“सभी श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अपने गंतव्य पर पहुंची हैं. ज़्यादा भीड़ की वजह से कुछ को बस थोड़ी देर हुई. 4,040 ट्रेनों में से सिर्फ 71 ट्रेनों यानी 1.75% को डायवर्ट किया गया.” केंद्रीय रेलमंत्री पीयूष गोयल ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में ये दावा किया है. यही बात उन्होंने ट्वीट भी की है. एक तरफ़ रेलमंत्री के ये दावे और दूसरी तरफ़ श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के रास्ता भटकने, घंटों लेट होने और बदहाली के शिकार होने की लगातार आती ख़बरें. इनमें से सच क्या है? मज़दूरों से टिकट के पैसे लिए जाने पर विपक्षी पार्टियों की आलोचना और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भी क्या पीयूष गोयल के दावों की तरह स्पेशल श्रमिक ट्रेनों में सब बढ़िया है? ट्रेनों में अब तक कम से कम 80 लोगों की मौतइंडियन रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स (आरपीएफ) की शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार नौ मई से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफ़र के दौरान कम से कम 80 लोगों की मौत हुई है. श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में मरने वालों के ये आंकड़े किसी गैर-सरकारी संस्था ने नहीं बल्कि खुद इंडियन रेलवे प्रोटेक्शन फ़ोर्स ने जारी किए हैं. ये आंकड़े रेलमंत्री के ‘सब ठीक है के दावों के ठीक उलट कहानी बयां करते हैं. अगर सिर्फ़ पिछले हफ्ते के रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो सात दिनों के भीतर कम से कम नौ लोगों की मौत श्रमिक ट्रेनों में यात्रा के दौरान हुई है. इन मरने वालों में बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की वो महिला भी हैं जिनकी वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुई थी. वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि महिला मृत अवस्था में प्लेटफ़ॉर्म पर पड़ी है और उनका बच्चा मौत से पूरी तरह अनजान उनके साथ खेल रहा है.
हालांकि सरकार ने महिला को पहले से बीमार' बताकर उनकी मौत से पल्ला झाड़ लिया था. भारत सरकार की सूचना एजेंसी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो' ने भी श्रमिक ट्रेन में महिला की मौत को फेक न्यूज़' बताया था. हालांकि रेलमंत्री ने ये नहीं बताया कि बहुत आवश्यक का पैमाना क्या होगा. रोज़ी-रोटी छिनने और राशन ख़रीदने के पैसे न बचने को ‘बहुत आवश्यक माना जाएगा या नहीं? मकान का किराया न चुका पाने पर बेघर कर दिए जाने को ‘बहुत आवश्यक माना जाएगा या नहीं? सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो देखने को मिले हैं जिनमें ट्रेन रुकते ही लोग स्टेशन पर पानी की बोतलों और बिस्किट के पैकेटों पर टूट पड़ते नज़र आते हैं. 'थोड़ी देर' कितनी देर होती है? 23 महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन गोरखपुर के बजाय ओडिशा के राउरकेला पहंच गई. सवाल उठने पर रेलवे ने कहा कि इस ट्रेन का रास्ता बदला जाना ‘पूर्व नियोजित था. इसी तरह बेंगलुरु से उत्तर प्रदेश के बस्ती के लिए निकली ट्रेन एनसीआर में गाज़ियाबाद पहुंच गई. यह श्रमिक स्पेशल ट्रेन अपने गंतव्य तक 20 घंटे से ज्यादा की देरी से पहुंची. क्या रेलमंत्री के दावों के अनुसार इस 20 घंटे की देरी को थोड़ी देर' माना जाए? 'प्रवासी मज़दूरों के हितों का ध्यान रखते हुए' डायवर्ट किया जा सकता है. रेल मंत्रालय और रेल मंत्री पीयूष गोयल लगातार लेट होती और रास्ता भटकती ट्रेनों को लेकर सफाई दे रहे हैं. पीयूष गोयल ट्रेनों के रास्ता भटकने की ख़बरों को फेक न्यूज़ बता रहे हैं और कह रहे हैं ट्रेनें पूर्व निर्धारित तरीके से डायवर्ट की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि 4,040 में से सिर्फ 71 ट्रेनें (1.75%) ट्रेनें डायवर्ट की गई. 1.75% सुनने में छोटा सा प्रतिशत लगता है लेकिन 71 ट्रेनों में लाखों लोगों की परेशानियां भी क्या इतनी ही छोटी होंगी?