डीपीएम के गले की फांस बना समूह प्रेरक स्थानांतरण मामला

चरम पर एनआरएलएम मे भ्रष्टाचार व अफसरों की भरैशाही


सिंगरौली-- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) सिंगरौली मे व्याप्त भरैशाही तथा भ्रष्टाचार का आलम यह है कि शायद विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के अधिकार तथा कर्तव्य सिर्फ भ्रष्टाचारी गतिविधियों को अंजाम देने तक ही सिमटकर रह गया है ?


यद्यपि एनआरएलएम द्वारा जिले में गरीबों की गरीबी दूर करने के नाम पर सरकारी खजाने की लूट तथा विभागीय अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार कर अवैध तरीके से धनोपार्जन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूत्रों के मुताबिक इस विभाग में भ्रष्टाचार से जुड़े सारे गोरखधंधे मे जिला परियोजना प्रबंधक सहित उनके तथाकथित पसंदीदे, चुनिंदे अधीनस्थ अधिकारी शामिल हैंजिला परियोजना प्रबंधक पर आरोप है कि उनके द्वारा जहां समूह प्रेरकों से फर्जी तरीकों से काम करने तथा समूहों से अवैध तरीकों से धन उगाही का दबाव बनाया जाता है। वहीं विभागीय सामग्री खरीदी के नाम पर बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप भी लगाये जा रहे हैं। बताया जाता है कि जो समूह प्रेरक डीपीएम के भ्रष्टाचारी कृत्यों मे शामिल नहीं होता अथवा डीपीएम व उनके कथित सहयोगियों के फर्जीवाड़े मे नहीं साथ देते उनके खिलाफ अनुशासनहीनता के झूठे आरोपों के साथ साथ उन पर कार्य के प्रति लापरवाही बरतने के मनगढंत आरोप लगाते हुए वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत कर उन्हें मानसिक तौर पर परेशान किया जाता है। तत्संबंध मे हासिल जानकारी के मुताबिक बीते मार्च महीने मे मध्यप्रदेश की तत्कालीन कमलनाथ सरकार के स्थानांतरण उद्योग के तहत एनआरएलएम विभाग मे थोक के भाव समूह प्रेरकों के स्थानांतरण किये गए थे। उक्त स्थानांतरण आदेश सूची में जिले के चितरंगी तथा देवसर विकास खण्ड के समूह प्रेरक भी शामिल थे। जबकि नियमों के तहत प्रदेश के संविदा कर्मचारियों के थोक मे किये गए स्थानांतरण सरकारी नियमों के विरूद्ध थे। बाबजूद इसके विभागीय अधिकारियों की भ्रष्टाचारी नीति के आगे सारे कायदे कानूनों को शिफर रखा गया। आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस आदेश के तहत देवसर ब्लॉक के समूह प्रेरक का स्थानांतरण किया गया था उसी आदेश मे चितरंगी विकास खण्ड के समूह प्रेरक का भी नाम स्थानांतरण सूची में शामिल थासूत्रों के मुताबिक डीपीएम ने रिश्वत की मोटी रकम लेकर चितरंगी ब्लॉक के समूह प्रेरक को भारमुक्त नहीं किया। जबकि डीपीएम को देवसर ब्लॉक के समूह प्रेरक से रिश्वत की मोटी रकम नहीं मिलने पर उसे कोरोना संक्रमण की महामारी के दौरान उन विषम परिस्थितियों मे खिलचीपुर (राजगढ़) के लिए भारमुक्त कर दिया गया, जब देश में सार्वजनिक आवागमन पूरी तरह से ठप रहा! डीपीएम की संवेदनहीनता की वजह से रविकांत तिवारी को पिछले चार महीनों से वेतन नहीं मिला और कोरोना संक्रमण के दौर मे रविकांत तिवारी आर्थिक तंगी से जूझ रहा हैइस संबंध में जब जिला परियोजना प्रबंधक अंजुला झा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस मामले में उनका कोई रोल नहीं हैबल्कि जो कुछ भी हुआ है वह जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी ऋतुराज सिंह द्वारा किया गया है।


रोचक बात यह है कि एनआरएलएम सिंगरौली मे व्याप्त भ्रष्टाचार, अधिकारियों की संवेदनहीनता तथा भरैशाही को लेकर स्थानीय मीडिया मे भी मुद्दों को बराबर उठाया जाता रहा हैउधर डीपीएम द्वारा देवसर विकास खण्ड के समूह प्रेरक के साथ किये गए भेदभावपूर्ण कार्यवाही का मामला तूल पकड़ लिया और न्यायालय की ड्योढ़ी तक पहुंच गया। जानकारी के मुताबिक देवसर ब्लॉक के समूह प्रेरक रविकांत तिवारी के स्थानांतरण पर हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए उन्हें यथावत बने रहने का आदेश भी जारी कर दिया हैपरंतु डीपीएम द्वारा हाईकोर्ट के आदेश पर अमल नहीं किया गया तथा तरह तरह की बहानेबाजी कर मामले को टरकाया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक स्थानांतरित चितरंगी ब्लॉक के समूह प्रेरक विजय बहादुर सिंह को कार्य की अधिकता का बहाना बनाकर भारमुक्त नहीं किया गया था। परंतु देवसर ब्लॉक के समूह प्रेरक को भारमुक्त करने के विभागीय अधिकारियों के आदेश पर हाईकोर्ट की रोक के मद्देनजर आनन फानन में शनिवार को विजय बहादुर सिंह को भी नाटकीय घटनाक्रम के तहत भारमुक्त आदेश थमा दिया गया। सूत्रों की मानी जाय तो डीपीएम को मोहरा बनाकर एनआरएलएम सिंगरौली मे अधीनस्थ पटनाव कर्मचारियों को परेशान करने से लेकर तमाम तरह के घोटालों का सारा खेल स्थापना शाखा के जिला प्रबंधक मगलेश्वर सिंह द्वारा किया जा रहा हैबताया जाता है कि एनआरएलएम मे भष्टाचार को अंजाम देते हुए मगलेश्वर सिंह ने अवैध तरीकों से करोड़ों की बेनामी संपत्ति अर्जित की है। गौरतलब है कि दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत सरकार की मंशा ग्रामीण इलाकों मे रहने वाले गरीब परिवारों को सरकार की ओर से आवश्यक आर्थिक सहायता की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है। ताकि गांवों मे रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को रोजगार पाने के लिए दर दर न भटकना पड़े तथा लोगों को अपने ही गांवों में स्वसहायता समूहों के जरिये स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्हें रोजगार के अवसर मुहैया कराया जा सके। परंतु विभागीय अधिकारियों की भरैशाही की वजहों से जहां 'दीनदयाल अंत्योदय योजना' भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है, वहीं इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर सरकार की मंशा पर पानी फिर गया है


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