कोरोना: राशन की सप्लाई में आ रही दिक्कतों से परेशान दुकानदार


कोरोना वायरस से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 21 दिन का लॉकडाउन किया है. 24 मार्च को देश को संबोधित करते हुए जब पीएम मोदी ने लॉकडाउन का ऐलान के साथ ही देशभर में किराना दुकानों पर लोगों की कतार लग गई. लोग हड़बड़ी में आने वाले दिनों के लिए राशन-पानी का इंतजाम कर लेना चाहते थे. उस वक्त यह तय नहीं था कि लोगों को उनकी रोज़मर्रा की जरूरत की चीजें कैसे मिलेंगी. हालांकि, बाद के दिनों में इस स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिला. लेकिन, अब जब लॉकडाउन चलते तीन हफ्ते से ज्यादा वक्त हो चुका है देश में किराना दुकानों में रोजाना के सामानों की किल्लत सामने सामने आ रही है. दुकानों में सामान धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. सामान की सप्लाई को लेकर मुश्किलें पेश आ रही हैं. वह कहते हैं कि मैन्युफैक्चरर्स के यहां पर पैकेजिंग के माल की किल्लत हो रही है. पैकेजिंग यूनिट्स बंद हैं और इस वजह से फैक्ट्रियों के लिए उत्पादों की पैकेजिंग करना मुश्किल हो रहा है. अग्रवाल के मुताबिक, "सामान हफ़्ते भर चलेगा. लेकिन सरकार ने कदम नहीं उठाए तो उसके बाद मुश्किल आ सकती है." क्या नींबू खाने से कोरोना से बचाव हो सकता है?


लॉकडाउन से डिमांड बढ़ी उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और पंजाब की राज्य सरकारों ने अपने यहां लॉकडाउन को 30 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दिया है. इस तरह की संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार भी पूरे देश में लोकडाउन की अवधि को बढ़ा सकती है. अग्रवाल कहते हैं कि लॉकडाउन बढ़ने की आशंका के चलते डिमांड में अचानक इजाफा हो गया है. वह कहते हैं, "पिछले कुछ दिनों में चीजें सामान्य हुई थीं. लोग ज्यादा खरीदारी नहीं कर रहे थे. लेकिन, शुक्रवार शाम से लोगों को यह लगा कि लॉकडाउन बढ़ सकता है, ऐसे में अचानक डिमांड एकदम बढ़ गई. डिमांड कम से कम दोगुनी हो गई है."


ट्रांसपोर्टर भी मजबूर, नहीं मिल रहे ड्राइवर आवश्यक सामानों के डिस्ट्रीब्यूटर्स और फिर खुदरा दुकानों तक पहुंचने की चेन का एक अहम हिस्सा ट्रांसपोर्टर्स होते हैं.कंपनी के पास 370 ट्रक हैं, जबकि कंपनी करीब 650 गाड़ियां हायरिंग पर लेकर काम करती है. क्षितिज के यहां ड्राइवर, क्लीनर समेत करीब 600 लोग कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं. वो बताते हैं, "हमें इस वक्त ड्राइवरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. ड्राइवर या तो अपने गांव चले गए हैं या फिलहाल काम पर नहीं आना चाहते."


लॉकडाउन का असर उत्पादन पर दिल्ली के अशोक विहार में कृष्णा सुपरमार्ट चलाने वाले रमन बताते हैं, "स्टॉक की बड़ी शॉर्टेज है. कंपनियों की प्रोडक्शन कम हो गई है. उनके वेयरहाउस में माल खत्म हो रहा है. अभी कोई हल नहीं निकल रहा है, गाड़ियां आने नहीं दी जा रही हैं. हमारे पास आटा, घी-तेल जैसी चीजें नहीं आ पा रही हैं." रमन बताते हैं कि डिस्ट्रीब्यूटर्स उनसे कह रहे हैं कि हमारे पास आकर सामान ले जाओ. लेकिन सामान की ढुलाई करने वाली गाड़ियां उनके पास नहीं हैं और यही उनके सामने सबसे बड़ी मुश्किल है. रमन कहते हैं, "लोग हड़बड़ी में खरीदारी कर रहे हैं और एक साथ दो-तीन महीने का राशन खरीद रहे हैं." दिल्ली के बाड़ा हिंदू राव आजाद मार्केट के अल-मुबारक स्टोर के मोहम्मद साजिद का कहना है कि फिलहाल थोड़ी दिक्कत आ रही है. लेकिन, चीजें धीरे-धीरे सामान्य हो जाएंगी. दिल्ली की फर्म नंद किशोर मोंगा फूड्स प्रा. लिमिटेड के मालिक कवित मांगा 3,273 छोटी दुकानों के अलावा बड़े सुपरमार्केट्स और फाइव स्टार होटलों को भी सामान सप्लाई करते हैं. वह नॉन-असेंशियल सामानों के डिस्ट्रीब्यूटर हैं जिनमें सिगरेट, एनर्जी ड्रिंक और चाय शामिल हैं. मोगा बताते हैं कि 23 मार्च से दिल्ली में लॉकडाउन हो गया था लेकिन 21 मार्च से ही उनका कामकाज बंद पड़ा है.


मोगा कहते हैं, "नॉन-असेंशियल आइटमों के लिए भी सरकार को कुछ प्रावधान करना चाहिए. मैं अगर दफ्तर खोलूं तो एक दिन में मेरा पूरा माल चला जाएगा. इससे सरकार को रेवेन्यू लॉस भी हो रहा है." कोरोना: किस खास तकनीक से चीन ने रोकी महामारी


ऑनलाइन पास नहीं हो पा रहे जनरेट सुनील पांडेय दक्षिणी दिल्ली के एक बड़े डिस्ट्रीब्यूटर हैं. वह लगभग 1,500 खुदरा दुकानदारों को सामान सप्लाई करते हैं. लेकिन, अब उनके लिए सामान भिजवाना टेढ़ी खीर हो गया है. आम दिनों में वह हर रोज़ 8-10 गाड़ी माल दुकानों को भिजवाते थे. अब उनका काम कम हो गया है. वह कहते हैं कि ऑनलाइन पास जनरेट होने में मुश्किल हो रही है. साथ ही एक राज्य से दूसरे राज्य में माल ले जाना भी आसान नहीं रहा है. वो कहते हैं, "अब मैं दुकानदारों से कह रहा हूं कि जिसे सामान चाहिए वह यहां आकर ले जाए. इसकी वजह यह है कि गाड़ियों को पास नहीं मिल पा रहे हैं." पांडेय बताते हैं कि उनके पास 15-20 दिन का स्टॉक है. लेकिन, अगर आगे यह लॉकडाउन बढ़ता है तो बड़ी मुश्किल हो सकती है. पांडेय एक नए ट्रेंड की ओर इशारा करते हैं. वो कहते हैं, "चूंकि, कंपनियां पूरी कैपेसिटी पर काम नहीं कर पा रही हैं, ऐसे में उन्होंने अब स्कीमें और ऑफ़र देने भी बंद कर दिए हैं."


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