अग्निपरीक्षा है मोदी ही नहीं ट्रंप पर भी है सबकी निगाहें "दुनिया के बड़े-बड़े सामर्थ्यवान देशों में कोरोना से जुड़े आँकड़े देखें तो उनकी तुलना में आज भारत बहुत संभली हुई स्थिति में है. महीनाढ़ महीना पहले दुनिया के कई देश एक प्रकार से भारत के बराबर खड़े थे आज उन देशों में भारत की तुलना में कोरोना के मामले 25 से 30 गुना ज़्यादा बढ़ गए हैं." -14 अप्रैल 2020 प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का अंश प्रधानमंत्री मोदी की ही तरह, उनके दूसरे मंत्रियों ने भी ट्विटर पर पोस्ट शेयर किए हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने कोरोना पर काफ़ी अच्छा काम किया है. इस वजह से दुनिया के लीरों की बीच मोदी की रैंकिंग बेहतर हैं. इन सभी फैसलों को गिनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ये कहा कि भारत ने समस्या बढ़ने का इंतजार नहीं किया बल्कि जैसे ही समस्या दिखी, तुरंत फैसले ले कर रोकने का प्रयास किया. लेकिन क्या कोरोना से निपटने के मामले में भारत की वाकई में विश्व में सराहना हो रही है? क्या इस वैश्विक महामारी ने दुनिया में प्रधानमंत्री मोदी का कद ऊँचा कर दिया है?
विश्व में भारत पर पहली सोच ये जानने के लिए बीबीसी ने बात की सदानंद धूमे से. सदानंद धूमे अमरीका के वॉशिंगटन में अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट में रेज़िट फ़ेलो हैं. 2009 में उन्होंने एक किताब लिखी थी, My Friend the Fanatic: Travels with a Radical Islamist. 2014 में मोदी के आने के बाद से भारत में क्या-क्या बदला, इस विषय पर फ़िलहाल सदानंद अपनी दूसरी किताब लिख रहे हैं. 'वॉल स्ट्रीट जर्नल में वो भारत और दक्षिण एशिया पर सप्ताह में दो बार कॉलम लिखते हैं. दुनिया के इस हिस्से में चल रही राजनीति, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर उनकी गहरी पकड़ है. प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से इंटरनेश्नल रिलेशन में एमए किया और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की है. भारत अमरीका से क्या सीख सकता है या सिखा सकता है, जब ये सवाल हमने सदानंद से पूछा, तो उन्होंने कहा, अमरीका से इस मामले में कोई देश पॉज़िटिव बात नहीं सीख सकता. लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि भारत में असली खतरा जनवरी के अंत में नहीं बल्कि मार्च में आना शुरू हुआ जब इटली से घूमकर आए लोगों में संक्रमण का पता चला. अगर इस नज़रिए से आप सहमत हैं, तो एक तरह से कहा जा सकता है कि अभी तक भारत ने अपनी कोशिशों से कोवि-19 कर्व को तेज़ी से बढ़ने नहीं दिया और एक तरह से परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में रखा है.
विश्व में भारत पर दूसरी सोच सदानंद के मुताबिक़ विश्व में भारत के कोवि419 मैनेजमेंट को लेकर एक दूसरी सोच भी है. ऐसी सोच रखने वाले जानकार भारत के क़दमों को संदेह की नज़र से देखते हैं. इसमें लोग भारत के कोरोनाग्राफ़ को जनवरी की बजाए मार्च से देखने की बात कहते हैं. ऐसा इसलिए कि तभी से आँकड़े बढ़ने शुरू हुए. इस नज़रिए से भी देखें तो भी भारत अमरीका और इटली से ज़्यादा बेहतर स्थिति में दिखता है. लेकिन इस स्थिति में आँकड़ों का अंतर थोड़ा कम हो जाता है. मसलन 7-मार्च से 14 मार्च के बीच के भारत के आँकड़े देखें और 7 अप्रैल से 14 अप्रैल के बीच के भारत के कोरोना संक्रमित मरीजों के आँकड़े देखें, तो अंतर आपको साफ़ दिखेगा.
भारत सरकार का पक्ष टेस्टिंग पर भी भारत सरकार के पास अपने तर्क हैं. कोवि-19 से निपटने के लिए भारत सरकार ने कई कमेटियों का गठन किया है. इनमें से एक कमेटी के चेयरमैन, सीके मिश्रा ने कहा कि भारत ने अब 5 लाख टेस्ट कर लिए गए हैं. टेस्टिंग के मामले में अमरीका, इटली और ब्रिटेन से भारत की तुलना करते हुए उन्होंने दावा किया कि भारत की रणनीति सफल है और इसलिए मामले कम हैं. मिश्रा ने कहा, "अमरीका ने 26 मार्च तक 5 लाख टेस्ट किए थे, और उस वक़्त वहां पॉज़िटिव मरीजों की संख्या 8 हज़ार थी. इटली ने 31 मार्च तक 5 लाख टेस्ट किए और उस वक़्त उनके यहां पॉज़िटिव मरीज़ की संख्या 1 लाख थी. ब्रिटेन ने 20 अप्रैल तक 5 लाख टेस्ट किए और उस वक़्त उनके यहां 1 लाख 20 हज़ार पाजिटिव मरीज़ थे. भारत ने 22 अप्रैल को 5 लाख टेस्ट किए और हमारे यहां केवल 20 हज़ार कोरोना पाजिटिव मरीज़ हैं." भारत सरकार ने टेस्टिंग के मामले में दुनिया भर में तारीफ़ बटोरने वाले देश दक्षिण कोरिया और जर्मनी से तुलनात्मक अध्यन का ज़िक्र इस प्रेस कॉफ्रेंस में नहीं किया.
टेस्टिंग है असली पैमाना सदानंद धूमे की माने तो दुनिया में कोवि-19 की लड़ाई में कौन कितना सफल या विफल है, वो उस देश की टेस्टिंग के आँकड़ों को देख कर ही तय किया जाना चाहिए. और उस लिहाज़ से भारत की स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है. जो लोग पहले नज़रिए से इस महामारी को देखते हैं, उनको मेरा ये कहना गलत लग सकता है.
तो क्या कोवि4-19 तय करेगा दुनिया भर के देशों की हैसियत? इस सवाल पर सदानंद कहते हैं, "वर्तमान स्थिति में दुनिया में किस देश की हैसियत क्या है, आने वाले समय में वो इस बात पर निर्भर करेगा कि कोवि-19 को किस देश ने कैसे हैं, ल किया है. ये केवल भारत के लिए नहीं. अमरीका, चीन, रूस के लिए भी उतना ही सही ये हमारी जेनरेशन की सबसे बड़ी ग्लोबल घटना है. 9/11 के हमले से भी बड़ी कहानी है. पूरी दुनिया में किस देश को किस नज़रिए से देखा जाता है ये उस नज़रिए को भी पूरी तरह बदल कर रख देगा. लेकिन इस महामारी को शुरू हुए अभी सिर्फ़ साढ़े तीन महीने ही हुए हैं. इतनी जल्दी किसी देश के लिए कोई धारणा बना लेना मुश्किल होगा."
मोदी के लिए करो या मरो वाली स्थिति प्रधानमंत्री मोदी के लिए कोवि-19 महामारी को सदानंद करो या मरो की स्थिति मानते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "ये उनके पॉलिटिकल करियर की अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा है. अगर कोवि-19 से निपटने में भारत क़ामयाब रहता है तो वे देश की मौजूदा पीढ़ी के सबसे ताक़तवर और पसंदीदा राजनेता के तौर पर अपनी साख को मज़बूत करेंगे. लेकिन अगर भारत में कोरोना संक्रमण के मामले विस्फोटक स्थिति में पहुंचते हैं, तो देश में बड़े स्तर पर अप्रत्याशित समाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल सकता है." अपने इस बयान का वो कारण भी बताते हैं. उनके मुताबिक़ चाहे गुजरात के भुज में भूकंप की बात हो या 2002 के दंगों की बात हो, इतने बड़े पैमाने पर कुछ भी नहीं हुआ. मोदी ने अपने राजनीतिक करियर में कई चुनौतियां झेली हैं लेकिन किसी की व्यापकता इतनी नहीं थी, जितनी कोरोना संक्रमण की है. कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए उन्हें केवल पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर ही संघर्ष नहीं करना है, आर्थिक मोर्चे पर भी उनके सामने कई चुनौतियां है.
मोदी ही नहीं ट्रंप पर भी है सबकी निगाहें सदानंद के मुताबिक ये बात केवल मोदी के लिए ही नहीं, अमरीकी राष्ट्रपति के लिए भी उतनी ही सही है. उन्होंने कहा, "ये ऐसी चुनौती है जो अमरीका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उनकी उम्मीदवारी की जीत या फिर हार को तय करेगी. इसमें संदेह का सवाल ही नहीं है. ये भी सच है कि अपने राजनीतिक कार्यकाल में ट्रंप ने भी कई और चुनौतियों का सामना किया है लेकिन इसका स्केल बिल्कुल अलग है. कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया के किसी भी राजनेता का आने वाला भविष्य तय करेगा. और मोदी इसमें कोई अपवाद नहीं है. ये एक सूनामी की तरह है. इस सूनामी से निपटने के लिए किस नेता ने क्या किया, ये इतिहास में ज़रूर दर्ज होगा. हम सबको उस घड़ी का इंतज़ार करना चाहिए. ये मोदी के पक्ष में भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है."