हमारे देश का नाम भारत कैसे पड़ा ? (दिने साहू - प्रधान संपादक दैनिक रोजगार के पल)


 



देश का नाम बदलने पर बहस छिड़ी है, संविधान में दर्ज 'इंडिया दैट इज़ भारत' को बदलकर केवल भारत करने की माँग उठ रही है. इस बारे में एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई जिसपर बुधवार को अदालत ने सुनवाई की. याचिकाकर्ता की माँग थी कि इंडिया ग्रीक शब्द इंडिका से आया है और इस नाम को हटाया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने अदालत से अपील की थी कि वो केंद्र सरकार को निर्देश दे कि संविधान के अनुच्छेद-1 में बदलाव कर देश का नाम केवल भारत करे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि संविधान में पहले से ही भारत का ज़िक्र है. संविधान में लिखा है इंडिया डैट इज़ भारत.' प्राचीनकाल से भारतभूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं मसलन जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया. सिन्धु का अर्थ नदी भी है और सागर भी. उस रूप में देश के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र को किसी ज़माने में सप्तसिन्धु या पंजाब कहते थे तो इसमें एक विशाल उपजाऊ इलाके को वहाँ बहने वाली सात अथवा पाँच प्रमुख धाराओं से पहचानने की बात ही तो है. इसी तरह भारत नाम के पीछे सप्तसैन्धव क्षेत्र में पनपी अग्निहोत्र संस्कृति (अग्नि में आहुति देना) की पहचान है.



भारत के दावेदार कई 'भरत' पौराणिक युग में भरत नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं. दुष्यन्तसुत के अलावा दशरथपुत्र भरत भी प्रसिद्ध हैं जिन्होंने खड़ाऊँ राज किया. नाट्यशास्त्र वाले भरतमुनि भी हुए हैं. एक राजर्षी भरत का भी उल्लेख है जिनके नाम पर जड़भरत मुहावरा ही प्रसिद्ध हो गया. मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे. एक योगी भरत हुए हैं. पद्मपुराण में एक दुराचारी ब्राहमण भरत का उल्लेख बताया जाता है.


दुष्यन्त-शकुन्तला पुत्र भरत आमतौर पर भारत नाम के पीछे महाभारत के आदिपर्व में आई एक कथा है. महर्षि कण्व और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला और पुरुवंशी राजा दुष्यन्त के बीच गान्धर्व विवाह होता है. इन दोनों के पुत्र का नाम भरत हुआ. ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे और उनके नाम पर इस भूखण्ड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा. अधिकांश लोगों के दिमाग में भारत नाम की उत्पत्ति की यही प्रेमकथा लोकप्रिय है. आदिपर्व में आए इस प्रसंग पर कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् नामक महाकाव्य रचा. मूलतः यह प्रेमाख्यान है और माना जाता है कि इसी वजह से यह कथा लोकप्रिय हुई. दो प्रेमियों के अमर प्रेम की कहानी इतनी महत्वपूर्ण हुई कि इस महादेश के नामकरण का निमित्त बने शकुन्तला-दुष्यन्तपुत्र यानी महाप्रतापी भरत के बारे में अन्य बातें जानने को नहीं मिलती.


भरत गण से भारत भरतजन अग्निपूजक, अग्निहोत्र व यज्ञप्रिय थे. वैदिकी में भरत | भरथ का अर्थ अग्नि, लोकपाल या विश्वरक्षक (मोनियर विलियम्स) और एक राजा का नाम है. यह राजा वही 'भरत है जो सरस्वती, घग्घर के किनारों पर राज करता था. संस्कृत में 'भर' शब्द का एक अर्थ है युद्ध. दूसरा है 'समूह या 'जन-गण और तीसरा अर्थ है 'भरण-पोषण'. जानेमाने भाषाविद डॉ. रामविलास शर्मा कहते हैं - "ये अर्थ एक दूसरे से भिन्न व परस्पर विरोधी जान पड़ते हैं. अतः भर का अर्थ युद्ध और भरण-पोषण दोनों हो तो यह इस शब्द की अपनी विशेषता नहीं है. 'भर' का मूलार्थ गण यानी जन ही था. गण के समान वह किसी भी जन के लिए प्रयुक्त हो सकता था. साथ ही वह उस गण विशेष का भी सूचक था जो 'भरत' नाम से विख्यात हुआ". इसका क्या अर्थ हआ?


'भारती' और 'सरस्वती' का भरतों से रिश्ता किन्तु हज़ारों साल पहले अग्निप्रिय भरतजनों की शुचिता और सदाचार इस तरह बढ़ा चढ़ा था कि निरन्तर यज्ञकर्म में करते रहने से भरत और अग्नि शब्द एक दूसरे से सम्प्रक्त हो गए. भरत, भारत शब्द मानों अग्नि का विशेषण बन गए. सन्दर्भ बताते हैं कि देवश्रवा और देववात इन दो भरतों यानी भरतजन के दो ऋषियों ने ही मन्थन के द्वारा अग्नि प्रज्वलन की तकनीक खोज निकाली थी.


दाशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं की जंग प्राचीन अन्धों में वैदिक युगीन एक प्रसिद्ध जाति भरत का नाम अनेक सन्दर्भो में आता है. यह सरस्वती नदी या आज के घग्घर के कछार में बसने वाला समूह था. ये यज्ञप्रिय अग्निहोत्र जन थे. इन्हीं भरत जन के नाम से उस समय के समूचे भूखण्ड का नाम भारतवर्ष हुआ. विद्वानों के मुताबिक़ भरत जाति के मुखिया सुदास थे. वैदिक युग से भी पहले पश्चिमोत्तर भारत में निवास करने वाले जनों के अनेक संघ थे. इन्हें जन कहते थे.


महाभारत से ढाई हज़ार साल पहले 'भारत' इस महायुद्ध को महाभारत से भी ढाई हज़ार वर्ष पूर्व हुआ बताया जाता है. साधारण सी बात है कि वह युद्ध जिसका नाम ही महाभारत' है कब हुआ होगा? इतिहासकारों के मुताबिक़ ईसा से करीब ढाई हज़ार साल पहले कौरवों-पाण्डवों के बीच महासमर हुआ था. एक गृहकलह जो महासमर में बदल गयी यह तो ठीक है, पर इस देश का नाम भारत है और दो कुटुम्बों की कलह की निर्णायक लड़ाई में देश का नाम क्यों आया.


भारत-ईरान संस्कृति स्पष्ट है कि महाभारत में उल्लेखित शकुन्तलापुत्र महाप्रतापी भरत का उल्लेख एक रोचक प्रसंग है. अब बात करते हैं हिन्द, हिन्दुस्तान की. ईरानी-हिन्दुस्तानी पुराने सम्बन्धी थे. ईरान पहले फ़ारस था. उससे भी पहले अर्यनम, आर्या अथवा आर्यान. अवेस्ता में इन नामों का उल्लेख है. माना जाता है कि हिन्दूकुश के पार जो आर्य थे उनका संघ ईरान कहलाया और पूरब में जो थे उनका संघ आर्यावर्त कहलाया. ये दोनों समूह महान थे. प्रभावशाली थे. हिन्द, हिन्दश, हिन्दवान हिन्दश शब्द तो ईसा से भी दो हज़ार साल पहले अक्कादी सभ्यता में था. अक्कद, सुमेर, मिस सब से भारत के रिश्ते थे. ये हड़प्पा दौर की बात है. सिन्ध सिर्फ नदी नहीं सागर, धारा और जल का पर्याय था. सिन्ध का सात नदियों वाले प्रसिद्ध सप्तसिन्ध', 'सप्तसिन्धु क्षेत्र को प्राचीन फ़ारसी में 'हफ़्तहिन्दू कहा जाता था. क्या इस 'हिन्दू' का कुछ और अर्थ है? ज़ाहिर है, हिन्द, हिन्दू, हिन्दवान, हिन्दुश जैसी अनेक संज्ञाएँ अत्यन्त प्राचीन हैं. इंडस इसी हिन्दश का ग्रीक समरूप है. यह इस्लाम से भी सदियों पहले की बातें है.


हम हैं 'भारतवासी' इंडिका का प्रयोग मेगास्थनीज़ ने किया. वह लम्बे समय तक पाटलीपुत्र में भी रहा मगर वहाँ पहुँचने से पूर्व बख़्त्र, बाख्त्री (बैक्ट्रिया), गान्धार, तक्षशिला (टेक्सला) इलाक़ों से गुज़रा. यहाँ हिन्द, हिन्दवान, हिन्दू जैसे शब्द प्रचलित थे. उसने ग्रीक स्वरतन्त्र के अनुरूप इनके इंडस, इंडिया जैसे रूप ग्रहण किए. यह ईसा से तीन सदी और मोहम्मद से 10 सदी पहले पहले की बात है. जहाँ तक जम्बुद्वीप की बात है यह सबसे पुराना नाम है. आज के भारत, आर्यावर्त, भारतवर्ष से भी बड़ा. परन्तु ये तमाम विवरण बहुत विस्तार भी माँगते हैं और इन पर अभी गहन शोध चल रहे हैं. जामुन फल को संस्कृत में 'जम्बु' कहा जाता है. अनेक उल्लेख हैं कि इस केन्द्रीय भूमि पर यानी आज के भारत में किसी काल में जामुन के पेड़ों की बहुलता थी. इसी वजह से इसे जम्बु द्वीप कहा गया. जो भी हो, हमारी चेतना जम्बूद्वीप के साथ नहीं, भारत नाम से जुड़ी है. 'भरत संज्ञा की सभी परतों में भारत होने की कथा खुदी


 


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