टूटी वैन में बनाया घर वहीं हमीरपुर के रहने वाले कल्लू को गांव वालों ने जब आने नहीं दिया तो वो कानपुर में ही रुक गए. कानपुर में मज़दूरी करते थे, उनके साथ के लोग पहले ही गांव चले गए थे लेकिन वो नहीं जा पाए थे. कानपुर के नौबस्ता में ही एक पुरानी और टूटी-फूटी वैन में उन्होंने अपना आशियाना बना डाला है. कल्लू बताते हैं, "बंदी की घोषणा होने के बाद काम मिलना बंद हो गया. गांव जाना था तो हमने किराये का मकान भी छोड़ दिया लेकिन गांव वालों ने ऐतराज़ किया. फिर हम यहीं आ गए. यहां यह गाड़ी ख़ाली दिखी. पहले से ही ऐसे पड़ी थी. मैंने इसी को अपना घर बना लिया. किसी ने मना भी नहीं किया." "अब तो पंद्रह दिन हो गए यहीं रहते हुए. अकेले अपना पड़े रहते हैं यहीं. खाने-पीने का कुछ सामान रखे हैं. हालांकि कोई दिक्कत नहीं होती है. पुलिस वाले भी दे जाते हैं और कुछ दूसरे लोग भी खाना बांटने आते हैं." इमेज कॉपीरइट AMIRATMAJ MISHRAIBBC
कोरोना वायरस से संक्रमित या फिर उनके संपर्क में आए लोगों को क्वारंटीन या फिर आइसोलेशन में रखा जाता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो एहतियातक के तौर पर खुद को दूसरों से अलग-थलग रखे हुए हैं, वो भी बेहद दिलचस्प तरीके से. ऐसे कुछ लोग स्वेच्छा से रह रहे हैं और कुछ विवशता में. उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के रहने वाले मुकुल त्यागी ने तो घर से दूर जंगल में ही अपना आशियाना बना लिया है, वो भी पेड़ पर. जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, मुकुल त्यागी यहीं रह रहे हैं. उनका खाना-पीना, सोना सब यहीं होता है. मुकुल त्यागी के साथ में उनका बेटा भी है और एक पेड़ पर उसका आशियाना बना है. "यहां से ज़्यादा सोशल डिस्टेंसिंग और कहां बनाई जा सकती है. घर से खाने-पीने की चीजें आ जाती हैं. बाक़ी मैं दिन-रात यहीं रह रहा हूं. धार्मिक पुस्तकें पढ़ रहा है और शुद्ध हवा ले रहा हूं." कोरोना: आइसोलेशन में रहने के लिए पेड़ों पर घर बना रहे हैं लोग मुकुल त्यागी बताते हैं कि इस ट्रीहाउस को उन्होंने खुद ही अपने बेटे के साथ मिलकर बनाया है और बनाने में दो दिन लगे. वो कहते हैं, "अब यहां रहना अच्छा लग रहा है. मैं गांव का रहने वाला हूं लेकिन प्रकृति का इतना साहचर्य शायद ही कभी मिला हो और मैंने अनुभव किया हो."
घर नहीं जा पाए मज़दूर सड़कों पर हैं मुकुल त्यागी तो स्वेच्छा से अकेलेपन का आनंद ले रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें मजबूरी ने ऐसे ही रोचक तरीके से 'क्वारंटीन' में रहना पड़ रहा है. कानपुर में रहने वाले हज़ारों मज़दूर और बेलदार जो अपने घरों को नहीं जा पाए, वो उन्हीं दुकानों के बाहर अकेले में रह रहे हैं जहां वो काम करते थे.
कानपुर का मूलगंज इलाका वहां का प्रमुख थोक बाज़ार है. यहां बड़ी संख्या में इस तरह के मज़दूर हैं जो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वहीं रह रहे हैं. ऐसे ही एक बेलदार रघुवर पाल कहते हैं, "अपने घर जा नहीं सके बंदी के कारण. अब यहीं रह रहे हैं. खाने-पीने का इंतज़ाम मालिक लोग कर देते हैं. साथ में कई लोग रह रहे हैं लेकिन हम लोग दूरी बनाकर रहते हैं. बातचीत भी करते हैं तो दूर से ही." कई ऐसे मज़दूर भी हैं जो बाहर के रहने वाले हैं और अचानक लॉकडाउन होने के बाद यहीं पर फँस गए. ऐसे लोग भी बड़ी संख्या में इन्हीं परिस्थितियों में रह रहे हैं. आज़मगढ़ के रहने वाले सुजीत भी उन्हीं लोगों में से हैं. बोले, "होटल में काम करता था. होटल बंद हो गया. कई और लोग भी हैं. सड़कों पर चादर बिछाकर रह रहे हैं. खाने-पीने का इंतज़ाम यहां हो जाता है. कोई न कोई दे ही जाता है."लेकिन बकौल कल्लू, "अपना गांव और अपना घर तो याद आता ही है. इस छोटी सी जगह पर दिन काटना किसी जेल की कोठरी में जिंदगी बिताने जैसा ही है." हालांकि वो कहते हैं कि जब तक लॉकडाउन ख़त्म नहीं हो जाता, वो यहीं रहेंगे.