आत्मनिर्भर भारत अभियान' में पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहीं भी 'स्वदेशी' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया.



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हालिया संबोधन में एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण' का वादा किया है. पीएम मोदी का 'आत्मनिर्भर भारत अभियान', उनकी पार्टी की मूल अवधारणा के अनुसार एक महत्वकांक्षी परियोजना है जिसका उद्देश्य सिर्फ कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से लड़ना नहीं, बल्कि भविष्य के भारत का पुनर्निर्माण करना है. मंगलवार शाम के अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, "अब एक नई प्राणशक्ति, नई संकल्पशक्ति के साथ हमें आगे बढ़ना है." अंत में, भारत को अपने आर्थिक संकटों की वजह से साल 1991 में बाहरी दुनिया के लिए अपने दरवाज़े खोलने पर मजबूर होना पड़ा.इसके अलावा, स्थानीय उत्पादों का उत्पादन करने और उन्हें प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने के लिए स्थानीय उद्यमियों और निर्माताओं को कुछ सुरक्षा राशि भी देनी होगी जिससे विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के साथ भारत का सीधा टकराव होगा.


उन्होंने कहा, "भारत के लिए पीएम मोदी के दृष्टिकोण में आत्मनिर्भरता ना तो बहिष्करण है और ना ही अलगाववादी रवैया. ज़ोर इस बात पर है कि दक्षता में सुधार किया जाये. इसके अलावा दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए दुनिया की मदद करना मोदी सरकार का विचार है." एक नारे के रूप में यह सुनना बहुत अच्छा लगता है. आत्म-निर्भरता वैसे भी हर देश का एक वांछित सपना है. लेकिन इस काम के क्रियान्वयन में मोदी लड़खड़ा सकते हैं, जैसे उनके ख़ास प्रोजेक्ट 'मेक इन इंडिया' के संबंध में देखा गया.


अर्थव्यवस्था आलोचक इन पाँच स्तंभों के स्वास्थ्य को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं. 2.7 ट्रिलियन डॉलर की भारत की अर्थव्यवस्था 2 प्रतिशत से भी कम पर बढ़ रही है जो इस पीढ़ी की अब तक की सबसे कम वृद्धि दर है. ग्लोबल सप्लाई चेन कमज़ोर पड़ी है. वैल्यू चेन हैं लेकिन ऐसी नहीं है जो चीन के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें.


इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढाँचा चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए या भारत में निवेश करने के लिए चीन स्थित विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए भारत को विश्व स्तर के बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा. भूमि, पानी और बिजली में सुधारों की ज़रूरत है.


सिस्टम यानी प्रणाली पीएम ने प्रौद्योगिकी के इष्टतम उपयोग की बात कही है. उनकी सरकार ने कुछ सही क़दम उठाये हैं जिसमें अत्याधुनिक तकनीक को अपनाना और समाज में डिजिटल तकनीक का उपयोग बढ़ाना शामिल है. यह अर्थव्यवस्था का चालक साबित हो सकता है.


वाइब्रेट डेमोक्रेसी यानी जीवंत लोकतंत्र विश्लेषकों का दावा है कि मोदी-काल में लोकतांत्रिक मूल्य बहुत हद तक मिट चुके हैं. लेकिन लोकतंत्र भारत की मुख्य ताक़त है और जहाँ चीन भारत का मुक़ाबला नहीं कर सकता है. वो उद्यमी और निर्माता जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और बाल शोषण के उन्मूलन को महत्व देते हैं, वो साम्यवादी चीन के स्थान पर भारत के साथ डील करना चाहेंगे.


डिमांड यानी मांग वास्तव में, भारत का घरेलू बाजार निवेशकों के लिए सबसे आकर्षक पेशकशों में से एक है. वर्तमान में डिमांड हल्की है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में एक बार फिर भारत को शुरुआत करनी होगी जिसके लिए कई छोटे और मध्यम उद्यमियों को सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता होगी. इसमें बड़े नेताओं के साथ-साथ तालुका स्तर के पार्टी सदस्यों को भी शामिल किया जा रहा है जो सोशल मीडिया पर पीएम के संदेश को प्रसारित करने और टीवी समाचार चैनलों पर साक्षात्कारों में दिखाई देंगे.


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