भी ज़रूरी हो गया था, क्योंकि सरकार ने इस महामारी के ख़तरों को समझने में देर की. लेकिन, अब सरकार सोते रहने का खिम नहीं उठा सकती. क्योंकि अब गाड़ी तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही है. वरना, इस महामारी का सबसे बुरा और तबाही लाने वाला प्रभाव देश के गरीब भुगतने के लिए म बूर होंगे.