अमरोहा में दलित युवक की घर में घुसकर हत्या, वजह लेनदेन या और कुछ का झगड़ा


उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले की हसनपुर तहसील स्थित डोमखेड़ा के रहने वाले ओमप्रकाश का परिवार इन दिनों ख़ौफ़ में है. कुछ दिन पहले उनके नाबालिग बेटे की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पुलिस ने चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और तीन लोग गिरफ़्तार कर लिए थे. बीबीसी से बातचीत में ओमप्रकाश कहते हैं, "साहब हम बहुत ख़ौफ़ में हैं. वो लोग कह रहे हैं कि अभी बेटे को मारा है, अगला नंबर तुम्हारा है. अब यहां हमें डर लगता है. यही हाल रहा तो हम गांव छोड़कर कहीं और जा बसेगे." ओमप्रकाश के सोलह वर्षीय बेटे विकास की बीते छह जून की मध्य रात्रि घर पर ही गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. ओमप्रकाश और उनके परिजनों का कहना है कि विकास की मौत की वजह कुछ दिन पहले मंदिर में प्रवेश को लेकर हुआ विवाद है, जबकि अभियुक्त पक्ष के लोग इस बात से साफ़ इनकार कर रहे हैं और पुलिस-प्रशासन भी यह मानने को तैयार नहीं है.


पुलिस सुरक्षा गुरुवार को ओमप्रकाश के घर पर कई पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए तैनात दिखे. घर में रिश्तेदारों से ज़्यादा पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अफसरों की आवाजाही लगी रहती है. चौहान यानी ठाकुर बाहुल्य इस गांव में ओमप्रकाश का घर गांव के बीच में है. दो कमरों वाले घर के आंगन में विकास की मां राजवती अपने बेटे को याद करके रोने लगती हैं जबकि पास बैठी महिलाएं उन्हें सांत्वना देती हैं. उनके पास ही विकास की बड़ी बहन कुंती रोते हुए कहती हैं, "मेरे भाई की जिस दिन हत्या हुई, उस दिन शाम को ही मेरी उससे बात हुई थी. वह बोल रहा था कि तू आ जा, मेरा लाला से झगड़ा हो गया है."


तनाव की स्थिति ओमप्रकाश ने 31 मई को हुए कथित विवाद के बाद पुलिस में शिकायत की थी कि उन लोगों को मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है, लेकिन पुलिस ने उस शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया. इस अनदेखी पर हसनपुर के थानाध्यक्ष को लाइन हाज़िर कर दिया गया है. हालांकि अमरोहा के पुलिस अधीक्षक डॉक्टर विपिन ताड़ा, विकास की हत्या की वजह पैसों के लेन-देन को बताते हैं. बीबीसी से बातचीत में एसपी विपिन ताड़ा कहते हैं, "जाँच में सामने आया है कि ओमप्रकाश के लड़के ने पिछले साल आम का एक बाग़ मृतक के भाई से ठेके पर लिया था. उसमें कई लड़कों ने साथ में काम किया था, जिनमें अभियुक्त भी शामिल था. उसके पाँच हज़ार रुपये अभी बक़ाया थे. उसी को लेकर विवाद चल रहा था. जिस अभियुक्त पर आरोप लगा रहे हैं, वह एक जून को ही गांव छोड़ चुका था. चार लोगों के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज हुई है. तीन की गिरफ़्तारी हो चुकी है. अपनी जान को खतरा बताने जैसी कोई शिकायत ओमप्रकाश ने नहीं की है."


विवाद गांव के लोग बताते हैं कि दोनों पक्षों में इससे पहले भी कोई विवाद नहीं था बल्कि साथ में काम भी करते थे. जिन लोगों पर हत्या का आरोप लगा है, पुलिस के अभिलेखों में उन पर अब तक किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल होने के प्रमाण नहीं हैं. गांव के कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "इन लोगों का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन गांव में छोटे-मोटे अपराधों में इनका नाम अक्सर आता रहा है." वहीं विकास की हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें भी जारी हैं. एक ओर जहां सोशल मीडिया पर कुछ लोग मंदिर प्रवेश से इसे जोड़ते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी इसे दलित उत्पीड़न बता रहे हैं.


पिछले कुछ दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के कई लोगों की हत्या हुई है. ज़्यादातर मामले आपसी विवाद से जुड़े हैं लेकिन इन्हें जातीय संघर्ष से जोड़ने की भी कोशिशें हुई हैं. मुरादाबाद मंडल में ही अब तक करीब आधा दर्जन दलितों की हत्याएं हो चुकी हैं. राज्य के आला अधिकारी इस बारे में पूछे जाने पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताते लेकिन अनाधिकारिक रूप से भी सिर्फ यही कहते हैं कि पुलिस जाँच कर रही है, जो भी दोषी होंगे उन्हें सज़ा ज़रूर मिलेगी. आठ जून को बिजनौर के हल्दौर गांव में एक 55 वर्षीय व्यक्ति की हत्या कर दी गई. मारे गए नरदेव के परिजनों का आरोप है कि गांव के ही कुछ दबंगों ने पीट-पीटकर मार डाला जबकि अभियुक्त पक्ष का कहना है कि नरदेव की मौत आम के पेड़ से गिरने की वजह से हुई. राज्य पुलिस के एक आला अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हर हत्या को दलित-सवर्ण से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है. कुछ जगहों पर आपसी लड़ाई को भी जातीय संघर्ष के रूप में दिखाने की कोशिश होती है जो ठीक नहीं है. जातीय संघर्ष तब समझा जाए जबकि विवाद में दो अलग-अलग पक्षों के कई लोग इसमें शामिल हों. उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष और राज्य के पूर्वी डीजीपी डॉक्टर बृजलाल कहते हैं, "यूपी में योगी सरकार में दलित पूरी तरह सुरक्षित हैं. जहां कहीं भी उनके खिलाफ़ अन्याय होता है, तुरंत कानूनी कार्रवाई हो रही है. कुछ लोग इन मुद्दों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश में रहते हैं लेकिन इससे उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है." राजनीति


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