अस्पतालों के चक्कर लगाती रही गर्भवती महिला, किसी ने नहीं किया भर्ती, एंबुलेंस में मौत आखिर क्यों गरीबों के लिये प्रशासन सहज नहीं होता? - दिनेश साहू प्रधान संपादक दैनिक रोजगार के पल


 


तीस वर्षीय गर्भवती महिला के परिजन नोएडा और गाज़ियाबाद के अस्पतालों में उसे लेकर घंटों घूमते रहे, आठ अस्पतालों के चक्कर लगाए, मिन्नतें की लेकिन अस्पतालों ने महिला को भर्ती नहीं किया. आख़िरकार महिला ने अपने गर्भस्थ शिशु के साथ एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया. यह पूरी घटना राजधानी दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के दो सबसे हाई प्रोफ़ाइल कहे जाने वाले जिलों में हुई है. इस पूरी घटना का संज्ञान लेते हुए नोएडा के डीएम सुहास एलवाई ने जांच के आदेश दिए हैं.


शैलेंद्र बताते हैं, "मैं ऑटो चलाता हं. ऑटो पर बैठाकर हम लोग पहले ईएसआईसी अस्पताल ले गए लेकिन वहां से उसे सेक्टर तीस स्थित जिला अस्पताल में रेफर कर दिया गया. जिला अस्पताल ने यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि हम लोग कंटेनमेंट ज़ोन से आ रहे हैं इसलिए वो भर्ती नहीं कर सकते के बाद हम लोग नोएडा सेक्टर 51 स्थित शिवालिक हॉस्पिटल ले गए जहां उसका पहले भी इलाज हुआ था. लेकिन उन लोगों ने कहा कि मरीज की हालत ज़्यादा गंभीर है इसलिए किसी बड़े अस्पताल में ले जाइए. फिर हम फ़ोर्टिस अस्पताल ले गए." हते हैं कि फ़ोर्टिस अस्पताल वालों ने यह कहकर उन्हें मना कर दिया कि उनके यहां इलाज का ज़्यादा आएगा जिसे आपलोग दे नहीं सकते हैं. शैलेंद्र बताते हैं, "फ़ोर्टिस की डॉक्टर ने कहा कि वेंटिलेटर पर डाल देंगे तो पांच छह लाख रुपये का बिल आएगा. आप लोग पैसा दे नहीं पाओगे और फिर झगड़ा करोगे. मैंने उनसे कहा कि आप भर्ती कर लीजिए, हम जैसे भी संभव होगा, बिल चुकाएंगे लेकिन उन लोगों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया." वहीं शैलेंद्र बताते हैं कि उसके बाद भी उन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और जेपी, शारदा अस्पताल और जिम्स में ले गए लेकिन किसी ने भी नीलम को भर्ती नहीं किया. शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि शारदा अस्पताल में हमें कहा गया कि पहले कोविड-19 टेस्ट कराना पड़ेगा.


नीलम के परिजनों को शारदा अस्पताल इसलिए रेफर किया गया क्योंकि वहां कोरोना संक्रमित लोगों को भर्ती किया जाता है. हालांकि उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे लेकिन अस्पतालों ने बिना डॉक्टरों के देखे ही ये निर्णय ले लिया कि मरीज कोरोना संक्रमित हो सकता है. केजरीवाल बोले, सारे मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि अभी कुछ दिन पहले ही नीलम सेक्टर 51 स्थित शिवालिक अस्पताल में पांच दिन तक भर्ती रही लेकिन उस अस्पताल ने भी कोराना संदिग्ध मानते हए भर्ती करने से मना कर दिया. शैलेंद्र कुमार अपने भाई के साथ नीलम को लेकर जिन-जिन अस्पतालों में भटकते रहे, उन अस्पतालों के पास इस सवाल के कोई जवाब नहीं हैं कि उन्होंने मरीज को भर्ती क्यों नहीं किया. कई अस्पतालों से हमने उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया. गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने इस मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई है. उन्होंने अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व मुनींद्र नाथ उपाध्याय और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर दीपक ओहरी को इसकी जांच सौंपी है.


नोएडा के अस्पतालों में लापरवाही के इससे पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं. पिछले दिनों एक व्यक्ति अपने नवजात शिशु को लेकर ग्रेटर नोएडा और नोएडा के अस्पतालों में भटकता रहा लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया. बाद में बच्चे की मौत हो गई. एक अन्य मामले में डॉक्टरों की कथित लापरवाही के कारण प्रसव पीड़ा से परेशान महिला ने अस्पताल के बाहर एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन इलाज न होने के कारण नवजात शिशु की मौत हो गई. इन सभी मामलों की चल रही है.


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