बिक रहा है पानी पवन बिक न जाए


(दुर्गेश शर्मा - लेखक म.प्र. कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता है)


किसी कवि ने क्या खूब लिखा है


बिक रहा है पानी पवन बिक न जाए


बिक गयी है धरती गगन बिक न जाए


चाँद पर भी बिकने लगी है जमीं


डर है की सूरज की तपन बिक न जाए


हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति


डर है की कहीं धर्म बिक न जाए


देकर दहेज ख़रीदा गया है अब दुल्हे को


कही उसी के हाथों दुल्हन बिक न जाए


 हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता


कही इन्ही के हाथों वतन बिक न जाए


सरे आम बिकने लगे अब तो सांसद और विधायक


डर है की कहीं संसद भवन और विधानसभा बिक न जाए


मरा तो भी आँखें खुली हुई हैं


डरता है मुर्दा कहीं कफ़न बिक न जाए !!!


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