कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए किराना स्टोर और मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं. लेकिन दूर-दराज के गांवों में लड़कियों तक ये सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. उनके सामने सैनिटरी पैड्स की समस्या पैदा हो गई है. राजस्थान, बिहार और झारखंड की कई लड़कियां ये समस्या झेल रही हैं. इतना ही नहीं उनके लिए इस मसले पर खुलकर बात कर पाना भी संभव नहीं है. लॉकडाउन में कहां से लाएं सैनेट्री पैड्स राजस्थान में स्कूल, आंगनबाड़ी से बच्चियों को पीरियड्स के दौरान पैड मिला करते थे लेकिन अब स्कूल, आंगनबाड़ी, दुकाने सब बंद होने से लड़कियां परेशान हैं. राजस्थान से पत्रकार मोहर सिंह ने बताया कि उदयपुर के सुदूर इलाक़ों में रहने वाली लड़कियां आजकल सैनिटरी पैड की कमी से जूझ रही हैं. माहवारी और सैनिटरी पैड पर महिलाएं तक आपस में खुलकर बात नहीं करतीं. ऐसे में इन लड़कियों के लिए घर के बड़ों से सैनिटरी पैड लाने के लिए कहना किसी चुनौती से कम नहीं है.
इन लड़कियों ने इस परेशानी का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री के नाम एक चिट्ठी भी लिखी थी. लेकिन, अब दिक्क़त ये थी कि इस पत्र को कैसे पोस्ट करें. लॉकडाउन होने से वो चिट्ठी को पोस्ट नहीं कर पा रही हैं. शुभम बताती हैं कि गांव में किराने की दो दुकाने हैं लेकिन इनमें से किसी में भी सैनिटरी पैड नहीं मिलता है. वहीं, दवाई की दुकान तकरीबन 3 किलोमीटर की दूरी पर है. शुभम के पिता देवेन्द्र रविदास मज़दूर हैं और उनकी आमदनी काफ़ी कम है. लेकिन दोनों बहनों के सैनिटरी पैड का ख़र्च बड़ी बहन लक्ष्मी की सिलाई की छोटी-सी दुकान से निकलता है.
शुभम बताती हैं कि गांव की दूसरी लड़कियां भी इसी तरह की दिक्कत से दो चार हो रही हैं. वो कहती हैं, “सरकार जैसे राशन दे रही है, वैसे ही सैनिटरी पैड भी उपलब्ध कराए." बिहार के कुछ स्कूलों में छात्राओं की सुविधा के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं ने सैनिटरी पैड वेन्डिंग मशीन लगाई है लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है. लॉकडाउन के कारण राज्य के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में ताले लटके हुए हैं. यहां काम करने वाली सेविकाएं और सहायिकाओं को सूखा राशन घर-घर बांटने के काम में लगा दिया गया है. इस कारण किशोरियों के बीच सैनिटरी नैपकिन बाटने का काम फ़िलहाल बंद पड़ा हुआ है. शांति बस्की ने बताया, “हर महीने सैनिटरी नैपकिन मिल जाता था लेकिन, अब नहीं मिल पा रहा है. सर्फ, साबुन जैसे सफाई के दूसरे सामान भी नहीं मिल पा रहे हैं. इसलिए हमने बंदना दुबे जी को फोन भी किया था कि हमें सैनिटरी पैड लाकर दे दें. हम तो यहां से कहीं जा नहीं पाते.” फिलहाल कुछ संस्थाएं लड़कियों की मदद करने की कोशिश कर रही हैं लेकिन बढ़ते लॉकडाउन के साथ इस ओर ध्यान दिया जाना भी ज़रूरी है.