बाबा रामदेव’: योग गुरु से, जड़ी बूटी के ब्रांड और फिर बने उद्योगपति प्रकाश प्रकाश बियाणी

. याद करें, बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गाँधी सन 1915 में जब स्वदेश लोटे थे तब उनका पहनावा पाश्चात्य था. गुलाम भारत की 35 करोड़ आबादी के मन में आजादी की चाह जगाना बड़ी चुनौती थी. गांधीजी ने आम भारतीय की जीवन शैली अपनाई. सूट-बूट उतारे, धोती पहनी और लाठी थामी. लक्जरी यात्रा का मोह छोड़ा और रेल की तृतीय श्रेणी में सारे देश का भ्रमण किया. लोगो ने उन्हें महात्मा कहा तो उन्होंने यह नाम स्वीकार कर लिया. वे जानते थे कि अशिक्षित भारतीय महात्मा-संत की बात सुनते हैं. बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गाँधी का महात्मा अवतार देखते देखते आजादी की चाह का उत्प्रेरक बन गया. बाबा रामदेव ने भी यही किया. सन्यासी की वेशभूषा में योग गुरु की पहचान बनाई. योग सिखाते हुए जड़ी बूटी के गुणधर्म समझाए और फिर उनसे बने प्रोडक्ट बनाए और बेचे. वे इतने चतुर भी हैं कि बिजनेस चैनल पर होंगे तो वहां भी योग करते हुए बातचीत करेंगे और बातचीत करते हुए दवा बेचने लगेंगे. यह तय करना मुश्किल कर देंगे कि वास्तव में वे क्या है- योग गुरु हैं, पतंजली के ब्रांड अम्बेसडर है या कि उद्योगपति? बाबा रामदेव ग्रेट मार्केटियर भी है. वे योग गुरु से उद्योगपति बने पर सन्यासी वेशभूषा नहीं त्यागी. योग गुरु की पहचान का मुखौटा लगाकर ही उन्होंने बिजनस किया. हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के एक निर्धन किसान परिवार में जन्मे रामकिशन यादव ने 8वीं कक्षा तक ग्रामीण स्कुल में पढाई की. इसके बाद उन्होंने खानपुर के एक गुरुकुल में संस्कृत व योग सीखी. बचपन में उन्हें लकवा हुआ पर योग ने उन्हें विकलांगता से बचा लिया. इसके बाद वे सन्यासी बने तो उन्हें नया नाम मिला- बाबा रामदेव. सन 1995 में बाबा रामदेव ने दिव्य योग मन्दिर ट्रस्ट बनाया और वे योग प्रशिक्षक बन गए. योग गुरु के रूप में बाबा रामदेव ने सबसे अलग पहल की. उनके पहले योग शिक्षक योग आसनों पर जोर देते थे. उन्होंने प्राणायाम और हेल्दी फूड्स को योग से जोड़ा. यही नहीं, उन्होंने उन सामान्य रोगों पर ही फोकस किया जिनसे सबसे ज्यादा लोग पीड़ित है. रक्तचाप, ह्रदय रोग, मधुमेह, मोटापा, कब्ज, गैस, बेक पेन, स्पोंडलाइटिस जैसे रोगों का योग से उपचार उन्होंने सुझाया. खुले मैदानो में हजारों लोगों को वे योग सिखाने लगे. अपनी ओपन स्कॉय योग कक्षाओं में वे लोगों को जड़ी बूटियों के गुण धर्म बताए फिर आचार्य बालकृष्ण के साथ पतंजली आयुर्वेद की स्थापना की. पतंजली के बैनर तले वे हर्बल औषधियां बनाने लगे. योग के साथ आयुर्वेद के पुरातन ज्ञान को जोड़ने का उन्हें सुफल मिला. सन 2009-10 में पतंजली आयुर्वेद ने 163 करोड़ रुपए का व्यापार किया जो दुसरे ही साल करीब दोगुना (317 करोड़ रुपए) हो गया. इसके बाद तो ‘बाबा रामदेव ब्रांड’ तेजी से दौड़ पडा. पतंजली आज ब्यूटी केयर प्रोडक्ट्स, फ़ूड स्नेक्स, शरबत, ड्रिंक्स, स्पाइसेस, बिस्किट, आयुर्वेदिक औषधियां और होम यूटिलिटी से लेकर टायलेटरीज जैसे ५०० से ज्यादा प्रोडक्ट्स बना रहा है. इनकी बिक्री के लिए पतंजली ने राष्ट्रव्यापी रिटेल आउटलेट्स श्रंखला स्थापित की है तो बिग बाजार को भी जरिया बनाया है. हरिद्वार में फ़ूड और हर्बल पार्क स्थापित किया है. कोरोना महामारी फैली तो कोरोना की दवा बनाने का दावा किया है. यही नहीं रूचि सोया को खरीदकर बाबा रामदेव ने सोया उद्योग के साथ पिछले दरवाजे से शेयर मार्केट में भी इंट्री ले ली है. ब्रांड लोकल हो या ग्लोबल उसकी ब्रांडिंग उत्पाद की क्वालिटी पर निर्भर करती है. ब्रांडेड प्रोडक्ट्स मंहगे होते है इस धारणा को ध्वस्त करते हुए पतंजली आयुर्वेद ने पुरातन ज्ञान और नेचरल रा-मटेरियल से लोगों की दैनंदिन जरूरतों के प्रोडक्ट्स कम लागत में बनाए और प्रतिस्पर्धियों से कम मूल्य पर बेचे. पतंजली के उत्पादों की क्वालिटी पर प्रश्न चिन्ह लगे तो लोगों का यह कहकर इमोशनल ब्लेक किया कि विदेशी कम्पनियों के बजाए स्वदेशी कम्पनी और उसके उत्पाद ही वापरो, गुणवत्ता को लेकर चाहे थोडा समझौता कर लो पर देश का पैसा देश के बाहर मत जाने दो. आज पतंजलि २५ हजार करोड़ रुपए का बिजनस हाउस है पर इसके प्रमोटर बाबा रामदेव ने अपनी पहली पहचान योग गुरु नहीं बदली है. वे लक्जरी कार से हर की पौड़ी पर उतरते है और गंगा किनारे योग करने लगते है. वे जानते हैं कि योग ही उनकी सफलता की बुनियाद है. जिस दिन वे शुद्ध बिजनेसमेन बन जाएँगे उस दिन इतनी आसानी से पतंजली के उत्पाद नहीं बेच सकेंगे. रिवर्स मार्केटिंग की बेहतरीन मिसाल है पतंजली के उत्पाद और by बाबा रामदेव जो पहले ब्रांड बने फिर और उद्योगपति. अब आप चाहे तो कह दें कि बाबा रामदेव का लक्ष्य कारोबार फैलाना हैं, योग तो बहाना है.


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