समर्पित भाव से रामनामाकंन होगा तो ही तो जाकर प्रेम प्रगट होगा, और वो भी रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।

नाम राम कथा 226
रामनामाकंनम विजयते"
श्रीरामस्वरूपायः श्रीरामनामविग्रहायै नमः।।
तो हमने पढा़ जाना माना कि, 
" रामनामाकंन सप्रेम किया जाये। 
परंतु वो प्रेम लाएं कहां से, वो तो राम कृपा होगी और हमारा समर्पित भाव से रामनामाकंन होगा तो ही तो जाकर प्रेम प्रगट होगा, और वो भी रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।
तो साधक रामनामाकंन करते हुए मनमें सदा समर्पित भाव से प्रार्थना करता रहे।


"""",मन ही मन प्रार्थना, "'"""


कि हे राम! आपकी कृपासे आज मैरा अहोभाग्य उदय हुआ हैं जो मैं आपका अतिपावन नाम "राम" राम" का अंकन कर पा रहा हूं। आपका यह नाम तो पतित पावन हैं, यह जो कोई भी लेता हैं, लिखता है,सुमिरण करता हैं, उसका कल्याण आपको आपके भक्तवत्सल होने के नाते करना ही पड़ता हैं, पर बिना आपकी कृपा के रामनामाकंन हो नहीं पाता। हे रामनाममहाराज कौन नहीं जानता हैं आपके रामनाम को, और कौन नहीं तर गया आपके इस पावन नाम की शरणागति से, हजारों लाखों मानव तर गये,तर रहे हैं और तरते रहेगें ! 
इसमें सशंय करने वाला तो कोई महामुर्ख ही होगा ! परंतु महाराज आपके इस पावन रामनाम से तो महामुर्ख और महान डकैत जिनको राम राम भी सीधा बोला नहीं जाता था, वैसे डाकू लोग उल्टा नाम मरा" मरा" जप कर भी आपके जैसे ही हो गये, वो नहीं हो गये, बल्कि आपने उनको भी अपने जैसे ही कर दिये, ।
जो कि त्रिकालग्य होगये, आपने ऎसे ऎसे महा दुष्ट,और महा नीच कहे जाने वालों को तार कर आपने अपने जैसे बना दिये, ।।
" ते किए आपु समान "". 
उनको अपने जैसा , अर्थात उनकी आत्मा को रामात्मा ही बना दिया, आप जैसा उदार और कौन हैं यहाँ इस जगत में, " ऎसो को उदार जग माहिं" बिनु कारण ही द्रवहिं भक्त पर, रामनाम सम कोऊ नाहीं । हे महाराज ! मै तो कुछ भी नहीं जानता! मैने तो यह दो अक्षर आपके नाम के सुन रखे हैं, राम राम राम राम, बस ,इससे ज्यादा न तो जानता हूं और न जानना हैं, बस आपकी कृपा बनी रहे और इन दो अक्षरों से मैरा प्रेम बढ़ता जाये।
हे प्रभु, ! हे रामनाम महाराज आपने तो अजामिल जैसो को तारदिया, आप के इस पावन नाम ने तो जड़ पत्थरों को सागर पर तिरा दिया, तो हे रामनाममहाराज में तो खोटा खरा, दुष्ट,पापी जो भी हूं, आपका ही तो अंश हूं, आप बताओ कि, बेटा कैसा भी हो अपने मां बाप को छोड़ कर कहां जा सकता हैं। 
मुझ में न कोई ज्ञान हैं, न कोई ध्यान हैं न राम नाम को लेने का कोई विधि विधान जानता हूं, न कोई मेरे ऎसे सत्कर्म हैं जो मुझे रामनाम प्रिय लगने लग जाये ? 
हे रामजी महाराज आप के नाम का सहारा हैं, और मैने सुना है कि, कोई एक बार "राम" कह कर तर गया तो, हे महाराज मुझे तो आपको अपनी शरण लेना ही पडेगा, यह मेरी ढीढ़ता ही समझलो पर मैं अब राम नाम का सहारा छोडने वाला नहीं, आप आज लो या कल लो, मुझे तो आपकी शरण देनी ही पडेगी, । 
और फिर आपको आपका विरद याद दिला दूं, कि, आप की तो कोई नीच से नीच प्राणी भी शरण आजाये तो आप उसको टाल ही नहीं सकते, भले उससे सारी दुनिया नफरत करती हों पर वो आप की शरण आजाये तो ,आप को तो उसको शरण देनी ही पडती हैं, यह अब आपका गुण हों या आपका प्रण हों ? मुझे उससे क्या, मुझे तो आपकी शरण चाहिए और रामनामाकंन कर करके आपके दर पर पडा़ रहुंगा। 
हे राम नाम महाराज, न तो मैं कोई ज्ञान जानता हूं न मैं कोई ध्यान जानता हूं, न कोई कभी अच्छे कर्म किये हैं, न दान न पुण्य, न यज्ञ न जप तप, न साधना न कोई साधुसंग, न सत्संग, न कोई किसी भी प्रकार का एक भी सत्कर्म किया याद आता है, फिर भी मैं आपकी शरण में हूं, अब आपकी कृपा होगयी और यह आपका तारक मंत्र "राम" राम" मिल गया हैं, अतः रामनाममहाराज की शरण में आ गया हूं, ।
और तो और मैंरे जैसे पापी का कहां उद्धार हैं ?
, मैं तो आपके पावन नाम को बेच बेच कर इस पाप की पोटली प्राणों का पालन कर रहा हूं, बताओ, दान धर्म तो दूर, मैं तो आपके पावन नाम को बेचने से भी नहीं चूक रहा, पर फिर भी आपकी शरणागति प्राप्त होने का अहं मनमे लिए घूमता हूं, हे नाथ! है रामनाममहाराज आप मेरे इस अहं को आपके नाम प्रेम में परिवर्तित किजीये, क्योंकि यह परिवर्तन आपके अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता ! बस आप ही हैं ,क्योंकि आप ही प्रेम की साक्षात् प्रतिमा हैं, आपको केवल प्रेम ही प्रिय हैं, आपकी शरण आने वाले का अभिमान तो आप चुटकी में मिटा देते हैं। आप को तो अपने जन में अभिमान सुहाता ही नहीं है। " जन अभिमान न राखहु.....। आप तो अपनी शरण आये का अभिमान रहने ही नहीं देते, तो हे रामनाममहाराज मैं तो बस आपकी शरण हूं। 
भले ही अब मेरे में यह अभिमान आ रहा हैं कि, में तो राम राम जपता हूं, मै तो रामनाममहाराज की शरण हूं तो हे प्रभु मैरा यह अभिमान भी आप तुरंत मिटा दो, क्योंकि आप को यो अभिमान पसंद ही नहीं हैं न ! 
आप तो दैन्य से प्रेम करते हो तो हे नाथ मैरा अभिमान भी मिटाकर अपने नाम के प्रति प्रेम जाग्रत करो नाथ! 
है नाथ! मैं जैसा भी हूं, पर आपका हूं, आपके सिवाय और कौन हैं जिसे मैं अपना कहूं, अपना मानलू। जैसा भी खरा खोटा हूं आपको गले लगाना ही पडेगा। मै आपका दर छोडने वाला नहीं । 
हां प्रभु यह सत्य हैं कि, मेरे में ऐसा क्या हैं ?जो आप अपनाओगें ! कुछ भी ,एक भी ऎसा गुण नहीं जिसको देख के आप अपनालोगे ,! यहाँ तो अवगुणों का भण्डार हैं, पर जैसा भी हूं अब आपका हूं, अब रामनाम महाराज की शरण हूं, तो आपको ही तारणा मारणा हैं जो भी आपको करना हैं, आप करो, और आप जाणों। 
वो एक कहावत हैं न कि, 
गैलो गुंगों बावलो, 
तो भी चाकर रावलो "" 
अतः है रामनाममहाराज जैसा भी हूं आप सम्भालो । क्योंकि कोई गुण ही होते तो बात अलग थी पर, आप के सामने कोई क्या योग्यता ले कर आजायेगा ! 
हमारी तो करणी भरणी ही क्या ,जब महान भक्त राज महाराज भरत भी ऎसा कह रहे हैं। तो हमारी तो औकात ही क्या है ?
जौं करनी समुझै प्रभु मौरी।
नहिं निस्तार कलप सत कोरी।।
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ।
दीन बन्धु अति मृदुल सुभाऊ।।
अतः हैं राम नाम महाराज आपके ऎसे मृदुल स्वभाव को सुन कर ही आपकी शरण आने की हिम्मत होती हैं अन्यथा अगर में मेरे कर्मों को देखुं तो फिर तो जैरामजी की हो जायेगी ! 
वहाँ तो कोई एक भी कर्म ऎसा नहीं हैं खाते में जिसके सहारे आपके दरवाजे पर आकर खडे होने जैसा भी हों, ! हिम्मत ही नहीं होगी, वहाँ दर पर आने की छोडो, दरवाजे की तरफ रूख करने की भी हिम्मत नहीं होगी, परंतु ,शरण गये प्रभु काहु न त्यागा""'. 
हॆ राम नाम महाराज आपने तो करोड़ो को तारा हैं, तो क्या मेरे जॆसे को तारने‌ में आपको क्या जोर आने वाला हैं, आपकी तो पलक जपकते ही अरबो खरबों सृष्टियां बनती बिगडती हैं तो फिर मेरे जैसे अदने से आपके पूत को तारने में कौनसा बडा काम है। अतः आपके रामनाम महाराज की तारिफ सुनकर आ रहा हूं आपकी शरण,। 
श्रवण सुजसु सुनि आय्उँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरती हरण शरण सुखद रघुवीर।।
तो हे रामनाममहाराज मैने तो आपकी शरण लेली हैं। अब मैरो तो एक राम नाम दुसरो न कोई। मैरे जैसे अधम को तार सकै बस सोई।।
और कोई नहीं दुनिया में अतः आपकी शरण।जय जय रामनामाकंन । 
श्री राम नाम धन संग्रह बैंक अजमेर से जुड़ कर रामनामाकंन करना आरंभ किजीये, जगत पर आये इस कठोर संकट का नासक है। रामनाम। 
सनस्त महामारियों का नासक हैं रामनाम।


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