जीवन को दो ही तरीके से जिया जा सकता है, तपस्या बनाकर या तमाशा बनाकर

राकेश शौण्डिक - राँची/झारखंड)


*जीवन को दो ही तरीके से जिया जा सकता है, तपस्या बनाकर या तमाशा बनाकर। तपस्या का अर्थ जंगल में जाकर आँखे बंद करके बैठ जाना नहीं अपितु अपने दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को मुस्कुराकर सहने को क्षमता को विकसित कर लेना है।* *हिमालय पर जाकर देह को ठंडा करना से ज्यादा महत्वपूर्ण तपस्या है हिमालयकी तरह अचलता/शीतलता अपने दिमाग में रखना। किसी के क्रोधपूर्ण वचनों को मुस्कुराकर सह लेना जिसे आ गया, सच समझ लेना उसका जीवन तपस्या ही बन जाता है।* *छोटी-छोटी बातों पर जो क्रोध करता है निश्चित ही उसका जीवन एक तमाशा सा बनकर ही रह जाता है। हर समय दिमाग गरम रखकर रहना यह जीवन को तमाशा बनाना है और दिमाग ठंडा रखना ही जीवन को तपस्या सा बनाना है।* *🙏🌹🌷जय श्रीकृष्ण🙏⚘💐*


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