जो नहीं कह सके वो *अनुभूति* थी ।।
कह नहीं सकते, वो *मर्यादा* है ।।
*जिंदगी* का क्या है ? आ कर *नहाया*,
पत्तों* सी होती है कई *रिश्तों की उम्र*,
आज *हरे*-------! कल *सूखे* -------!
क्यों न हम, *जड़ों* से; रिश्ते निभाना सीखें ।।
और कभी *बहरा* ; होना ही पड़ता है ।।
*बरसात* गिरी और *कानों* में इतना कह गई कि---------! *गर्मी* हमेशा किसी की भी नहीं रहती ।।
*नसीहत*, *नर्म लहजे* में ही अच्छी लगती है ।
*दरवाजा* खुलवाना होता है; तोड़ना नहीं ।।
*घमंड*-----------! किसी का भी नहीं रहा,
*टूटने से पहले* , *गुल्लक* को भी लगता है कि ;
जिस बात पर , कोई *मुस्कुरा* दे;
बात --------! बस वही *खूबसूरत* है ।।
थमती नहीं, *जिंदगी* कभी, किसी के बिना ।।
मगर, यह *गुजरती* भी नहीं, अपनों के बिना ।।