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अगर हम धर्म देखें और लोगों को खाना दें तो ईश्वर हमारी ओर देखना बंद कर देगा.'यह कहना है मुजम्मिल और तजम्मुल दो भाइयों का.कर्नाटक राज्य के कोलार में रहने वाले इन दो भाइयों ने लॉकडाउन में गरीब लोगों को खाना खिलाने के लिए 25 लाख में अपनी संपत्ति बेच दी. मुजम्मिल पाशा ने दोनों भाइयों में छोटे हैं. 37 साल के मुजम्मिल ने बीबीसी से कहा, 'हमें लगा कि बहुत से लोग हैं जो गरीब हैं, जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है. एक वक्त था जब हम खुद भी बहुत गरीब थे. किसी ने हमारे प्रति भेदभाव नहीं रखा, अलबत्ता मदद ही की.'जब इन दोनों भाइयों को एहसास हुआ कि लोकडाउन के कारण बहुत से गरीब लोगों के लिए परिस्थितियां मुश्किल मुश्किल हो गई हैं और उन्हें परेशानी से जूझना पड़ रहा है तो इन दोनों भाइयों अपनी जमीन के टुकड़े को बेचने का फैसला किया. इस जगह पर वे अपने बागान की चीज़ों को स्टोर करते थे. मुजम्मिल बताते हैं, 'हमने ज़मीन का वो टुकड़ा अपने एक दोस्त को बेच दिया. वो बड़ा भला मानस था और उसने हमें उस ज़मीन के बदले 25 लाख रुपये दिये. इस दौरान और भी बहुत से दोस्तों ने अपनी-अपनी ओर से सहयोग किया. किसी ने 50 हजार रुपये दिए तो किसी ने एक लाख रुपये. वास्तव में यह कहना ठीक नहीं है कि अभी तक कितना खर्च किया जा चुका है. अगर ईश्वर को पता है तो काफी है.'
बिना किसी भेदभाव के मदद वो बताते हैं, 'हमने गरीबों को खाना देना शुरू किया और जिस किसी भी जगह पर हमें पता चला कि कोई किल्लत से जूझ रहा है वहां हमने उसे 10किलो चावल, 2 किलो आटा, एक किलो दाल, एक किलो चीनी, 100-100 ग्राम करके धनिया, लाल मिर्च, हल्दी, नमक और साबुन इत्यादि चीजें मुहैया करायीं.' मास्क पहनने को लेकर अब भी लोगों में काफी संशय और संदेह हैं.
रमज़ान को शुरू हुए दो दिन हुए हैं और इन दो दिनों में ढाई हज़ार से तीन हज़ार लोगों को खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं और ज़रूरत की चीजें भी. इन दोनों भाइयों ने बहुत छोटे पर ही अपने पिता को खो दिया था. जब पिता की मौत हुई तो बड़ा भाई चार साल का और छोटा भाई तीन साल का था. लेकिन दुख यहीं खत्म नहीं हुआ. 40 दिन ही बीते थे कि मां का भी निधन हो गया.दोनों बच्चों को उनकी दादी ने बड़ा किया.एक स्थानीय मुअज्ज़िन ने उन्हें एक मस्जिद में रहने के लिए जगह दी. मस्जिद के पास ही एक मंडी थी,जहां दोनों भाइयों ने काम करना शुरू किया. मुजम्मिल बताते हैं, हम दोनों बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं. साल 1995-96 में हम हर रोज़ 15 से 18 रुपये रोज़ाना कमाया करते थे. कुछ सालों बाद मेरे भाई ने मंडी शुरू करने के बारे में सोचा. जल्द ही दोनों भाइयों ने कुछ और मंडियों की शुरुआत की. अब वे आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी केले लाते हैं और डीलरों के साथ थोक व्यापार करते हैं. लेकिन गरीबों को खाना खिलाने का विचार कहां से आया?मुजम्मिल कहते हैं, 'हमारी दादी हमें बताया करती थीं कि हमारी परवरिश के लिए बहुत से लोगों ने मदद की थी. किसी ने पांच रुपये की मदद की तो किसी ने दस रुपये की. वो कहा करती थीं कि हमें बिना किसी भेदभाव के लोगों की मदद करनी चाहिए.वो अरबी पढ़ाया करती थीं. 'मुजम्मिल कहते हैं, 'धर्म सिर्फ इस धरती पर ही है. ईश्वर के पास नहीं.वो जो हम सब पर नज़र रखता है वो सिर्फ हमारी भक्ति को देखता है बाकी और कुछ नहीं.